गिरते रुपये से बढ़ा डेरिवेटिव्स सौदों में घाटा

Published by
बीएस संवाददाता
Last Updated- December 07, 2022 | 12:02 PM IST

जून तिमाही में रुपये में आई सात फीसदी गिरावट के कारण भारतीय कंपनियों में फॉरेक्स डेरिवेटिव्स के सौदों में ताजा घाटा दिखना शुरू हो गया है।


पिछले हफ्ते एचसीएल के बयान के मुताबिक जून की तिमाही में उन्हें कुल 278-322 करोड़ का फॉरेक्स घाटा झेलना होगा, पिछले दो दिनों में ही तीन और कंपनियों ने अपने नतीजों में फॉरेक्स डेरिवेटिव्स में नुकसान दिखाया है।

गत गुरूवार को बेंगलुरू स्थित बायोकॉन के जून तिमाही के शुद्ध मुनाफे में कुल 72 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है। इस कंपनी को कुल छह करोड़ रुपये का फॉरेक्स घाटा हुआ है जबकि इस डेरिवेटिव के एक्सपोजर में कुल मार्क-टू-मार्केट प्रोविजन 26 करोड़ रुपयों का रहा।

उससे पहले बुधवार को आईटी की अगुआ कंपनी टीसीएस ने जून तिमाही में  73.30 करोड़ रुपये का फॉरेक्स घाटा दर्ज किया। इसका असर इसके शुद्ध मुनाफे पर पड़ा और मुनाफे में कुल सात फीसदी साल दर साल की गिरावट दर्ज की गई। इसके अलावा इसी कारण एक और आईटी कंपनी मांइड ट्री के मुनाफे में भी गिरावट रही। मांइड ट्री का इस बारे में कहना है कि रुपये में आई हालिया गिरावट के कारण हमारे आउटस्टैंडिंग इंस्ट्रूमेंट में कुल 51.7 करोड़ रुपये के प्रोविजन करने पड़े हैं।

लिहाजा कंपनी को जून तिमाही में तिमाही दर तिमाही आधार पर कुल 12.9 करोड़ रुपये का घाटा सहना पड़ा है। इस सब के पीछे रुपये का कमजोर होना है,क्योंकि जब रुपया मजबूती की ओर था तब कई निर्यातकों ने धड़ाधड़ अपने डॉलर फॉरवार्ड को बेचना शुरू कर दिया था। इतना ही उन्होनें अपने डॉलर फॉरवर्ड को एक साल के लिए ही नहीं तीन से पांच सालों की अवधि के लिए बेचना और कवर करना शुरू दिया। लेकिन जैसे ही रुपये में सात फीसदी की गिरावट आनी शुरू हुई निर्यातकों को इन सौदों पर घाटा होना शुरू हो गया है।

इस बारे में दिल्ली के एक फॉरेक्स विशेषज्ञ का कहना है कि इन घाटों का मुख्य कारण पहले के समय में लिए गए हेज भी हैं। मतलब यह कि किसी निर्यातक ने अपने डॉलर 40 रुपये पर बेचा होगा, लेकिन अब यह कुल 43.07 रुपये पर कारोबार कर रहा है। जबकि कुछ कंपनियों ने 12 से 24 महीने तक की अवधि के कवर कर डाले। खासकर,आईटी कंपनियों के पास लंबी अवधि के सौदे हैं जबकि कुछ कंपनियों ने अपने रिसिवेबल फॉरवार्डों को बेच दिया है ताकि रुपये के मजबूत होने पर पोटेंशियल घाटे से बचा जा सके। क्योंकि रुपया मजबूत होने पर घाटे का स्तर 37 से 38 अंकों के स्तर तक पहुंच सकता था।

लिहाजा निर्यातकों ने रिसिवेबल्स को बेचना ही सही समझा। मालूम हो कि जब रुपये में 12 फीसदी की मजबूती आई थी तब निर्यातकों को घाटा सहना पड़ रहा था। लिहाजा खुद को सुरक्षित करने की कवायद में उन्होने कवर और बिक्री करने के कदम उठाए। आईटी कंपनियों की ही बात करें तो रुपये के मजबूती वाले दौर में सॉफ्टवेयर कंपनियों ने अपने रिसिवेबल्स की हेजिंग करनी शुरू कर दी। एक विश्लेषक का कहना है कि टीसीएस ने कुल तीन महीनों के रिसिवेबल्स की हेजिंग की है।

First Published : July 18, 2008 | 11:47 PM IST