दूरसंचार विभाग जल्द ही 100 दिनों का एक अपडेटेड एजेंडा पेश करेगा जिसके केंद्र में साल 2023 के अहम दूरसंचार कानून के लिए जरूरी नियमों को लाना होगा। इन नियमों की अधिसूचना के बगैर, कानून के कई बड़े हिस्से को लागू नहीं किया जा सकता है। इन नए नियमों में स्पेक्ट्रम देने की प्रक्रिया भी शामिल है, जिसमें संचार उपग्रह के लिए स्पेक्ट्रम देना भी शामिल है।
अभी इनके लिए संदर्भ शर्तें (टीओआर) तय की जा रही हैं। इसके साथ ही भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) इस मुद्दे पर सलाह-मशविरा का ताजा दौर शुरू करेगा।
एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘विचार यह है कि संदर्भ शर्तें जल्द से जल्द तैयार किए जाएं ताकि ट्राई अपने उद्योग हितधारकों के साथ परामर्श शुरू कर सके। इस संदर्भ में काफी काम पहले ही हो चुका है। इसमें आवंटन की प्रक्रिया, इस्तेमाल की जाने वाली फ्रीक्वेंसी, स्पेक्ट्रम की कीमत और राष्ट्रीय सुरक्षा के संबंध में सैटेलाइट परिचालकों द्वारा पूरी की जाने वाली शर्तों का स्पष्टीकरण भी होगा।’
सैटेलाइट या ऑर्बिट, रेडियो स्पेक्ट्रम का एक खंड है जो तब उपलब्ध होता है जब सैटेलाइट को ऑर्बिट में रखा जाता है। इस बात पर पिछले कुछ सालों से चर्चा चल रही है कि दुर्लभ संसाधन की नीलामी की जानी चाहिए या इसका आवंटन सरकार द्वारा किया जाना चाहिए। लेकिन दूरसंचार अधिनियम, 2023 में 19 क्षेत्रों में सैटेलाइट आधारित सेवाएं शामिल की गईं थीं जिसमें केंद्र को सीधे तौर पर स्पेक्ट्रम देने का अधिकार है।
इससे अब यह बहस खत्म हो गई है कि स्पेक्ट्रम की नीलामी करनी चाहिए या इसका आवंटन करना चाहिए। दूरसंचार विभाग सैटेलाइट के लिए स्पेक्ट्रम देने के नए नियम बना रहा है।
नए नए नियमों के तहत टेलीपोर्ट, टेलीविजन चैनल, डी2एच, डिजिटल सैटेलाइट न्यूज गैदरिंग, वेरी स्मॉल अपर्चर टर्मिनल (वीसैट) और एल और एस बैंड में मोबाइल सैटेलाइट सेवाओं को नीलामी के बगैर स्पेक्ट्रम दिया जा सकता है।
नीलामी से इतर स्पेक्ट्रम के प्रशासनिक आवंटन के चलते कई परिचालकों को स्पेक्ट्रम के एक विशेष बैंड का इस्तेमाल करने की अनुमति मिल जाएगी।
दूरसंचार विभाग इस बात के लिए भी नियम बना रहा है कि राष्ट्रीय सुरक्षा, किसी अपराध को रोकने या सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखने के आधार पर किस तरह फोन कॉल या मेसेज के प्रसार को रोका जा सकता है। इन नियमों को बनाने के लिए भी सलाह ली जा रही है।