प्रतीकात्मक तस्वीर | फाइल फोटो
निर्यात संवर्धन मिशन (ईपीएम) का तात्कालिक ध्येय अब इस योजना के कार्यान्वयन ढांचे को स्थापित करने और निर्यातकों का समर्थन करने के उद्देश्य से योजनाओं के लिए विस्तृत प्रक्रियाओं को अंतिम रूप देना है। सरकारी अधिकारियों ने इस योजना को केंद्रीय मंत्रिमंडल से मंजूरी दिए जाने के अगले दिन दी।
दिशानिर्देशों को अंतिम रूप देने में दो-तीन महीने लग सकते हैं। इस बीच सरकार बाजार पहुंच पहल (एमएआई) योजना के तहत लगभग 300 करोड़ रुपये के बकाया को जल्द से जल्द चुकाने और निर्यात बाजारों के विविधीकरण में मदद करने के लिए क्रेता-विक्रेता बैठकों को तेज करने को प्राथमिकता देगी। ब्याज समानीकरण योजना (आईईएस) को 31 दिसंबर, 2024 से आगे विस्तार नहीं मिला। इसे फिर से शुरू किया जाएगा लेकिन मौजूदा व्यापार जरूरतों के अनुरूप इसे नया रूप दिया जाएगा।
वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि योजना से केवल कुछ चुनिंदा क्षेत्रों को लाभ उठाने की अनुमति दी जाएगी और यह ‘सभी के लिए मुफ्त’ प्रकार की योजना के बजाए मोटे तौर पर एमएसएमई पर लक्षित होगी।
अधिकारी ने बताया, ‘अब जब मंत्रिमंडल की मंजूरी मिल गई है तो अगला कदम कार्यान्वयन ढांचे को एक साथ रखना होगा। सभी योजनाएं एकीकृत डिजिटल प्लेटफॉर्म – ट्रेड कनेक्ट के माध्यम से संचालित की जाएंगी। ईपीएम के तहत लाभ चाहने वाले निर्यातकों को अद्वितीय पंजीकरण दिया जाएगा।’ अधिकारी ने कहा, ‘हमें प्रत्येक योजना के लिए परिव्यय के बारे में व्यापक आकलन करने की आवश्यकता है। विस्तृत प्रक्रियाओं को अगले दो-तीन महीनों में अधिसूचित किया जाएगा।’
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने छह साल की अवधि के लिए निर्यात संवर्धन मिशन बुधवार को मंजूर किया। इसका ध्येय भारत की निर्यात प्रतिस्पर्धा को मजबूत करना और अमेरिका के 50 प्रतिशत शुल्क की चुनौतियों से जूझ रहे निर्यातकों व श्रम-गहन क्षेत्रों जैसे कपड़ा, चमड़ा, रत्न और आभूषण, इंजीनियरिंग सामान और समु्द्री उत्पादों को मदद करना है।
ईपीएम को दो उप-योजनाओं के माध्यम से लागू किया जाएगा – 10,401 करोड़ रुपये के लागत वाली निर्यात प्रोत्साहन योजना और 14,659 करोड़ रुपये के लागत वाली निर्यात दिशा योजना। इसमें निर्यात प्रोत्साहन योजना व्यापार को वित्तीय सुविधा मुहैया करवाएगी। हालांकि निर्यात दिशा योजना अंतरराष्ट्रीय मार्केट तक पहुंच को बढ़ावा देगी।