पुरानी पेंशन प्रणाली (ओपीएस) और नई पेंशन प्रणाली (एनपीएस) पर बहस के बीच इस क्षेत्र का नियामक अगस्त से न्यूनतम सुनिश्चित प्रतिफल योजनाओं को मंजूरी दे सकता है। पेंशन फंड नियामक एवं विकास प्राधिकरण (पीएफआरडीए) ने एनपीएस के तहत योजना तैयार करने का जिम्मा ईऐंडवाई एक्चुरियल सर्विसेज एलएलपी को दिया है।
पीएफआरडीए के चेयरमैन सुप्रतिम बंद्योपाध्याय ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया, ‘पीएफआरडीए के बोर्ड ने ईवाई एक्चुरियल सर्विसेज को सलाहकार के रूप में नियुक्त किया है। एक्चुरियल के काफी सुझावों की जरूरत है। सलाहकार इन योजनाओं की डिजाइन तैयार करेगा, जिससे हमें योजनाएं शुरू करने में मदद मिलेगी।’ उन्होंने कहा कि पीएफआरडीए एनपीएस के तहत ऐसी योजनाओं को अगस्त से मंजूरी दे पाएगा।
पीएफआरडीए अधिनियम में न्यूनतम सुनिश्चित प्रतिफल योजना (मार्स) लागू करने की बात कही गई है, लेकिन 2013 में कानून पारित होने के आठ साल बाद भी इसे लागू नहीं किया गया है। उससे पहले 1 जनवरी 2004 से एनपीएस अंतरिम पेंशन नियामक के अधीन थी। असल में अधिनियम में 2013-14 के आखिर तक योजनाओं को लागू करने की बात कही गई थी। अधिनियम में कहा गया है, ‘पेंशन फंड नियामक एक गारंटीशुदा योजना तय करेगा, जो वित्त वर्ष (2013-14) के आखिर तक न्यूनतम प्रतिफल सुनिश्चित करेगी।’
इससे पहले नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) ने पीएफआरडीए अधिनियम के प्रावधानों के अनुपालन में न्यूनतम सुनिश्चित प्रतिफल योजनाएं शुरू नहीं करने के लिए पीएफआरडीए की आलोचना की थी। यह समझना मुश्किल नहीं है कि अभी तक योजना को क्यों नहीं शुरू किया गया। इससे पहले पीएफआरडीए के चेयरमैन ने कहा था कि बीमा एवं म्युचुअल फंड क्षेत्र में सुनिश्चित न्यूनतम योजनाओं ने बहुत अच्छा प्रदर्शन नहीं किया है।
बंद्योपाध्याय ने कहा था, ‘बीमा क्षेत्र में गारंटीशुदा योजनाओं को इसलिए वापस लिया गया क्योंकि लंबे समय के लिए गारंटी देना संगठन के हित में नहीं होगा। असल में सेबी किसी गारंटीशुदा योजना को प्रोत्साहन नहीं देता है।’
उन्होंने कहा कि आप जब गारंटी देते हैं तो फंड प्रबंधकों के लिए पूंजी पर्याप्तता संबंधी जरूरत बढ़ जाती है।
इसके पहले नियामक ने कहा था, ‘इस समय यह बाजार पर आधारित है, इसलिए हम पर निवेश से जुड़ा कोई जोखिम नहीं है। लेकिन जब आप गारंटी देते हैं और बाजारों में गिरावट आती है तो फंड प्रबंधकों को साफ तौर पर अतिरिक्त पूंजी की जरूरत होती है। इसलिए एक्चुरियल इनपुट जरूरी होता है। न केवल पूंजी की जरूरत होती है बल्कि शुल्क का ढांचा भी अलग होता है और अलग गारंटी फीस की भी जरूरत होती है। हमें इसका फैसला लेना होता है कि उचित गारंटी फीस कितनी होनी चाहिए।’
केंद्र ने 1 जनवरी 2004 से अपने नए कर्मचारियों के लिए एनपीएस अनिवार्य रूप से शुरू की थी। इसके बाद पश्चिम बंगाल को छोड़कर सभी राज्य सरकारों ने अपने कर्मचारियों के लिए एनपीएस को अपना लिया। हालांकि राजस्थान सरकार ने इस बार के बजट में अगले वित्त वर्ष से अपने कर्मचारियों के लिए पुरानी पेंशन व्यवस्था बहाल करने की घोषणा की है।
इसने अपने फैसले का कारण एनपीएस से कर्मचारियों में असुरक्षा की भावना पैदा होने को बताया है। पेंशनर को ओपीएस के तहत सुनिश्चित लाभ मिलते हैं, जो आम तौर पर उसे मिले पिछले मूल वेतन एवं महंगाई भत्ते के 50 फीसदी हैं।
महंगाई भत्ते को महंगाई के हिसाब से हर छह महीने में समायोजित किया जाता है। इसमें सुनिश्चित लाभ नहीं हैं लेकिन एनपीएस में योगदान परिभाषित होते हैं। मार्स एक हद तक एनपीएस की खाई को पाटता है। मार्स के तहत प्रतिशत में प्रतिफल सुनिश्ति होता है। इसके तहत केवल न्यूनतम स्तर तय किया जाता है। वास्तविक प्रतिफल बाजार पर निर्भर करता है। कमी हुई तो भरपाई प्रायोजक करता है और अधिशेष ग्राहकों के खातों में जमा किया जाता है। एनपीएस ने अब तक अन्य योजनाओं की तुलना में ज्यादा प्रतिफल दिया है।
