अर्थव्यवस्था

Assembly Elections 2023: केंद्रीय बजट पर दिखेगी पांच राज्यों के चुनावी नतीजे की छाप

सरकार का खर्च इसके मौजूदा राजस्व से अधिक होने से पूंजीगत व्यय पर नकारात्मक असर पड़ सकता है। ऐसे में कर्ज का दायरा बढ़ेगा और इसकी राजकोषीय स्थिति पर लगातार दबाव बना रहेगा।

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इंदिवजल धस्माना   
Last Updated- December 04, 2023 | 8:20 AM IST

राज्य चुनावों के उत्साहजनक नतीजे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार को अब अगले साल होने वाले राष्ट्रीय चुनावों के लिए भी सामाजिक कल्याण योजनाओं पर ध्यान देना जारी रखने के लिए प्रेरित करेंगे और वर्ष 2024-25 के अंतरिम बजट में भी यह नजर आने की संभावना है।

वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) और व्यक्तिगत आयकर संग्रह में तेजी से नरेंद्र मोदी सरकार को नई योजनाओं की घोषणा करने और पीएम-किसान सम्मान निधि, महिलाओं, युवाओं तथा वंचित वर्गों से जुड़ी योजनाओं के आवंटन में वृद्धि करने के साथ ही पेट्रोल और डीजल पर कर में कटौती, मनरेगा के लिए फंड आवंटन बढ़ाने और रसोई गैस सिलिंडर की कीमतों में और कमी करने की गुंजाइश बनाने में मदद मिल सकती है।

अक्टूबर में राज्यों को हस्तांतरित किए जाने से पहले निगम कर, केंद्रीय जीएसटी, केंद्रीय उत्पाद शुल्क और सीमा शुल्क से कर संग्रह में कमी के बावजूद, चालू वित्त वर्ष में अप्रैल-अक्टूबर के दौरान कुल कर प्राप्तियां करीब 14 प्रतिशत बढ़कर 18.3 लाख करोड़ रुपये रही जो वित्त वर्ष 2023 की इसी अवधि में 16.1 लाख करोड़ रुपये थी। यह वर्ष 2023-24 के केंद्रीय बजट के कर संग्रह में अनुमानित 10.44 प्रतिशत की वृद्धि से अधिक था। चालू वित्त वर्ष की पहली छमाही में जिस तरह से राजकोषीय घाटे को नियंत्रित किया गया उससे सरकार को अंतरिम बजट में जनता के लिए मददगार योजनाओं की घोषणा करने की गुंजाइश मिली।

केंद्र ने चालू वित्त वर्ष की पहली छमाही के दौरान राजकोषीय घाटे को सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 4.9 प्रतिशत पर सीमित रखा है। बजट में वर्ष 2023-24 के दौरान राजकोषीय घाटे को जीडीपी के 5.9 प्रतिशत के स्तर पर रहने का अनुमान लगाया गया। पहली तिमाही में राजकोषीय घाटा काफी अधिक, जीडीपी के 6.4 प्रतिशत के स्तर पर था लेकिन दूसरी तिमाही में इसे प्रभावी रूप से नियंत्रित कर 3.5 प्रतिशत तक पहुंचाया गया।

इसका एक कारण दूसरी तिमाही के 2.5 लाख करोड़ रुपये की तुलना में पहली तिमाही में 4.5 लाख करोड़ रुपये का उच्च घाटा रहा। इसके अलावा वित्त वर्ष 2024 के जुलाई-सितंबर महीने के दौरान 9.1 प्रतिशत की तुलना में अप्रैल-जून के दौरान, मौजूदा मूल्य पर जीडीपी की आठ प्रतिशत की कम वृद्धि दिखी। हालांकि, प्रत्येक तिमाही में मौजूदा मूल्य पर जीडीपी वृद्धि, वर्ष 2023-24 के बजट के 10.5 प्रतिशत के अनुमान से कम थी।

हाल ही में, नवंबर में जीएसटी संग्रह सालाना आधार पर 15 प्रतिशत बढ़कर 1.68 लाख करोड़ रुपये हो गया जो इस वित्त वर्ष के किसी भी महीने के लिहाज से सबसे अधिक है। एकीकृत जीएसटी के निपटान के बाद, केंद्रीय जीएसटी संग्रह समान महीने में 14.4 प्रतिशत बढ़कर 68,297 करोड़ रुपये हो गया। केंद्र ने पहले ही 80 करोड़ से अधिक लोगों के लिए मुफ्त खाद्यान्न योजना का विस्तार अगले पांच वर्षों के लिए करने की घोषणा की है जिससे सरकारी खजाने पर 11.80 लाख करोड़ रुपये का बोझ बढ़ेगा। लेकिन, इस योजना से चालू वित्त वर्ष की अंतिम तिमाही के लिए केवल 6,000 करोड़ रुपये का अतिरिक्त बोझ बढ़ेगा।

