उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (SEBI), केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) और कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय (एमसीए) को इंडियाबुल्स हाउसिंग फाइनैंस लिमिटेड (आईएचएफएल, अब सम्मान कैपिटल) के खिलाफ आरोपों की जांच में ‘निष्क्रिय रवैया’ अपनाने के लिए कड़ी फटकार लगाई।
यह मामला सिटीजन्स व्हिसल ब्लोअर फोरम द्वारा अनियमितताओं की विशेष जांच टीम (एसआईटी) से जांच कराने की मांग वाली याचिका से सुर्खियों में आया है। न्यायमूर्ति सूर्य कांत, उज्जल भुइयां और एन कोटिश्वर सिंह के पीठ ने सेबी की कड़ी आलोचना की और नियामक के आचरण में विसंगतियों की बात भी उठाई।
न्यायमूर्ति कांत ने टिप्पणी की, ‘जब संपत्तियों को लेने और बेचने का सवाल आता है तब आप कहते हैं कि हम देश में एकमात्र अधिकार क्षेत्र वाले प्राधिकरण हैं। लेकिन जब जांच का सवाल आता है तब? क्योंकि आपके अधिकारियों के कुछ निहित स्वार्थ हैं? हर रोज हम सेबी का दोहरा मापदंड देखते हैं।’
न्यायमूर्ति कांत ने एक पिछली घटना का जिक्र किया जिसमें शीर्ष अदालत ने एक उच्च अधिकार प्राप्त समिति का गठन किया था। उन्होंने कहा कि सेबी का रुख था कि वह एकमात्र एजेंसी है जिसके पास संपत्तियों की नीलामी करने का अधिकार है।
न्यायमूर्ति कांत ने कहा, ‘आप जो नीलामी कर रहे हैं, वह हम जानते हैं। तीस करोड़ की संपत्ति, आपने कुछ लाख में बेच दी। जब अदालतें निर्देश दे रही हैं तब आपको अपना वैधानिक कर्तव्य निभाना चाहिए। आप कहते हैं कि आपके पास शक्ति नहीं है।’
पीठ ने सीबीआई द्वारा मामले को संभालने पर भी असंतोष व्यक्त किया। न्यायमूर्ति कांत ने टिप्पणी की, ‘यह हैरानी की बात है कि सीबीआई का इस मामले में बहुत ही शांत रवैया है। यह आखिरकार जनता का पैसा है। भले ही 10 फीसदी आरोप सही हों, फिर भी कुछ बड़े पैमाने पर लेनदेन हैं जिन्हें संदिग्ध कहा जा सकता है। एमसीए इस मामले को इस तरह बंद करने में क्यों लिप्त है? इसमें उनकी क्या दिलचस्पी है?’
अदालत में की गई टिप्पणियों पर प्रतिक्रिया देते हुए, सम्मान कैपिटल का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने कहा, ‘उच्चतम न्यायालय के समक्ष मौजूदा याचिका में सम्मान कैपिटल के खिलाफ कोई आरोप नहीं है। अदालत ने पूर्व प्रवर्तक, समीर गहलोत के बारे में उठाई गई चिंताओं का जिक्र किया है, जिनकी आज कंपनी में कोई हिस्सेदारी या भागीदारी नहीं है। न्यायालय ने अपने आदेश में स्पष्ट किया है कि उसने इन आरोपों के गुण-दोष पर कोई टिप्पणी नहीं की है और केवल अधिकारियों को मामले की फिर से जांच करने की अनुमति दी है।’
उन्होंने आगे कहा, ‘हमें इस प्रक्रिया पर कोई आपत्ति नहीं है। चूंकि किसी भी प्राधिकरण की तरफ से सम्मान कैपिटल के खिलाफ कोई आरोप नहीं है ऐसे में हम किसी भी जांच के लिए पूरी तरह से खुले हैं जो एजेंसियां करना चाहें। हमारे पास छिपाने के लिए कुछ भी नहीं है।’
30 जुलाई को, सीबीआई ने शीर्ष अदालत को बताया कि वह आईएचएफएल में किसी भी अनियमितता की जांच नहीं कर रही है और उसे कॉरपोरेट संस्थाओं को ऋण वितरित करने में कंपनी में कोई अनियमितता नहीं मिली है।
एनजीओ ने उच्च न्यायालय के 2 फरवरी, 2024 के आदेश को चुनौती दी है, जिसमें मामले में जांच का आदेश देने से इनकार कर दिया गया था। एनजीओ की याचिका में आरोप लगाया गया है कि आईएचएफएल द्वारा कंपनियों को ऋण दिए गए थे जिन्होंने आईएचएफएल के पूर्व प्रवर्तक समीर गहलोत द्वारा प्रचारित फर्मों को वापस पूंजी दी गई।