बीएस बातचीत
प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार समिति के पूर्व चेयरमैन और भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर सी रंगराजन ने इंदिवजल धस्माना से बातचीत में कहा कि सरकार ने 2022-23 के बजट में राजस्व अनुमान कम रखकर गलती की है। उन्होंने कहा कि नॉमिनल आर्थिक वृद्धि बजट अनुमान के 11.1 प्रतिशत की जगह 13 प्रतिशत के करीब होगी। संपादित अंश…
बजट में पूंजीगत व्यय (कैपेक्स) आधारित आर्थिक वृद्धि पर भरोसा जताया गया है। आपके मुताबिक यह कैसी रणनीति है?
कैपेक्स में बढ़ोतरी पर जोर एक दिशागत बदलाव है। वास्तव में हमें सरकार का कैपेक्स बढ़ाने व कम राजस्व व्यय की जरूरत है। बजट में कुल राजकोषीय घाटे में से 45.2 प्रतिशत पूंजीगत व्यय के वित्तपोषण में होगा। हम कोविड-19 से उबर रहे हैं और इसकी वजह से मांग बढ़ रही है। अहम मसला यह है कि हम अपनी आमदनी किस तरह से बढ़ाएं। खपत व्यय प्रभावित हुआ है। मेरा मानना है कि सरकार को इसका समाधान करना चाहिए। स्वास्थ्य पर खर्च उल्लेखनीय रूप से बढ़ा है, जिसमें टीकाकरण शामिल है। उम्मीद है कि सरकार स्वास्थ्य देखभाल और उससे जुड़े खर्च बरकरार रखेगी। मेरा मानना है कि अतिरिक्त राजकोषीय संभावना उपलब्ध है और कुल मिलाकर व्यय बढ़ाने की संभावना बनी हुई है।
आर्थिक समीक्षा में रियल जीडीपी वृद्धि दर 8-8.5 प्रतिशत रहने की संभावना है और बजट में नॉमिनल जीडीपी वृद्धि 11.1 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया गया है। क्या यह आंकड़़े वास्तविकता के करीब हैं?
आर्थिक वृद्धि 8 से 8.5 प्रतिशत रहने को लेकर मेरी मतभिन्नता है। मुझे लगता है कि यह बहुत आशावादी अनुमान है। वित्त वर्ष 22 की दूसरी छमाही में वृद्धि सिर्फ 5.6 प्रतिशत थी, जब आधार का लाभ नहीं था। 5.6 प्रतिशत से बढ़कर 8-8.5 प्रतिशत पहुंच जाने की संभावना लंबी छलांग है और जरूरी नहीं कि ऐसा हो। मैं कहूंगा कि 7-7.5 प्रतिशत वृद्धि वास्तविकता के ज्यादा करीब होगी। नॉमिनल जीडीपी वृद्धि दर 11.1 प्रतिशत महंगाई के बहुत कम स्तर पर आधारित अनुमान है। मुझे नहीं लगता कि ऐसा पहले हुआ है। महंगाई उच्च स्तर पर बनी रहेगी। मुझे लगता है कि यह 6 प्रतिशत रहेगी। ऐसे में मेरे हिसाब से अर्थव्यवस्था की नॉमिनल वृद्धि दर करीब 13 प्रतिशत रहेगी। इससे उच्च स्तर का राजस्व अनुमान आएगा। ऐसे में व्यय भी बढ़ाने की संभावना बनेगी।
भारत में आमदनी में असमानता बढ़ गई है। क्या सरकार को इसे कम करने के लिए सुपर रिच कर लगाना चाहिए?
आयकर ढांचे पर विचार करने की जरूरत है। हमारे पास कुछ ढांचे हैं। हम उन पर उपकर और अधिभार लगा सकते हैं। मुझे लगता है कि हमें सभी तरह के उपकर व अधिभार से छुटकारा पाने की जरूरत है, क्योंकि वे कराधान के स्तर की गलत तस्वीर पेश करते हैं। अब वक्त आ गया है कि केंद्र सरकार विभिन्न कर ढांचों पर विचार करे। अधिभार लगाने की जगह हम एक और कर ढांचा पेश कर सकते हैं, जो हमारे मौजूदा ढांचे के ऊपर हो।
वह कर ढांचा क्या 35-40 प्रतिशत का हो सकता है?
उदारीकरण के बाद में कराधान के उचित स्तर की ओर जाने की जरूरत है। मेरे पास ऐसा कोई आंकड़ा नहीं है, लेकिन हमें इस पर बात करने की जरूरत है। निश्चित रूप से आप जितने की बात कर रहे हैं, वह संभव है। 35 प्रतिशत या इससे कुछ ज्यादा किया जा सकता है, क्योंकि इस समय तमाम उपकर व अधिभार लगते हैं, जो 30 प्रतिशत से ऊपर जाते हैं। मुझे लगता है कि हम 35 से 40 प्रतिशत के बीच का विकल्प अपना सकते हैं। यह 40 प्रतिशत से कुछ कम हो सकता है।
यह संपदा बनाने वालों को डराएगा नहीं?
इस मामले में हमेशा टकराव पैदा होता है। इसमें संतुलन बनाने की जरूरत है। कुल मिलाकर हमने 2 साल पहले कॉर्पोरेट कर में छूट दिया था, जिससे अतिरिक्त निवेश आ सके। 2023 तक उत्पादन की शर्त और एक साल के लिए बढ़ा दी गई है। इस बात को लेकर हमेशा टकराव रहता है कि कराधान का स्तर क्या हो।
आत्मनिर्भर भारत कार्यक्रम के बजट के लिए कई उत्पादों पर सीमा शुल्क बढ़ाया गया है। क्या यह सही रणनीति है या संरक्षणवादी कदम है?
मुझे लगता है कि यह गलत दिशा में एक कदम है। कुछ परिस्थितियां हैं, जहां सीमा शुल्क बढ़ाना जरूरी है, खासकर डंपिंग के मामलों में। लेकिन एक बजट के बाद अगले बजट में शुल्कों में बढ़ोतरी 1991 के पहले के बजटों की स्थिति की ओर ले जाता है। मुझे लगता है कि यह उचित नहीं है।