अर्थव्यवस्था

चुनावी वर्षों में राजकोषीय घाटा कम, सरकार के खर्च के तरीके में दिख रहा सुधार: Emkay रिपोर्ट

रिपोर्ट के मुताबिक, FY24 में fiscal deficit की स्थिति FY19 की तुलना में बहुत अच्छी है। FY19 में राजकोषीय घाटा नवंबर में ही बजट के अनुमानित लक्ष्य का 115 प्रतिशत हो गया था।

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रुचिका चित्रवंशी   
Last Updated- January 19, 2024 | 9:32 PM IST

केंद्र सरकारों ने आम धारणा के विपरीत पिछले 25 वर्षों में ज्यादातर चुनावी वर्षों में राजकोषीय समझदारी दिखाई है। एमके रिसर्च के पिछले चुनावों के विश्लेषण से पता चलता है कि शुरुआती 3 वर्षों की तुलना में बाद के वर्षों में राजकोषीय घाटा (fiscal deficit) कम रहा है।

भारत में अर्थशास्त्र की विकसित हो रही राजनीति’ शीर्षक से आई एमके रिपोर्ट में कहा गया है, ‘पिछले 5 चुनावों के हमारे अध्ययन से संकेत मिलते हैं कि वैश्विक वित्तीय संकट के साल को छोड़कर सामान्यतया केंद्र की सरकारों ने चुनाव के पहले समेकन किया है।’

रिपोर्ट में कहा गया है कि वित्त वर्ष 24 में राजकोषीय घाटे की स्थिति वित्त वर्ष 19 की तुलना में बहुत अच्छी है। वित्त वर्ष 19 में राजकोषीय घाटा नवंबर में ही बजट के अनुमानित लक्ष्य का 115 प्रतिशत हो गया था। इसके विपरीत मौजूदा वित्त वर्ष में घाटा लक्ष्य के 51 प्रतिशत पर है।

रिपोर्ट में कहा गया है, ‘वित्त वर्ष 24 में खर्च इस समय राजकोषीय लक्ष्य हासिल करने की राह पर है। साथ ही यह ज्यादा स्थिर दिखता है। इससे मौजूदा सरकार के खर्च के तरीके में सुधार और बेहतर राजस्व सृजन का पता चलता है।’

वित्त वर्ष 2004 में राजकोषीय घाटा कम होकर 4.4 प्रतिशत रह गया था, जो उसके पहले के तीन वित्त वर्षों में औसतन 5.8 प्रतिशत था।

वित्त वर्ष 2009 में स्थिति थोड़ी अलग रही और चुनावी साल में राजकोषीय घाटा 6.1 प्रतिशत था, जबकि उसके पहले के 3 साल का औसत 3.3 प्रतिशत रहा था। इसकी प्रमुख वजह वेतन आयोग द्वारा की गई बढ़ोतरी, महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के तहत अधिक भुगतान था।

चुनाव वाले साल वित्त वर्ष 2014 में राजकोषीय घाटा कम होकर सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का 4.5 प्रतिशत रह गया, जो उसके पहले के 3 वित्त वर्षों में औसतन 5.2 प्रतिशत था। 2013 में अमेरिकी ट्रेजरी के बढ़े प्रतिफल (टैपर टैंट्रम) की अनिवार्यताओं के बावजूद यह स्थिति थी।

इसी तरह से वित्त वर्ष 24 के पहले के 3 वर्षों में कोविड 19 के खर्च के कारण औसत राजकोषीय घाटा ज्यादा था। सरकार ने वित्त वर्ष 24 के लिए जीडीपी का 5.9 प्रतिशत राजकोषीय घाटे का लक्ष्य रखा है, जबकि इसके पहले के 3 वर्षों में घाटा औसतन 7.4 प्रतिशत रहा है।

केंद्र में और राज्य के स्तर पर सत्ता के लिए संघर्ष कम होने के कारण मौजूदा सरकार को राजकोषीय अनुशासन बनाए रखने में मदद मिली है और उसने कम लोकप्रिय तरीका अपनाकर राजकोषीय अनुशासन और संपत्ति के सृजन पर जोर देना जारी रखा है।

रिपोर्ट में कहा गया है, ‘पूंजीगत व राजस्व खर्च का अनुपात वित्त वर्ष 24 में 20 साल के उच्च स्तर 28.6 प्रतिशत पर है। इससे सरकार की प्राथमिकताओं के साथ चुनावी बहुमत की ताकत के कारण नीतियों पर स्थिर रहने की सक्षमता का पता चलता है।’

आर्थिक नीति पर मजबूत राजनीतिक बहुमत के असर का उल्लेख करते हुए एमके की रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्तमान सरकार के व्यय में पूंजीगत व्यय का हिस्सा बढ़ा है।

पूंजीगत खर्च व राजस्व खर्च का अनुपात वित्त वर्ष 24 में 28 प्रतिशत हो गया है, जो वित्त वर्ष 19 में 13 प्रतिशत था।

रिपोर्ट में कहा गया है, ‘बेहतर राजस्व सृजन (बेहतर अनुपालन और कर सुधारों की वजह से) ने भी सुनिश्चित किया है कि राजकोषीय समेकन के बावजूद कुल मिलाकर स्थिति नकारात्मक न हो।’

First Published : January 19, 2024 | 9:32 PM IST