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Real Estate: इंडेक्सेशन हटने के बाद, 2010 के बाद खरीदी गई संपत्तियों पर 290% तक बढ़ सकता है LTCG टैक्स

अब किसी भी तरह की संपत्ति बेचने पर लगने वाले लंबी अवधि के पूंजीगत लाभ (LTCG) पर एक ही दर, यानी 12.5 प्रतिशत टैक्स लगेगा

Last Updated- July 26, 2024 | 4:46 PM IST
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यूनियन बजट 2024 में इंडेक्सेशन फायदे को हटाने के बाद से, भारत भर में संपत्ति मालिकों पर लंबी अवधि के पूंजीगत लाभ (LTCG) कर का बोझ काफी बढ़ गया है। यह बात बैंकबाज़ार के एक विश्लेषण से पता चली है। इंडेक्सेशन एक तरीका है जिससे किसी संपत्ति की खरीद की कीमत को समय के साथ महंगाई के हिसाब से बढ़ाया जाता है। इससे संपत्ति बेचने पर लगने वाला टैक्स कम हो जाता है।

यह कैसे काम करता है:

सरकार हर साल एक लागत मुद्रास्फीति सूचकांक (CII) जारी करती है। जब आप कोई संपत्ति बेचते हैं, तो महंगाई को ध्यान में रखते हुए CII का इस्तेमाल करके खरीद मूल्य को बढ़ाया जाता है। फिर इस बढ़े हुए खरीद मूल्य का इस्तेमाल पूंजीगत लाभ की गणना करने के लिए किया जाता है, जिससे टैक्स की राशि कम हो सकती है। उदाहरण के लिए अगर आपने 20 लाख रुपये की प्रॉपर्टी खरीदी।

पांच साल बाद आप इसे 35 लाख में बेच रहे हैं। तो बेचते वक्त CII के हिसाब से माना जाएगा कि आपकी संपत्ति की कीमत कितनी बढ़नी चाहिए। इस मामले में मान लीजिए कि यह 20 लाख से बढ़कर 27 लाख रुपये है। तो आपको केवल 35-27= 8 लाख रुपये पर LTCG टैक्स देना होगा।

इंडेक्सेशन हटाने का मतलब है कि संपत्ति के खरीद मूल्य का इस्तेमाल बिना किसी बदलाव के पूंजीगत लाभ की गणना के लिए किया जाएगा। इससे आमतौर पर टैक्स योग्य लाभ बढ़ जाएगा और नतीजतन टैक्स की राशि भी बढ़ जाएगी। आसान शब्दों में कहें तो अब 8 लाख पर नहीं बल्कि पूरे 35-20= 15 लाख रुपये पर LTCG टैक्स देना होगा।

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अपने बजट भाषण में एक स्टैंडर्ड दीर्घकालिक पूंजीगत लाभ (LTCG) कर की घोषणा की। पहले, विभिन्न वित्तीय और गैर-वित्तीय संपत्तियों पर अलग-अलग LTCG दरें लागू होती थीं। उदाहरण के लिए, एक साल से अधिक समय तक रखे गए इक्विटी निवेश को बेचने पर 10 प्रतिशत LTCG कर लगता था, जबकि रियल एस्टेट और सोने जैसी गैर-वित्तीय संपत्तियों पर 20 प्रतिशत कर लगाया जाता था।

अब, किसी भी तरह की संपत्ति बेचने पर लगने वाले लंबी अवधि के पूंजीगत लाभ (LTCG) पर एक ही दर, यानी 12.5 प्रतिशत टैक्स लगेगा। सरकार का कहना है कि इससे टैक्स सिस्टम आसान हो जाएगा। इसके साथ ही, सरकार ने साफ किया है कि 2001 से पहले खरीदी गई संपत्तियों पर पुरानी तरह की छूट (इंडेक्सेशन बेनिफिट) मिलती रहेगी।

