भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (SEBI) को अदाणी मामले से संबंधित विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPI) के अंतिम लाभार्थियों की जानकारी प्राप्त करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। इसलिए नियामक विदेशी न्यायिक क्षेत्र से इस तरह की जानकारी जुटाने के लिए केंद्र सरकार या कानून प्रवर्तन एजेंसियों की मदद मांग सकता है।
घटनाक्रम की जानकारी रखने वाले दो सूत्रों ने बताया कि बाजार नियामक इस मामले को केंद्रीय मंत्रालयों के पास भेजने पर विचार कर रहा है क्योंकि कुछ विदेशी नियामक गोपनीयता भंग होने का हवाला देते हुए मांगी गई जानकारी मुहैया नहीं कर रहे हैं।
समझा जाता है कि SEBI ने बरमूडा, लक्जमबर्ग और स्विट्जरलैंड सहित कई देशों के नियामकों को पत्र लिखकर विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों के बारे में जानकारी मांगी है। इस बारे में जानकारी के लिए SEBI को ईमेल किया गया, लेकिन खबर लिखे जाने तक जवाब नहीं आया।
कानून प्रवर्तन एजेंसियां सूचना प्राप्त करने के लिए लेटर रेगुलेटरी (LR) और परस्पर कानूनी सहायता संधि के माध्यम से न्यायिक सहायता (MLAT) का विकल्प अपना सकती हैं। LR जांच में न्यायिक मदद के लिए विदेश की अदालत से किया गया औपचारिक अनुरोध होता है और एमएलएटी अनुरोध विदेश में रहने वाले गवाहों की जांच और साक्ष्य जुटाने के लिए किया जा सकता है। अंतिम लाभार्थी मालिक (UBO) ऐसी इकाइयां होती हैं, जिनका FPI पर नियंत्रण या स्वामित्व होता है। FPI साझा निवेश इकाई होती है।
FPI नियमन के साथ ही धनशोधन निषेध (रिकॉर्डों का रखरखाव) नियम भी विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों पर लागू होता है ताकि वे नियमित अंतराल पर UBO की जानकारी रख सकें और उसका खुलासा कर सकें। धनशोधन निषेध कानून में हालिया संशोधन के अनुसार रिपोर्टिंग इकाई में 10 फीसदी हिस्सेदारी का स्वामित्व रखने वाला कोई व्यक्ति या समूह अब लाभार्थी मालिक माना जाएगा। पहले स्वामित्व की सीमा 25 फीसदी थी।
नियामकीय सूत्र ने कहा कि SEBI विदेश के नियामकों के साथ किए गए अपने अंतरराष्ट्रीय समझौता ज्ञापन के तहत सूचना साझा करने के अधिकार का इस्तेमाल कर सकता है। लेकिन इस मामले में मांगी गई जानकारी नियामक की आवश्यकता से परे है, जिससे उसे इस तरह की सूचना हासिल करने में मुश्किल आ सकती है।
SEBI सहित करीब 32 प्रतिभूति नियामक प्रतिभूति आयोग के अंतरराष्ट्रीय संगठन (आईओएससीओ) के सदस्य हैं और सूचना के अदान-प्रदान तथा सहयोग के लिए अन्य देशों के साथ भी समझौते किए गए हैं। सूत्रों ने कहा कि SEBI ने निर्धारित सीमा से कम हिस्सेदारी रखने वाली इकाइयों के बारे में भी जानकारी मांगी है।
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आईसी यूनिवर्सल लीगल में सीनियर पार्टनर तेदेळ चितलांगी ने कहा, ‘विदेश में बहु-स्तरीय, बैक-एंड ऑम्निबस जैसी व्यवस्था नई बात नहीं है और आम तौर पर विभिन्न संरचनात्मक कारणों से ऐसी व्यवस्था की जाती है। इनमें से कई होल्डिंग व्यवस्थाओं को स्थानीय गोपनीयता कानून के तहत नियामकीय संरक्षण भी मिल सकता है, इसलिए कई बार अंतिम लाभार्थी का पता लगाना मुश्किल हो सकता है।’
चितलांगी के अनुसार स्वामित्व की सीमा घटाकर 10 फीसदी करने से UBO की जानकारी हासिल करना और भी कठिन हो जाएगा, खास तौर पर उन मामलों में जहां अंतिम निवेशक कई कारणों से सहयोग करने के इच्छुक नहीं हों।
अदाणी समूह पर हिंडनबर्ग द्वारा लगाए गए आरोपों की जांच के लिए सर्वोच्च न्यायालय ने SEBI को 2 मई तक का समय दिया था। मगर जांच में जटिलता देखते हुए SEBI ने शनिवार को शीर्ष अदालत से 6 महीने की मोहलत मांगी है। SEBI ने अपने आवेदन में कहा है कि कई देसी और अंतरराष्ट्रीय बैंकों से खातों का विवरण जुटाने के लिए उसे थोड़ा और वक्त चाहिए।