भारत में गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले लोगों की संख्या में कमी आई है। विश्व बैंक की नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार यह 1990 के 43.1 करोड़ से कम होकर 2024 में 12.9 करोड़ रह गई है।
हालांकि यह आंकड़ा 2.15 डॉलर प्रति दिन के मानक पर आधारित है। मगर 6.85 डॉलर प्रति दिन के मानक (मध्यम-आय वाले देशों के लिए निर्धारित सीमा) के आधार पर 1990 की तुलना में 2024 में अधिक लोग गरीबी रेखा से नीचे जीवन गुजर-बसर कर रहे हैं। रिपोर्ट के कारण भारत में आबादी में तेजी वृद्धि इसका प्रमुख कारण है।
विश्व बैंक ने इससे पहले कहा था कि भारत में अत्यंत गरीब लोगों की संख्या 2021 में 3.8 करोड़ कम होकर 16.74 करोड़ रह गई थी। इससे पूर्व दो वर्षों के दौरान इसमें इजाफा देखा गया था।
‘पॉवर्टी, प्रॉस्पेरिटी और प्लानेटः पाथवेज आउट ऑफ द पॉलिक्राइसिस’शीर्षक नाम से मंगलवार को जारी नवीनतम रिपोर्ट में यह भी स्पष्ट किया गया है कि वर्ष 2022-23 के लिए जारी घरेलू खपत एवं व्यय सर्वेक्षण (एचसीईएस) में इन नए आंकड़ों पर विचार नहीं किया गया है।
विश्व बैंक की इस रिपोर्ट में कहा गया है, ‘एचसीईएस में इन नए आंकड़ों पर विचार नहीं किया गया है क्योंकि जरूरी विश्लेषण कार्य समय पर पूरे नहीं हो पाए थे। हालांकि, इन दोनों नए आंकड़ों को शामिल करने पर दुनिया में गरीबी के आंकड़ों पर कितना फर्क पड़ेगा, यह स्पष्ट नहीं है मगर रिपोर्ट में कुछ ठोस निष्कर्ष दिए गए हैं। अफ्रीका के सहारा क्षेत्र और अन्य पिछड़े देशों में अत्यंत गरीबी की स्थिति विकराल हुई है। इसे देखते हुए 2030 तक अत्यंत गरीबी मिटा पाने का लक्ष्य पूरा होता नहीं दिख रहा है।‘
दुनिया में घनघोर गरीबी में कमी आने की दर ठहर गई है। इसमें कहा गया है कि 2020-30 का दशक गरीबी कम करने के लिहाज से सफल नहीं माना जा सकता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि मौजूदा रफ्तार के साथ दुनिया में घनघोर गरीबी मिटाने में कई दशक और लग जाएंगे और रोजाना 6.85 डॉलर से ऊपर लोगों को ले जाने में एक शताब्दी से भी अधिक समय लग जाएगा।