भारतीय रेलवे को 1,000वां डीजल इंजन (लोकोमोटिव) देने के बाद, पिट्सबर्ग की परिवहन कंपनी की भारतीय सहायक कंपनी अब बिहार के कारखाने को निर्यात करने वाली इकाई बनाने की योजना बना रही है
साल 2019 की शुरुआत में वैबटेक कॉरपोरेशन (पहले जीई ट्रांसपोर्टेशन) को बिहार के मढ़ौरा में एक नया जीवन दिखा। शहर पहले से अपने उद्योग के लिए जाना जाता रहा है। उस वक्त बिज़नेस स्टैंडर्ड ने इस जगह को बंद पड़े कारखानों की कब्रगाह बताया था क्योंकि यहां मॉर्टन कन्फेक्शनरी, सारण डिस्टिलरी, सारण इंजीनियरिंग और कानपुर शुगर वर्क्स के जैसे कई कारखाने बंद पड़े थे।
अब चार साल के बाद मढ़ौरा को मेक इन इंडिया का सबसे बड़ा प्रतीक माना जा रहा है। यह रेलवे में सबसे बड़े प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) में से एक है। वैश्विक महामारी के दौरान फरवरी 2023 में वैबटेक ने मढ़ौरा से अपने 500वें ट्रेन इंजन की समय पर आपूर्ति की।
यह भारत सरकार के मेक इन इंडिया सार्वजनिक-निजी भागीदारी कार्यक्रम के तहत 2015 में 2.5 अरब डॉलर के सौदे के हिस्से के रूप में एक और मील का पत्थर था। समझौते के तहत 10 वर्षों में 1,000 उच्च शक्ति के डीजल माल इंजनों को बनाना और फिर इसकी आपूर्ति करना था।
परियोजना की राह इतनी भी आसान नहीं थी क्योंकि मढ़ौरा में डीजल इंजन के लिए किए गए समझौते के दो साल बाद ही 2017 में भारतीय रेलवे 100 फीसदी विद्युतीकरण की योजना तैयार कर रहा था। उस वक्त जीई ट्रांसपोर्टेशन की जीई इलेक्ट्रिक ने अपनी चिंता जाहिर की। फिर बाद में उसे आश्वस्त किया गया कि भारतीय रेलवे मढ़ौरा से सभी 1,000 डीजल इंजन ले जाएगा।
कारोबार के लिए कारखाने की शुरुआत 17 सितंबर, 2018 को हुई और इसके एक साल बाद ही जीई ट्रांसपोर्टेशन का विलय पिट्सबर्ग के वैबटेक कॉरपोरेशन के साथ हो गया। लेकि, अभी भी पुराना सवाल जस का तस बना है कि 1,000वें इजन की आपूर्ति के बाद कारखाने का क्या होगा? क्या मढ़ौरा के अन्य कारखानों की तरह भी इसका समान हश्र होगा?
वैबटेक को लगता है कि इसका जवाब। कंपनी मढ़ौरा को निर्यात करने वाली इकाई बनाने की सोच रही है। वैबटेक के दक्षिण एशिया और दक्षिण पूर्व एशिया के प्रबंध निदेशक और बिक्री और सरकारी मामलों के उपाध्यक्ष संदीप सलोट ने कहा, ‘हमारे पास 1,000 इंजन देने के लिए पांच साल का वक्त है। इस पर चर्चा जारी है कि क्या हम ऐसी सुविधा का लाभ न केवल भारत बल्कि दुनियाभर के लिए उठा सकते हैं।’ उन्होंने कहा, ‘हमारी नजर इस पर भी है कि हम भारतीय रेलवे के साथ साझेदारी में निर्यात कैसे कर सकते हैं। क्या ऐसी भी कोई संभावना है कि हम उनके साथ यह देखने के लिए भागीदारी करें कि पड़ोसी देशों या उन देशों में जहां भारत सरकार समर्थन करती है और कर्ज दे रही है वहां कौन सी परियोजनाएं चल रही हैं?’
लॉजिस्टिक्स के नजरिये से भी दक्षिण एशिया, दक्षिण पूर्व एशिया और चीन भारत से निर्यात के लिए फायदेमंद हो सकते हैं। वैबटेक की वरिष्ठ उपाध्यक्ष और रीजनल लीडर सुजाता नारायण ने कहा, ‘सरकार की जिन मुक्त व्यापार समझौतों पर वार्ता चल रही है उसमें इंजन का निर्यात भी आसानी से हो सकता है। हम भारत में एकमात्र डीजल इंजन निर्माता होने के नाते भारतीय रेलवे का भी समर्थन करेंगे।’
वैश्विक स्तर पर अब वैबटेक काफी तेजी से बैटरी इलेक्ट्रिक, हाइब्रिड और हाइड्रोजन इंजन पर भी नजर बनाए हुए है। एक कंपनी के रूप में वैबटेक के लिए भारत की ओर से इलेक्ट्रिक के लिए दबाव जोर देना मदद कर रहा है। यह देश के सबसे बड़े कल-पुर्जा विनिर्माताओं में से एक है। सलोट कहते हैं, ‘यह ध्यान देना जरूरी है कि एक इलेक्ट्रिक इंजन के सभी महत्त्वपूर्ण कलपुर्जों की आपूर्ति भी हम करते हैं। चाहे वह पैंटोग्राफ, ब्रेक, कप्लर्स हों सभी कलपुर्जे वैबटेक पोर्टफोलियो का हिस्सा हैं और यह सभी देश में ही बनते हैं। इस लिहाज से विद्युत इंजनों को बढ़ावा देने से हमें मदद मिल रही है।’
कंपनी के अनुसार भारतीय रेल के सभी रोलिंग स्टॉक में वैबटेक के ही कलपुर्जे होते हैं।
यह भारत में रोलिंग स्टॉक के लिए सबसे बड़ा ब्रेक सप्लायर है। भारतीय रेलवे और मेट्रो ट्रेन दोनों के लिए आपूर्ति करता है। अब, यह वंदे भारत सुपरफास्ट ट्रेनों में ब्रेक सिस्टम की आपूर्ति करने की प्रक्रिया में है। तमिलनाडु के होसुर और हिमाचल प्रदेश के बद्दी की इकाई के अलावा अब कंपनी रोहतक में 200 करोड़ रुपये का संयंत्र स्थापित करने वाली है।
1.5 अरब डॉलर की मजबूत ऑर्डर बुक ही भारतीय रेलवे में वैबटेक की बढ़ती ताकत का प्रमाण है। कैलेंडर वर्ष 2022 में अमेरिकी कंपनी का भारत में 47.2 करोड़ डॉलर का कारोबार था। साल 2025 में इसके एक अऱब डॉलर का उद्यम होने का अनुमान है।
नारायण कहती हैं, ‘जब हम उद्यम की बात करते हैं तो यह केवल भारत के व्यापार के लिए नहीं है बल्कि विश्व के लिए भारत ने क्या किया है उसके लिए भी है।’
उन्होंने कहा कि जब साल 2025 तक भारत का कारोबार 75 करोड़ डॉलर तक पहुंच जाएगा तब देश का निर्यात भी अभी के 10 करोड़ डॉलर से बढ़कर 25 से 30 करोड़ डॉलर हो जाएगा। नारायण ने बताया, ‘इसमें हमारे वैश्विक कारखानों के लिए भारत से कलपुर्जों की सोर्सिंग, ग्राहकों के लिए हमारे कारखानों में उत्पादों का निर्माण और हमारे बेंगलूरु केंद्र से प्रदान की जाने वाली इंजीनियरिंग सेवाएं शामिल हैं।’