इसका मतलब है कि अगर आपने कोई संपत्ति 2001 से पहले खरीदी थी, तो उसे बेचते समय उस पर लगने वाले टैक्स की गणना करते वक्त 2001 की कीमतों को आधार माना जाएगा, या फिर आपने जितने में खरीदी थी, उसमें 2001 तक की महंगाई दर जोड़कर निकाली गई कीमत, इन दोनों में से जो भी कम हो, उसे माना जाएगा।

मान लीजिए आपने साल 2014-15 में एक संपत्ति 50 लाख रुपये में खरीदी थी और कल के बजट से पहले ही उसे 1 करोड़ रुपये में बेच दिया। ऐसे में टैक्स देते वक्त पहले आप इस संपत्ति की खरीद की कीमत को महंगाई के हिसाब से बढ़ा सकते थे, जिसे इंडेक्सेशन कहते हैं।

इसका मतलब है कि महंगाई दर के हिसाब से आपकी खरीद की कीमत बढ़कर लगभग 75.6 लाख रुपये हो जाती। फिर, आपको सिर्फ 24.4 लाख रुपये के फायदे पर ही 20 प्रतिशत टैक्स देना पड़ता, यानी लगभग 4.87 लाख रुपये टैक्स।

अब, क्योंकि इंडेक्सेशन नहीं होगा, आपकी संपत्ति की खरीद कीमत वही रहेगी, यानी 50 लाख रुपये, जबकि आपने उसे 1 करोड़ रुपये में बेचा है। इसका मतलब है कि आपको पूरे 50 लाख रुपये के फायदे पर 12.5 प्रतिशत टैक्स देना होगा, जो कि 6.25 लाख रुपये होता है।

सिंघानिया एंड कंपनी के प्राइवेट क्लायंट लीडर केशव सिंघानिया ने कहा, “एक उदाहरण के तौर पर, मान लीजिए मिस्टर ‘ए’ ने साल 2001 से पहले एक घर 100 रुपये में खरीदा था और अब 2024 में वह इसे 400 रुपये में बेचना चाहते हैं। पुराने नियमों के मुताबिक, महंगाई के हिसाब से बढ़ी कीमत एडजस्ट करने के बाद मिस्टर ‘ए’ को सिर्फ (400 – 363) यानी 37 रुपये के फायदे पर 20 प्रतिशत टैक्स देना पड़ता, जो कि कुल 7.5 रुपये होता।

लेकिन, नए नियम के मुताबिक, मिस्टर ‘ए’ को पूरे (400 – 100) यानी 300 रुपये के फायदे पर 12.5 प्रतिशत टैक्स देना होगा, जो कि कुल 37.5 रुपये हो गया। इस तरह, इस मामले में टैक्स लगभग 80 प्रतिशत बढ़ गया है।”

इस बदलाव का रियल एस्टेट सेक्टर पर काफी असर पड़ेगा क्योंकि अब संपत्ति बेचने वाले लोग खरीद की कीमत को महंगाई दर के हिसाब से नहीं बढ़ा पाएंगे (इंडेक्सेशन)। पहले, इंडेक्सेशन की वजह से, संपत्ति बेचने वाले को सिर्फ बिक्री की कीमत और महंगाई की वजह से बढ़ाई हुई खरीद कीमत के बीच के फर्क पर ही टैक्स देना पड़ता था। इसलिए, टैक्स की दर ज्यादा होने के बावजूद, उन्हें कम टैक्स देना पड़ता था।

अब, हालांकि टैक्स की दर कम करके 12.5 प्रतिशत कर दी गई है, लेकिन इंडेक्सेशन खत्म हो जाने की वजह से बेचने वाले को ज्यादा टैक्स देना पड़ेगा क्योंकि अब वह खरीद की कीमत को महंगाई के हिसाब से नहीं बढ़ा पाएंगे।

यह बदलाव 23 जुलाई 2024 से लागू हो गया है और इसका बहुत बड़ा असर पड़ेगा।

बैंकबाजार ने एक स्टडी की जिसमें देखा गया कि इंडेक्सेशन के साथ और बिना इंडेक्सेशन के संपत्ति बेचने पर कितना टैक्स भरना पड़ता है। नतीजे चौंकाने वाले हैं:

