अर्थव्यवस्था

कॉनकॉर के विनिवेश में मंत्रालयों का पेंच, लंबी देरी की आशंका

रेल मंत्रालय कॉनकॉर में अपनी 30.8 प्रतिशत हिस्सेदारी बेचने को लेकर दिलचस्पी नहीं ले रहा है

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श्रीमी चौधरी   
ध्रुवाक्ष साहा   
Last Updated- June 11, 2023 | 9:32 PM IST

सरकारी कंपनी कंटेनर कॉर्पोरेशन आफ इंडिया (कॉनकॉर) के विनिवेश की योजना में असीमित देरी हो सकती है, क्योंकि पूरी प्रक्रिया अंतरमंत्रालयी व्यवधानों में फंस गई है। इसके लिए रेल मंत्रालय को नोडल एजेंसी बनाया गया है। रेल मंत्रालय कॉनकॉर में अपनी 30.8 प्रतिशत हिस्सेदारी बेचने को लेकर दिलचस्पी नहीं ले रहा है। इस मामले से जुड़े दो अधिकारियों ने कहा कि इसे बेचने पर रेलवे की लॉजिस्टिक्स लागत कम रखने की कवायद पर असर पड़ेगा।

इसके अलावा कॉनकॉर को अभी अपने टर्मिनलों को नई भूमि लाइसेंस शुल्क (एलएलएफ) नीति के मुताबिक करना है, जिससे कॉनकॉर का मूल्यांकन कम होने का डर है। इससे हिस्सेदारी बेचने को लेकर चिंता और बढ़ गई है।

इसके पहले लंबी देरी के बाद निवेश एवं सार्वजनिक संपत्ति प्रबंधन विभाग (दीपम) ने इस साल मार्च में कॉनकॉर के लिए रुचि पत्र लाए जाने की उम्मीद जताई थी। लेकिन ऐसा नहीं हो सका, क्योंकि इसके लिए संबंधित मंत्रालयों से जरूरी मंजूरी ली जानी है। उपरोक्त उल्लिखित अधिकारियों में से एक ने कहा, ‘रेलवे ने कई मसले उठाए हैं, जिस पर व्यापक बहस की जरूरत है। रुचि पत्र के लिए संबंधित मंत्रालयों की मंजूरी अनिवार्य है, जिसकी संभावना नहीं लग रही है।’

रुचि पत्र आमंत्रित किए जाने के बाद सामान्यतया हिस्सेदारी बेचने में 9 से 12 महीने लगते हैं। अधिकारी ने कहा कि कॉनकॉर के मामले में आगे और देरी हो सकती है, क्योंकि अभी चुनाव भी होने वाले हैं। कॉनकॉर के विनिवेश के लिए केंद्रीय मंत्रिमंडल ने सितंबर 2022 में नए लाइसेंस शुल्क (एलएलएफ) नीति को मंजूरी दी थी। बहरहाल रेलवे ने अब तक अपनी जमीन पर बने अपने किसी कंटेनर टर्मिनल को एलएलएफ में नहीं डाला है, जिससे इसके टर्मिनलों के भविष्य को लेकर चिंता बनी हुई है।

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नीति के मुताबिक कॉनकॉर को तभी कम एलएलएफ दरों का लाभ मिल सकता है, जब वह संपत्ति को छोड़ती है और नए दौर की खुली बोली में इसे बहाल रखती है, जिसमें उसे पहले खारिज करने का अधिकार होगा। लेकिन इसका मतलब यह है कि उसे 61 में से 26 टर्मिनल गंवाने का जोखिम है, जो रेलवे की जमीन पर चलते हैं और इससे कुल मिलाकर कॉनकॉर के मूल्यांकन पर असर पड़ सकता है।

उपरोक्त उल्लिखित अधिकारी ने कहा, ‘आगे चलकर कंटेनर का मालभाड़ा हमारी प्रमुख प्राथमिकताओं में है। हमें नहीं पता कि निजी मालिक किस तरह से कीमत तय करेगा और राष्ट्रीय लॉजिस्टिक्स नीति के मुताबिक रेलवे के लक्ष्यों पर इसका क्या असर होगा।’

First Published : June 11, 2023 | 9:32 PM IST