कंपनियों को कोविड-19 महामारी के कारण लगाए गए लॉकडाउन के बीच अपने नियमित धमार्थ कॉर्पोरेट सामाजिक दायित्व (सीएसआर) को पूरा करने में मुश्किल हो रही है।
कुछ कंपनियों को तो चालू परियोजना पर रोक लगानी पड़ी है। वहीं कुछ अन्य कंपनियों ने सामाजिक खर्च की अपनी योजना में बदलाव किया है। महामारी से मुकाबले के लिए कई कंपनियों ने विगत वर्षों में प्रमुखता में रही परियोजनाओं को अपनी सूची से बाहर कर दिया है। इन मामलों में कंपनियों को परामर्श देने वालों और सूचीबद्घ कंपनियों के प्रमुख अधिकारियों से बातचीत करने पर पता चला कि कंपनियों के सामाजिक खर्च की मौजूदा योजना में बदलाव आया है। कंपनियां पहले जो पैसा कैंसर अस्पतालों को दे रही थी, उसे अब महामारी से लडऩे के लिए देने जा रही हैं। यह कदम ऐसी कंपनियां उठा रही हैं जो अभी भी अपनी देनदारियों को पूरा करने में सक्षम हैं।
पुणे में कंपनी सेकरेट्री गौरव पिंगले के मुताबिक मौजूदा परिदृश्य में धन की भारी किल्लत है। कई कंपनियों के अस्तित्व पर ही संकट आ गया है। कंपनी सेकरेट्री का काम कंपनियों को सीएसआर सहित उनकी कानूनी देनदारियों को लेकर उन्हें सलाह देना होता है।
उन्होंने कहा, ‘कंपनियां तुरंत सामाजिक खर्च करने को लेकर उत्साहित नहीं हैं।’
डेलॉइट इंडिया में पार्टनर विरल ठक्कर ने कहा कि आरंभ में लॉकडाउन के कारण कंपनियों की पहले से नियोजित गतिविधियों पर भी असर पड़ा था।
उन्होंने कहा, ‘प्रगति पर कुछ न कुछ असर पड़ा है लेकिन यह क्षेत्र विशेष के ऊपर निर्भर करता है।’
डेलॉइट की ओर से शुक्रवार को जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि मौजूदा परिस्थिति की चुनौतियों को देखते हुए कंपनियों की अपनी मौजूदा योजनाओं जैसे कि स्वास्थ्य, ग्रामीण विकास या परियोजनाओं में बदलाव करने की जरूरत पड़ सकती है। सामजिक जिम्मेदारी को कोविड-19 पर खर्च किया जा सकता है। उदाहरण के लिए कंपनियां शिक्षा के लक्ष्य को हासिल करने में मदद करने के लिए दूरस्थ शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए इंटरनेट सुविधा और डिजिटल उपकरणों सहित आवश्यक तकनीकी बुनियादी ढांचे के विकास के लिए प्रावधान कर सकती है।
सामाजिक खर्च में बदलाव का यह रुझान दक्षिण भारत की एक कंपनी में भी नजर आया है। उसके कार्यकारी ने कहा उनकी कंपनी ने सामाजिक दायित्व के फंड का पैसा कोविड-19 परियोजना पर किया है। विगत वर्षों में इस धन से प्राकृतिक आपदाओं के पीडि़तों की मदद की जाती थी।
सीएसआर लक्ष्यों को पूरा करने में विपरीत परिस्थितियों का सामना करना पड़ रहा है जबकि हाल के वर्षों में इसके अनुपालन मे सुधार आया है। कारपोरेट मामलों के मंत्रालय के आंकड़ों से पता चलता है कि बहुत सी कंपनियों के पास आश्यक खर्चों के लिए भी पैसे कम पड़ रहे हैं जिसे उन्होंने पहले पूरा किया था बल्कि 2014-15 में खर्च लक्ष्य के पार चला गया था।