  • टैक्स में बहुत ज्यादा बढ़ोतरी: इंडेक्सेशन के बिना टैक्स औसतन 290% तक बढ़ गया है।
  • ज्यादा समय तक रखने पर ज्यादा टैक्स: अगर संपत्ति को ज्यादा समय तक रखा गया हो तो टैक्स और भी ज्यादा बढ़ रहा है, कुछ मामलों में तो 500% तक बढ़ गया है।
  • शहरों में ज्यादा असर: हालांकि हर जगह असर हुआ है, लेकिन मुंबई और कोलकाता जैसे शहरों में इसका बहुत ज्यादा असर पड़ा है, यहां लोगों को बहुत ज्यादा टैक्स देना पड़ेगा।

इंडेक्सेशन हटाने और एक ही तरह का 12.5% का लंबी अवधि का पूंजीगत लाभ (LTCG) टैक्स लगाने से संपत्ति को लंबे समय तक रखने के फायदे खत्म हो गए हैं। इससे रियल एस्टेट में निवेश कम हो सकता है और लोग संपत्ति को लंबे समय तक नहीं रखना चाहेंगे।

  • पिछले 13 सालों में औसतन इंडेक्सेशन वाला टैक्स 3.90% था।
  • अब बिना इंडेक्सेशन वाला औसत टैक्स 11.34% हो गया है, यानी 7.44% ज्यादा टैक्स देना पड़ेगा।
  • इसी तरह, बीच का टैक्स (मीडियन टैक्स) 0.83% से बढ़कर 10.05% हो गया, यानी 12.10 गुना बढ़ गया।
  • असल में, आने वाले समय में महंगाई दर बढ़ने से टैक्स और भी ज्यादा होगा।
  • अगर संपत्ति को कम समय के लिए रखा गया हो तो पहले कोई टैक्स नहीं लगता था, लेकिन अब बिना इंडेक्सेशन के 3.02% से 8.70% तक टैक्स लग सकता है।

शहरों के हिसाब से नतीजे

  • मुंबई में सबसे ज्यादा अतिरिक्त टैक्स बढ़ा है, जो 7.02% है।
  • कोलकाता दूसरे नंबर पर है, जहां टैक्स 6.71% बढ़ा है। यहां तो 2014-15 में खरीदी गई संपत्तियों पर टैक्स 500 गुना बढ़ गया है, और 2017-18 में खरीदी गई संपत्तियों पर 106 गुना बढ़ गया है। ये सबसे ज्यादा बढ़ोतरी वाले शहर हैं।
  • दिल्ली और जयपुर में पहले इंडेक्सेशन की वजह से लगभग कोई टैक्स नहीं लगता था, लेकिन अब नए नियमों के चलते इन शहरों में भी टैक्स बढ़ गया है।

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पहले, यानी इंडेक्सेशन वाले सिस्टम में, साल 2016-17 से लेकर कुछ सालों तक तो लोगों को लंबी अवधि का कोई फायदा ही नहीं हुआ था। यानी उन्हें नुकसान हुआ था। इसलिए, भले ही टैक्स की दर 20% थी, लेकिन उन्हें कोई टैक्स नहीं देना पड़ रहा था।

लेकिन अब इंडेक्सेशन हटा दिया गया है, इसलिए अब उन सभी सालों में भी लोगों को काफी ज्यादा फायदा दिखा रहा है, जिसकी वजह से उन्हें बहुत ज्यादा टैक्स देना पड़ेगा।

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बैंकबाजार के एवीपी, एआर हेमंत का कहना है, “खासकर 2016-17 के बाद के सालों में टैक्स बचाने का बहुत बड़ा नुकसान हुआ है। जहां पहले कोई टैक्स नहीं देना पड़ता था, वहीं अब इन सालों में काफी ज्यादा टैक्स देना पड़ेगा। संपत्ति को जितने लंबे समय तक रखा जाएगा, उतना ही ज्यादा टैक्स देना पड़ेगा।”

First Published - July 26, 2024 | 4:46 PM IST

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