आईटी और इससे संबंधित सेवाओं के विशेष आर्थिक क्षेत्र (एसईजेड) में आयकर छूट वापस लिए जाने से परेशान डेवलपरों को वाणिज्य मंत्रालय ने बड़ी राहत दी है। एसईजेड तैयार करने वालों में मुख्य रूप से रियल एस्टेट क्षेत्र की बड़ी कंपनियां जैसे डीएलएफ और हीरानंदानी समूह आदि शामिल हैं। मंत्रालय के निर्णय से डेवलपर अब एसईजेड में अपनी खाली जगह का आईटी और आईटीईएस के अलावा दूसरे कामों के लिए भी कर सकेंगे। मगर इसके लिए उन्हें कुछ शर्तें पूरी करनी होंगी और बोर्ड से मंजूरी भी लेनी होगी।
मंत्रालय द्वारा जारी एसईजेड नियम, 2006 में संशोधन की अधिसूचना में कहा गया है कि एसईजेड के एक हिस्से को गैर-प्रसंस्करण क्षेत्र घोषित किया जा सकता है, जहां मुक्त क्षेत्र के नियम लागू नहीं होंगे। गैर-प्रसंस्करण क्षेत्र पूरा एक तल होगा, जिसमें कंपनियों को एसईजेड इकाई के लिए लागू तमाम नियमों से छूट मिल जाएगी। ये नियम निवेश, राजस्व, अर्जित विदेशी मुद्रा के साथ साथ शुल्क मुक्त आयातित वस्तुओं और लोगों की आवाजाही को पूर्ण सुरक्षा आदि के बारे में मासिक और वार्षिक प्रगति रिपोर्ट से संबंधित हैं।
लेकिन एसईजेड इकाइयों और गैर प्रसंस्करण क्षेत्र में मौजूद आईटी एवं आईटीईएस इकाइयों को सभी नियमों का पालन करना होगा। फिलहाल डेवलपर और इकाइयां वस्तु आयात पर सीमा शुल्क से, सेवाओं तथा निर्माण पर वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) से एवं स्टांप शुल्क से छूट ले सकती हैं। उन्हें बिजली शुल्क में भी रियायत मिल सकती है मगर आयकर छूट की सुविधा वापस ले ली गई है।
डेवलपर एसईजेड लेंगे तो कर में मिला लाभ भी उन्हें क्षेत्र के अनुपात में ही वापस करना होगा। अधिसूचना के अनुसार गैर प्रसंस्करण क्षेत्र की इकाइयां जिस बुनियादी ढांचे और सुविधाओं का इस्तेमाल करेंगी, उनके निर्माण के लिए प्राप्त कर लाभ भी डेवलपर को लौटाना होगा।
विशेषज्ञों का कहना है कि कर देनदारी की गणना के लिए वित्त मंत्रालय सटीक दिशानिर्देश जारी करेगा तब उद्योग को पता लगेगा कि नए नियम कारगर हैं या नहीं। इससे पहले उद्योग के प्रतिनिधियों ने सरकार से उन क्षेत्रों की कर देनदारी मूल्यह्रास के आधार पर शून्य मानने को कहा था, जो कम से कम 10 साल पुराने हैं।
ईवाई में अंतरराष्ट्रीय कर एवं लेनदेन सेवा के पार्टनर अजित कृष्णन ने कहा, ‘हमें देखना होगा कि वित्त मंत्रालय कर लाभ की गणना के लिए दिशानिर्देश कैसे तय करता है क्योंकि इसमें आयकर और अप्रत्यक्ष कर के तौर पर सेवा कर, जीएसटी, सीमा शुल्क आदि शामिल होंगे।’ उन्होंने कहा कि कई आईटी एसईजेड डेवलपर अपनी परियोजनाओं को वित्तीय रूप से व्यवहार्य और किरायेदारों या इकाइयों के लिए ज्यादा सुलभ बनाने के लिए गैर प्रसंस्करण क्षेत्र बनाने पर विचार कर सकते हैं।
अधिसूचना में कहा गया है कि सी श्रेणी के शहरों के लिए प्रसंस्करण क्षेत्र कुल क्षेत्रफल का कम से कम 50 फीसदी या न्यूनतम 15,000 वर्ग मीटर होगा। बी श्रेणी के शहरों में 25,000 वर्ग मीटर और ए श्रेणी के शहरों के लिए 50,000 वर्ग मीटर प्रसंस्करण क्षेत्र होना चाहिए। कोलकाता, चेन्नई, बेंगलूरु, हैदराबाद और पुणे जैसे बड़े शहर ए श्रेणी में आते हैं।
अहमदाबाद, भुवनेश्वर, चंडीगढ़, इंदौर, जयपुर, लखनऊ आदि बी श्रेणी में आते हैं। इससे छोटे शहर सी श्रेणी में रखे गए हैं। एसईजेड डेवलपरों को उनकी आय पर दस साल के लिए कर छूट दी गई थी बशर्ते एसईजेड 1 अप्रैल, 2017 से पहले बन गया हो। इसके अलावा आईटी/ आईटीईएस एसईजेड से आईटी/ आईटीईएस सेवाएं प्रदान करने वाली इकाइयां भी कर छूट के लिए पात्र थीं बशर्ते उनकी स्थापना 1 अप्रैल, 2020 से पहले हुई हो। इन इकाइयों के लिए पहले पांच साल का आयकर पूरी तरह माफ कर दिया गया था और अगले पांच साल के लिए 50 फीसदी कर रियायत प्रदान की गई थी।