केंद्रीय बजट 2022 में वित्त वर्ष 2022-23 के लिए खाद्य और उर्वरक सब्सिडी में जबरदस्त इजाफा हो सकता है। यह चालू वित्त वर्ष के संशोधित अनुमानों के करीब रहने की उम्मीद है। विश्लेषक कहते हैं कि ऐसा इसलिए है कि वैश्विक जिंस कीमतें लगातार ऊंची बनी हुई हैं और समाज का सबसे गरीब तबका अभी भी कोविड-19 महामारी से ऊपजे दबाव से जूझ रहा है।
2021-22 में खाद्य और उर्वरक के लिए बजटीय सब्सिडी परिव्यय क्रमश: 2.43 लाख करोड़ रुपये और 79,530 करोड़ रुपये रहा।
सरकार की तरफ से प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (पीएमजीकेएवाई) के तहत कोविड राहत के तौर पर मुफ्त खाद्यान्न योजना की अवधि बढ़ाने से आंकड़ों से पता चलता है कि वित्त वर्ष 2022 के लिए खाद्य सब्सिडी का संशोधित अनुमान करीब 3.9 लाख करोड़ रुपये रह सकता है।
चूंकि उर्वरक को तैयार करने में इस्तेमाल होने वाली कच्ची सामग्रियों – पोटैशियम, नाइट्रोजन और फॉस्फोरस की कीमतें बढ़ गई हैं लिहाजा केंद्र ने उर्वरक सब्सिडी को मई में बढ़ाकर 14,775 करोड़ रुपये और अक्टूबर में बढ़ाकर 28,665 करोड़ रुपये कर दिया। इसके साथ ही वर्ष भर के लिए संशोधित सब्सिडी परिव्यय 1.23 लाख करोड़ रुपये हो गया।
विश्लेषकों का कहना है कि उक्त निर्णय के लिए जिम्मेदार परिस्थितियां अगले वर्ष भी कुछ समय के लिए बरकरार रह सकती हैं।
ईवाई के मुख्य नीति सलाहकार डीके श्रीवास्तव ने कहा, ‘खाद्य और उर्वरक सब्सिडियां वैश्विक जिंस कीमतों पर निर्भर करती हैं और चूंकि कीमतें ऊच्च बने रहने के आसार हैं लिहाजा इनके लिए बजट में व्यवस्था करनी होगी। कच्चे तेल की कीमतें कुछ और समय के लिए ऊंची रहने की आशंका है।’
राजकोष के लिए चालू वित्त वर्ष में एक अच्छी बात ईंधन सब्सिडी के मोर्चे पर रही और पेट्रोलियम उत्पाद कीमतों को और अधिक नियंत्रण मुक्त किया गया। इसका मतलब हुआ कि एक ओर जहां खुदरा पेट्रोल और डीजल की कीमतें रिकॉर्ड उच्च स्तर पर पहुंच गईं वहीं ईंधन सब्सिडी में कमी आई होगी।
सूत्रों का कहना है कि करीब 13,000 करोड़ रुपये के बजटीय रकम में से इस साल बहुत कम ही खर्च हुई होगी क्योंकि एलपीजी सिलिंडरों की कीमतें करीब अपनी बाजार दरों के नजदीक थीं जबकि पेट्रोल और डीजल के मामले में सरकार अब कोई सब्सिडी नहीं देती है।
इंदिरा गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ डेवलपमेंट रिसर्च के निदेशक एस महेंद्र देव ने कहा, ‘बजट में खाद्य सब्सिडी को कम नहीं किया जा सकता है क्योंकि महामारी से संबंधित राहत को जारी रखा जा सकता है और उर्वरक सब्सिडी तब तक नीचे नहीं आ सकती है जब तक कि अंतरराष्ट्रीय कीमतें ऊच्च स्तर पर बनी हुई हैं।’
सब्सिडी लंबे समय से भारतीय अर्थव्यवस्था का हौआ रही है। लेकिन 2020-21 के खाद्य और उर्वरक परिव्ययो में काफी इजाफा किया गया है। ऐसा मुख्य तौर पर महामारी के कारण हुआ है।
वित्त वर्ष 2020-21 के संशोधित अनुमानों के मुताबिक खाद्य सब्सिडी 4.22 लाख करोड़ रुपये रह सकती है जो कि 1.15 लाख करोड़ रुपये के बजट अनुमान से काफी अधिक है। अतिरिक्त खर्च कोविड की पहली लहर के दौरान राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (एनएफएसए) के करीब 80 करोड़ लाभार्थियों के लिए शुरू की गई मुफ्त खाद्यान्न और दलहन वितरण योजना के कारण हुई।