मुख्य आर्थिक सलाहकार वी. अनंत नागेश्वरन ने कहा कि क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों को रेटिंग ढांचे की समीक्षा करने की जरूरत है। रेटिंग एजेंसियां किसी देश को धन मुहैया कराने में अहम भूमिका निभाती हैं। इन एजेंसियों की रेटिंग असर एक देश से दूसरे देश तक जाता है और वित्तीय संस्थानों पर इसका का संक्रामक प्रभाव पड़ता है।
नागेश्वरन ने रेटिंग एजेंसियों के अपने ढांचे की समीक्षा के सवाल के जवाब में कहा, ‘इन्होंने (रेटिंग एजेंसियों ने) वर्ष 2008 के संकट को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया था और इसके प्रत्यक्ष प्रमाण भी थे। इन एजेंसियों ने सामूहिक रूप से गलत मूल्यांकन किया और फिर बाद में एक झटके में रेटिंग (देशों के बारे में) घटा दी ।’
नागेश्वरन ने मुंबई में भारतीय प्रंबध संस्थान, काेझिकोड के वृहद अर्थव्यवस्था, बैंकिंग और वित्त पर आयोजित सालाना सम्मेलन में अपने विचार व्यक्त किए। उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि रेटिंग एजेंसियां किसी देश की रेटिंग तब घटा देती हैं, जब पहले से ही उसकी बुनियादी स्थिति खराब हो चुकी होती है और उसे पुनर्निर्माण की जरूरत होती है। उन्होंने यह भी कहा कि वैश्विक वित्तीय संस्थानों और उनके ग्राहकों के हित विकासशील अर्थव्यवस्थाओं पर खासा असर डालते हैं। इसलिए देशों को मौद्रिक नीतियां अपनी घरेलू अर्थव्यवस्था के अनुरूप बनानी चाहिए।
उन्होंने वैश्वीकरण पर कहा कि वे आम धारणा के अनुसार वैश्विक अर्थव्यवस्था के अधिक नाजुक होने के बारे में अधिक आश्वस्त नहीं थे।
नागेश्वरन ने कहा, ‘वैश्विक व्यापार की मात्रा से आर्थिक सुस्ती के प्रभाव को जानना बेहद मुश्किल है। वैश्विक व्यापार की मात्रा प्रतिबंधों जैसे शुल्क और गैर शुल्क से भी प्रभावित हो सकती है। देश कम जोखिम वाले देशों में आपूर्ति श्रृंखला स्थानांतरित (फ्रेंड शोरिंग) और उत्पाद तैयार करके मूल देश को वापस भेज (रीशोरिंग) रहे हैं। यह सभी कुछ निश्चित रूप से हो रहा है। लिहाजा कारोबार के आंकड़ों के आधार पर यह निष्कर्ष मुश्किल है कि अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है।’
नागेश्वरन ने कहा कि अर्थव्यवस्थाओं को चीन की आपूर्ति के जोखिम से मुक्त करना लंबी प्रक्रिया है। उन्होंने कहा, ‘जब हम चीन की आपूर्ति श्रृंखला के जोखिम से मुक्त करने की बात करते हैं तो हमें इस भ्रम में नहीं रहना चाहिए कि हम ट्वीट पर दी जाने वाली समयसीमा में इसे हासिल कर सकते हैं। इसे हासिल करने में कहीं अधिक लंबा समय लगेगा।’