वित्त मंत्रालय 5,000 करोड़ रुपये की पूंजी लगाकर एग्रीकल्चर क्रेडिट गारंटी कार्पोरेशन बनाने के बारे में विचार किया था। यह बैंकों के डूबे हुए धन (बैड लोन्स) के मामलों के लिए बनना था। हालांकि मंत्रालय ने बजट में 60,000 करोड़ रुपये के कृषि कर्ज में छूट और राहत पैकेज की घोषणा की है, और इस योजना को ठंडे बस्ते में डाल दिया।
गारंटी कंपनी कर्ज लेने वालों के देनदारी न किए जाने के मामलों में उधारी देने वालों के लिए गारंटर का काम करेगी। बैंकों ने ऐसे कर्ज के लिए कम प्रावधान रखे हैं और और कृषि ऋण दे रहे हैं। हालांकि कर्ज में छूट और राहत पैकेज के 60,000 करोड़ रुपये तक पहुंच जाने के बाद इस योजना को स्थगित कर दिया गया।
एक सरकारी अधिकारी ने कहा, ‘हमने विचार किया कि अगर किसानों को सीधे छूट दी जाती है तो यह पारदर्शी रहेगा और इसका किसानों को सीधा लाभ मिलेगा।’
बजट में दिए गए 60 हजार करोड़ रुपये छूट में 37 हजार करोड़ यानी 61 प्रतिशत हिस्सा को-आपरेटिव बैंकों का है। क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों (आरआरबी) और अधिसूचित व्यावसायिक बैंकों के खाते में क्रमश: 12,000 करोड़ और 11,000 करोड़ रुपये आता है। कृषि पैकेज के बारे में विस्तृत ब्योरा 25 मार्च तक अंतिम रूप से आने का अनुमान है। जैसी कि सरकार की योजना है, कर्ज का भुगतान तीन साल में किया जाना है। इसके मुताबिक कर छूट का भार वित्त वर्ष 2008-09 में 25,000 करोड़ रुपया होगा।
अधिकारी के मुताबिक वैद्यनाथन समिति की संस्तुति के मुताबिक को-आपरेटिव बैंकों को मदद पर लगे लगाम के बाद कर्ज में छूट दिया जाना भी शामिल है।
डूबे हुए धन के मामलों में को-आपरेटिव और बैंक भी कुछ नुकसान उठा सकते हैं, जिसे उन्होंने मानदंडों के मुताबिक डूबे हुए धन के खाते में डाल रखा है।सरकार ऐसे कर्ज का 50 प्रतिशत या 75 प्रतिशत हिस्सा दे सकती है। हालांकि पैकेज में फार्म लोन को शामिल नहीं किया गया है, जिसे खाते से पूरी तरह से हटा दिया गया है।