अर्थव्यवस्था

मिठाइयां- नमकीन निर्माताओं के महासंघ की सरकार से मांग, 12% से कम कर 5% हो GST

मिठाई दुकानों पर रसगुल्ला या जलेबी खाने पर आईटीसी के बगैर 5 फीसदी और घर ले जाने पर भी आईटीसी के साथ 5 फीसदी कर लगता है।

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शार्लीन डिसूजा   
Last Updated- August 27, 2025 | 9:55 PM IST

मिठाइयां और नमकीन बनाने वालों के महासंघ ने नमकीन पर वस्तु एवं सेवा शुल्क (जीएसटी) को 12 फीसदी से कम कर 5 फीसदी करने की मांग की है। इसके अलावा महासंघ ने चाट और रेस्तरां में खाने-पीने की चीजें बेचने वाली मिठाई दुकानों पर इनपुट टैक्स क्रेडिट (आईटीसी) के साथ 5 फीसदी कर लगाने का आग्रह किया है।

महासंघ ने अपने नोट में कहा है कि इन बदलावों से मुकदमेबाजी में कमी आएगी, मार्जिन स्थिर रहेगा, रोजगार के अवसर बढ़ेंगे और यह भारत की वैश्विक खाद्य केंद्र बनने की महत्त्वाकांक्षा के अनुरूप भी होगा। इसने बताया कि अभी खाद्य पदार्थ सभी मौजूदा जीएसटी स्लैब में बंटे हैं।

महासंघ के महानिदेशक फिरोज एच नकवी ने कहा, ‘अभी मालाबारी पराठे पर 18 फीसदी कर लगता है, जबकि रोटी एवं चपाती पर 5 फीसदी और ब्रेड करमुक्त है। गैर ब्रांडेड नमकीन पर 5 फीसदी जीएसटी लगता है, जबकि ब्रांडेड नमकीन पर 12 फीसदी वस्तु एवं सेवा शुल्क चुकाना पड़ता है। मिठाई दुकानों पर रसगुल्ला या जलेबी खाने पर आईटीसी के बगैर 5 फीसदी और घर ले जाने पर भी आईटीसी के साथ 5 फीसदी कर लगता है। लगभग यही स्थिति यही मिठाइयों पर भी लागू होती है।’

नकवी ने कहा, ‘उत्पाद की अलग-अलग श्रेणियों में ऐसी विसंगतियों के कारण वर्गीकरण विवाद, अनुपालन का बोझ बढ़ गया है और मुकदमेबाजी भी लगातार बढ़ रही है। इससे भारतीय खाद्य प्रसंस्करण उद्योग में छोटे और मझोले कारोबारियों को सबसे अधिक नुकसान हो रहा है।’

याचिका में यह भी कहा गया है कि रेस्तरां सेवाओं पर आईटीसी के साथ 5 फीसदी जीएसटी लगता है और शोरूम की बिक्री आईटीसी के साथ 5, 12 और 18 फीसदी जीएसटी के अधीन है। नकवी ने कहा, ‘चूंकि दोनों परिचालनों में रसोई, कर्मचारी, उपयोगिताएं और किराया जैसा एक ही बुनियादी ढांचा होता है, इसलिए इनपुट खर्चों को अलग-अलग बांटना लगभग असंभव है। नतीजतन, व्यवसायों को दो-दो रिकॉर्ड रखने पड़ते हैं, जिससे परिचालन लागत बढ़ जाती है और मुकदमेबाजी का जोखिम बढ़ जाता है।’

First Published : August 27, 2025 | 9:50 PM IST