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बजट में हो सकता है 6 प्रतिशत राजकोषीय घाटे का लक्ष्य

Last Updated- December 13, 2022 | 10:58 AM IST
Budget 2023

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण वित्त वर्ष 2024 के लिए पेश करने जा रही बजट में राजकोषीय घाटे का लक्ष्य सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 5.5 से 6 प्रतिशत के बराबर रख सकती हैं। इस मामले से जुड़े लोगों ने यह जानकारी दी है। इसका मतलब यह है कि सरकार अपने राजकोषीय समेकन के खाके पर कायम रहेगी, जिसके तहत वित्त वर्ष 26 तक राजकोषीय घाटा 4.5 प्रतिशत तक लाने का लक्ष्य रखा है।

एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘हम मध्यम अवधि के राजकोषीय समेकन के खाके पर टिके रहेंगे, जिसकी प्रतिबद्धता वित्त मंत्री ने 2021 के केंद्रीय बजट में जताई थी।’वित्त वर्ष 23 के केंद्रीय बजट के साथ संसद में पेश पिछले मध्यावधि राजकोषीय नीति वक्तव्य में वित्त मंत्रालय ने कहा था, ‘वित्त वर्ष 22 के बजट में की गई प्रतिबद्धता के अनुरूप, सरकार वित्त वर्ष 26 तक राजकोषीय घाटा जीडीपी के 4.5 फीसदी से नीचे लाने के लिए राजकोषीय समेकन का एक व्यापक मार्ग अपनाएगी।

इसमें कहा गया था, ‘सरकार टिकाऊ, व्यापक आधार वाली आर्थिक वृद्धि हासिल करने के अपने प्रयासों को निरंतर जारी रखेगी और राजकोषीय शुद्धता के मार्ग का पालन करते हुए ऐसे उपाय करेगी, जो लोगों के जीवन-आजीविका की रक्षा के लिए आवश्यक हो सकते हैं।’

ऐसे कई वैश्विक और घरेलू आर्थिक विचार हैं जिन पर मंत्रालय के नीति निर्माता विचार कर रहे हैं। उन्हें विश्वास है कि उपर्युक्त सीमा में एक लक्ष्य प्राप्त किया जा सकता है। तुलनात्मक रूप से भारतीय अर्थव्यवस्था मजबूत रहने का अनुमान है। अधिकारियों को वित्त वर्ष 24 में भी प्रत्यक्ष कर संग्रह बेहतर रहने की उम्मीद है। अधिकारी ने कहा कि प्रत्यक्ष कर अगले साल 15-20 फीसदी तक बढ़ सकता है, जो इस साल बजट में अनुमानित 13.6 फीसदी वृद्धि दर से काफी ज्यादा है।

हालांकि, वैश्विक विपरीत परिस्थितियां मामलों को जटिल बना सकती हैं। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के नवीनतम वैश्विक आर्थिक परिदृश्य के अनुसार 2023 में वैश्विक अर्थव्यवस्था का एक तिहाई हिस्सा मंदी की चपेट में आ सकता है। इसमें कई पश्चिमी देश शामिल हैं, जो भारत के बड़े व्यापारिक भागीदार हैं। साथ ही चीन भी मंदी की चपेट में आ सकता है, जिसने कोविड-19 को लेकर सख्त नीति अपना रखी है।

एक दूसरे अधिकारी ने कहा, ‘भारतीय अर्थव्यवस्था पश्चिम में मंदी से प्रभावित होगी। हमारे निर्यात और आयात दोनों प्रभावित होंगे और बदले में उत्पाद शुल्क और वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) संग्रह प्रभावित हो सकते हैं। जीएसटी के मोर्चे पर आधार के असर का भी मसला है।’ अधिकारियों का कहना है कि मंदी का असर विनिर्माण और अन्य संबंधित क्षेत्रों पर पड़ेगा और इसलिए नीति निर्माताओं को सतर्क रहना होगा।

सीतारमण के साथ बजट पूर्व बैठकों में, उद्योग निकायों और अर्थशास्त्रियों ने मांग को बढ़ावा देने और पूंजीगत लाभ कर को युक्तिसंगत बनाने के लिए व्यक्तिगत आय करों में कुछ छूट की मांग की। हालांकि, बड़े कर परिवर्तन की संभावना नहीं है।व्यय के मोर्चे पर, नीति निर्माता प्रमुख कल्याणकारी और सब्सिडी योजनाओं के लिए उच्च व्यय प्रतिबद्धताओं के एक और वर्ष के लिए तैयारी कर रहे हैं। हालांकि, उम्मीद यह है कि गैर-प्राथमिकता वाले खर्चों पर अंकुश लगाने की चल रही कवायद से आने वाले वर्ष में अधिक बचत होने वाली है।

First Published - December 12, 2022 | 5:49 PM IST

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