हालांकि, अर्थशास्त्रियों ने केंद्र और राज्य दोनों के प्रमुख नेतृत्वों और अधिकारियों को बिना ज्यादा सोच-विचार किए मुफ्त सेवाओं वाली योजनाओं की पेशकश करने के खिलाफ आगाह किया है। उदाहरण के तौर पर इंडिया रेटिंग्स के मुख्य अर्थशास्त्री देवेंद्र पंत ने कहा कि दिक्कत यह है कि केंद्र और राज्य दोनों ही स्तर पर सार्वजनिक वित्त व्यय जोरदार तरीके से होता है।

उन्होंने कहा, ‘मौजूदा खर्च/राजस्व में ब्याज भुगतान, वेतन और पेंशन भुगतान का अनुपात अधिक होने से खर्च से जुड़े सुधार में काफी मुश्किलें आती हैं। राज्य के पूंजीगत व्यय का सीधा संबंध राजस्व घाटे की स्थिति से जुड़ा हुआ है।’ पंत ने कहा कि बड़ी आबादी के लिए लागू की जाने वाली योजनाओं से राज्यों और केंद्र सरकार की राजकोषीय स्थिति पर दबाव पड़ता है।

उन्होंने चेतावनी दी, ‘सरकार का खर्च इसके मौजूदा राजस्व से अधिक होने से पूंजीगत व्यय पर नकारात्मक असर पड़ सकता है। ऐसे में कर्ज का दायरा बढ़ेगा और इसकी राजकोषीय स्थिति पर लगातार दबाव बना रहेगा।’

केंद्र का ऋण चालू वित्त वर्ष में बढ़कर जीडीपी का 57.2 प्रतिशत होने का अनुमान है जो इससे पिछले वित्त वर्ष में 57 प्रतिशत था। वर्ष 2020-21 और 2021-22 (60 प्रतिशत से अधिक) के कोविड से प्रभावित वर्षों को छोड़ दिया जाए तो इन दो वर्षों में सरकारी देनदारियां वर्ष 2009-10 से अधिक थीं। हालांकि बजट के अनुमानों की तुलना में इस साल केंद्र का ऋण कम हो सकता है लेकिन इसके लिए यह जरूरी होगा कि यह साल की पहली छमाही की तरह ही दूसरी छमाही में भी राजकोषीय घाटे को नियंत्रित करने का रुझान बनाए रखे।

भाजपा को जिन तीन राज्यों में चुनावी जीत मिली है वहां इसने विभिन्न लोकलुभावन योजनाओं की पेशकश का वादा किया है। उदाहरण के तौर पर इसने राजस्थान में पीएम किसान योजना के तहत किसानों की आमदनी में समर्थन देने की पेशकश के तहत प्रत्येक पात्र किसान को 12,000 रुपये दने का वादा किया।

इसी तरह, पार्टी ने छत्तीसगढ़ में 500 रुपये में एलपीजी सिलिंडर देने का वादा किया। मध्य प्रदेश में लगभग 20 वर्षों की सत्ता और सत्ता विरोधी रुझानों के बावजूद पार्टी की शानदार जीत का श्रेय काफी हद तक ‘लाडली बहन योजना’ को दिया जा रहा है जो महिलाओं पर केंद्रित योजना है। इन सभी योजनाओं और वादों के नतीजे केंद्र के स्तर पर भी देखे जा सकते हैं।

केंद्र की योजनाओं पर राज्य के चुनावी नतीजों के प्रभाव के बारे में पूछे जाने पर आर्थिक मामलों को देखने वाले भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता गोपाल कृष्ण अग्रवाल ने कहा कि नई योजनाओं की घोषणा करना कोई विवादास्पद मुद्दा नहीं है। यह वास्तव में योजनाओं को पूरा करने की मोदी की गारंटी वाला वादा है जिससे लोग आकर्षित होते हैं।

उन्होंने कहा, ‘विपक्ष के पास अपने वादों को पूरा करने के लिए कोई खाका नहीं था। उन्होंने जिन योजनाओं के वादे किए वे झूठे थे। हमने योजनाओं के पूरा होने पर ध्यान केंद्रित किया। लोग जानते थे कि ये मोदी की गारंटी है जो पूरी होगी। लोगों ने हमारे और विपक्ष के वादों में अंतर को पहचान लिया है। लोग यह अच्छी तरह से जानते हैं कि मोदी जिस बात की गारंटी देते हैं वे पूरी होंगी। लोगों ने हममें और विपक्ष के वादे के अंतर को समझा है।’

उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पहले ही विकासशील भारत संकल्प यात्रा शुरू कर चुके हैं, जिसका एक उद्देश्य मौजूदा योजनाओं का लाभ उन लोगों तक पहुंचाना है जिन्हें उनकी पात्रता के बावजूद इसका लाभ नहीं मिला है।

First Published : December 4, 2023 | 8:20 AM IST