जेफरीज के शेयर बाजार विशेषज्ञ क्रिस्टोफर वुड ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि इस साल भारतीय शेयर बाजार दूसरे देशों के मुकाबले कमजोर चले हैं। वुड का कहना है कि देश की आर्थिक स्थिति को देखकर लगता है कि रुपये की गिरावट अब रुक सकती है। इस साल रुपया बाकी उभरते देशों की मुद्राओं के मुकाबले सबसे ज्यादा कमजोर रहा है।
वुड ने बताया कि भारत का शेयर बाजार इस साल MSCI उभरते बाजार इंडेक्स से 27% कम प्रदर्शन कर पाया है। यानी दूसरे देश आगे रहे और भारत पीछे रहा। लेकिन यह पूरी तरह खराब नहीं है, क्योंकि भारत में घरेलू निवेशक लगातार शेयर खरीद रहे हैं, जिसकी वजह से बाजार पूरी तरह नहीं गिरा।
वुड के मुताबिक, आने वाले साल (2025-26) में भारत का चालू खाता घाटा बहुत कम होकर GDP का सिर्फ 0.5% रह सकता है। यह पिछले 20 सालों में सबसे कम होगा। उन्होंने यह भी बताया कि भारत के पास अभी $690 बिलियन का विदेशी मुद्रा भंडार है, जो 11 महीनों तक देश के आयात चलाने के लिए काफी है।
लेकिन वुड कहते हैं कि रुपये को स्थिर रखने में एक बड़ा खतरा भी है। वह खतरा है, राज्य सरकारों द्वारा चुनाव जीतने के लिए दी जा रही मुफ्त योजनाएं और रियायतें। उनके मुताबिक, इससे राज्यों पर बहुत ज्यादा पैसा खर्च करना पड़ रहा है।
उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार की वित्तीय हालत ठीक है, लेकिन राज्य सरकारों की स्थिति कमजोर हो रही है, क्योंकि पिछले दो सालों में राज्यों ने कई तरह की पॉपुलिस्ट (मतलबी या वोट पकड़ने वाली) योजनाएं शुरू की हैं, जो चिंता बढ़ाती हैं।
वुड का कहना है कि इस साल सरकार ने ब्याज दरों में कमी, कर्ज देने (क्रेडिट) में बढ़ोतरी, और 22 सितंबर से GST दरों में कटौती जैसे कई कदम उठाए हैं। लेकिन इनका फायदा अर्थव्यवस्था को मिल रहा है या नहीं। यह आने वाले कुछ महीनों में पता चलेगा। अगर इन कदमों से GDP की बढ़त नहीं बढ़ी, तो भारतीय शेयर बाजार की ऊँची कीमतें (valuations) जोखिम में आ सकती हैं। हालांकि, वुड का मानना है कि रियल एस्टेट यानी प्रॉपर्टी सेक्टर अभी भी अच्छी कीमत पर है और निवेशकों के लिए आकर्षक दिख रहा है।
वुड ने कहा कि AI का सबसे ज्यादा असर भारत के आईटी सर्विसेज सेक्टर पर पड़ा है। सितंबर 2025 की तिमाही में भारतीय आईटी कंपनियों की कमाई (राजस्व) सिर्फ 1.6% बढ़ी, जो बहुत कम है। इसी वजह से इस सेक्टर के शेयरों में गिरावट आई और उनकी कीमतें (valuations) भी नीचे गईं। इसके उलट, उन्होंने बताया कि भारत में मौजूद ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर (GCCs) तेजी से बढ़ रहे हैं और देश के सर्विस सेक्टर को मजबूत करने में बड़ा रोल निभा रहे हैं।