एडवांस रूलिंग प्राधिकरण (एएआर) ने अमेरिका की हेज फंड कंपनी टाइगर ग्लोबल मैनेजमेंट से संबंधित मॉरीशस की कंपनियों की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने वॉलमार्ट-फ्लिपकार्ट सौदे में पूंजीगत लाभ पर शून्य विदहोल्डिंग कर का लाभ लेने की बात कही गई थी।
वॉलमार्ट-फ्लिपकार्ट के बीच 16 अरब डॉलर का सौदा मई 2018 में हुआ था। टाइगर ग्लोबल सचिन बंसल और बिन्नी बंसल की फ्लिपकार्ट में प्रमुख शेयरधारक थी। यह मामला मॉरीशस की तीन इकाइयों से जुड़ा हुआ है – टाइगर ग्लोबल इंटरनैशनल होल्डिंग्स ने फ्लिपकार्ट सिंगापुर में अपनी हिस्सेदारी को 2018 में लक्जमबर्ग की कंपनी फिट होल्डिंग्स को 14,500 करोड़ रुपये से अधिक में बेच दिया था।
इसके बाद कर प्राधिकरण द्वारा धारा 197 के तहत शून्य विदहोल्डिंग से इनकार करने के बाद एएआर में राहत के लिए गई थी। शेयर की यह बिक्री फ्लिपकार्ट में अपनी हिस्सेदारी अमेरिकी रिटेल दिग्गज वॉलमार्ट को बेचने का हिस्सा था।
न्यायिक निकाय ने इस याचिका को इस आधार पर खारिज कर दिया कि प्रथम दृष्टया शेयर की बिक्री मॉरीशस की इकाइयों द्वारा की गई थी और इस लेनदेन को भारत-मॉरीशस दोहरे कराधान निषेध समझौते (डीटीएए) का लाभ लेने और कर देनदारी से बचने के लिए किया गया था। यह पाया गया कि कंपनियों के प्रमुख और उनका नियंत्रण मूल रूप से मॉरीशस स्थित नहीं होकर अमेरिका में था।
आदेश में यह भी कहा गया कि आवेदक कंपनी द्वारा भारत में कोई प्रत्यक्ष विदेशी निवेश नहीं किया गया था, इसलिए निवेश में भागीदारी का कोई सवाल ही नहीं हो सकता है। आवेदकों ने फ्लिपकार्ट के शेयरों में निवेश किया था, जो सिंगापुर की कंपनी थी। ऐसे में मूल निवेश गंतव्य सिंगापुर था न कि भारत।
एएआर ने आगे यह भी कहा कि आवेदकों ने भारत में कारोबार के परिचालन की अवधि, भारत में कर राजस्व जुटाने, कंपनी से निकलने आदि के बारे में भी स्पष्ट जानकारी नहीं दी। एएआर ने कहा कि भारत में कोई रणनीतिक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश नहीं करने और न ही भारत में कारोबार का परिचालन किया गया। ऐसे में इस व्यवस्था को विशेेष रूप से कर बचाने के मकसद से तैयार किया गया था।
भारत और मॉरीशस के बीच डीटीएए का मुख्य मकसद भारतीय कंपनियों के शेयरों के लेनदेन से होने वाले पूंजीगत लाभ में छूट देना है और भारत से बाहर की कंपनी के शेयरों के लेनदेन में इस तरह की छूट देने का प्रावधान नहीं है।
आवेदकों का वास्तविक नियंत्रण और प्रबंधन मॉरीशस न होकर अमेरिका में था। आवेदक कंपनी को केवल डीटीएए का लाभ उठाने के लिए आगे किया गया था। ऐसे में किसी तरह के कर छूट देने का प्रवाधान नहीं है और उनकी याचिका खारिज की जाती हैै।
आदेश में सौदे के बारे में कहा गया है कि कर विभाग ने पाया कि टाइगर ग्लोबल की मॉरीशस की कंपनियों ने 2012 से 2015 के बीच सिंगापुर कंपनी के जरिये फ्लिपकार्ट में 2.6 करोड़ शेयर खरीदे थे। उनमें से 1.62 करोड़ शेयर को लक्जम्बर्ग की फर्म को हस्तांतरित कर दिया गया था। इस सौदे से पहले हेज फंड ने कर विभाग से विदहोल्डिंग कर में छूट की मांग की थी, जिसे विभाग ने अस्वीकार कर दिया था। उसी महीने कर विभाग ने धारा 197 के तहत 886 करोड़ रुपयेे के विदहोल्डिंग कर की मांग की।
कर अधिकारियों ने पाया कि यह व्यवस्था कर देनदारी से बचने के लिए की गई थी और उन्होंने मॉरीशस की इकाइयों के स्वामित्व ढांचे पर भी आपत्ति जताई थी। इसके अनुसार आवेदक कंपनियां स्वतंत्र तरीके से काम नहीं कर रही थीं, बल्कि अमेरिका स्थित वास्तविक लाभार्थी के पक्ष में काम कर रही थीं। आवेदक कंपनियां टाइगर ग्लोबल मैनेजमेंट एलएलसी यूएसए का हिस्सा हैं और कैमन आइलैंड तथा मॉरीशस की कंपनियों से संबद्घ हैं।
एकेएम ग्लोबल के टैक्स पार्टनर अमित माहेश्वरी ने कहा, ‘एएआर द्वारा करदाता के आवेदन को खारिज करने का यह एक और मामला है जिसमें लेनदेन खास तौर पर कर देनदारी से बचने के लिए किया गया था। सरकार को धारा 245आर(2) के प्रावधान को खत्म करना चाहिए, जिसमें एएआर को इस तरह के आवेदनों को खारिज करने की अनुमति दी गई है। असल में इसमें बेवजह देरी होती है और कर विभाग को ऐसे हरेक आवेदनों, खास तौर पर मॉरीशस से जुड़े, का विरोध करना पड़ता है।’
