करीब चार दशक पहले राकेश झुनझुनवाला युवा ट्रेनी चार्टर्ड अकाउंटेंट थे और उन्हें केवल आने-जाने का खर्च मिलता था, वह भी 60 रुपये। 60 रुपये में से भी 15 रुपये कट जाते थे और उनके हाथ में महज 45 रुपये आते थे। मगर झुनझुनवाला इसमें भी ज्यादा से ज्यादा बचत करने की कोशिश करते थे। जो रुपये बचते थे, उसे हफ्ते के आखिरी दिन अपने दोस्तों के साथ चिकन सेंटर पर खर्च करते थे। चिकन सेंटर खाने-पीने की जगह थी और उस दौर के युवाओं में बहुत लोकप्रिय थी क्योंकि नई-नई नौकरी पाने वाले भी वहां का किफायती खाना-पीना आसानी से ले सकते थे।
2014 में एक बार यह किस्सा सुनाते हुए उन्होंने कहा, ‘हर शनिवार हम वहां जाते और आने-जाने के खर्च से बचाए 15 रुपये उड़ाते। आज 40,000 रुपये की व्हिस्की की बोतल भी मुझे वह मजा नहीं देती, जो उस दौर में चिकन सेंटर देता था।’
चार्टर्ड अकाउंटेट का कोर्स करने से पहले झुनझुनवाला ने मुंबई के सिडनहैम कॉलेज से स्नातक किया था। उसके बाद उनके दिमाग में पत्रकार या पायलट बनने का खयाल भी आया था। पत्रकार बनने की चाहत के कारण वह अखबारों में स्तंभ भी लिखने लगे थे। पायलट बनने का उनका जुनून इस साल सामने आया, जब उन्होंने आकाश एयर की बुनियाद रखी। मगर जो आकर्षण बाजार में था, वह कहीं नहीं था और उसी की वजह से वह देखते-देखते खरबपति बन गए।
फोर्ब्स के अनुसार उनकी कुल संपत्ति तकरीबन 6 अरब डॉलर के करीब थी और वह धरती पर रहने वाले 99.99 फीसदी लोगों से ज्यादा अमीर थे। उनका ज्यादातर निवेश ‘मल्टीबैगर’ यानी अपने भाव से कई गुना अधिक प्रतिफल देने वाले शेयरों में था। एक तरह से कहें तो उन्होंने जिस शेयर को छुआ वह सोना बन गया। सेसा गोवा का शेयर उन्होंने 27 रुपये के भाव पर खरीदा था और बाद में उसका भाव 1,400 रुपये होने पर बेच दिया। उसके साथ ही उनकी कमाई 10 लाख रुपये के पार गई थी। वह कम लोकप्रिय कंपनियों में निवेश करते थे और कंपनियां नई ऊंचाई पर पहुंच जाती थीं।
रेटिंग एजेंसी क्रिसिल, घड़ी बनाने वाली कंपनी टाइटन और करुर वैश्य बैंक जैसी कंपनियों में झुनझुनवाला का निवेश कई साल तक रहा। मगर ऐसा भी नहीं है कि वह हमेशा लंबे अरसे के लिए ही निवेश करते थे। हर्षद मेहता के समय उन्होंने बाजार की गिरावट पर दांव लगाकर भी खूब कमाई की। लंबे अरसे के लिए निवेश करते समय भी उन्होंने हर कंपनी में दशकों के लिए रकम नहीं लगाई। वह कहते थे कि अपनी तय की कीमत दो-तीन साल में मिल जाए तो लंबे अरसे के लिए रकम क्यों लगाई जाए?
उन्होंने एक बार बताया था कि 1990 के दशक के आखिरी सालों में जब उनके दोस्त तकनीकी शेयरों पर दांव लगाकर खूब कमा रहे थे उस समय वह ज्यादा कमाई नहीं कर सके। उनकी रकम मुश्किल से बढ़ रही थी, जबकि उनके दोस्त 20 फीसदी तक कमा रहे थे। लेकिन जब तकनीकी शेयर और उनके साथ बाजार ढहा तो झुनझुनवाला उन गिने-चुने लोगों में थे, जिन्हें नुकसान नहीं हुआ। यही वॉरेन बफेट के साथ भी हुआ था, जिनसे अक्सर उनकी तुलना की जाती थी। तकनीकी शेयरों की उछाल के दौर में बफेट को कम फायदा हुआ था मगर बाद में उन्होंने खूब चांदी काटी।
2008 में जब बाजार लुढ़का तो दूसरों की तरह उनके पोर्टफोलियो पर भी चोट आई। वह चुटकी लेकर बताते थे कि उनके दोस्त पूछते हैं कि वह अब भी अरबपति हैं क्या। और फिर पूछते हैं कि अरब डॉलर हैं या अरब रुपये?
बाजार जब औंधे मुंह गिर रहा था और एसऐंडपी बीएसई सेंसेक्स आधा ही रह गया था तब भी उन्होंने शेयरों में निवेश जारी रखा। 2009 में उनका 80 फीसदी निवेश 7-8 शेयरों में था। उस मंदी के दौरान जब किसी ने उनसे पूछा कि सेंसेक्स 2020 तक 40,000 अंक पर पहुंच पाएगा या नहीं तो झुनझुनवाला ने कहा कि इतने निराशावादी भी मत बनिए। उनकी मौत से बमुश्किल 10 महीने पहले अक्टूबर, 2021 में सेंसेक्स अब तक के सबसे ऊंचे आंकड़े 62,245.43 पर पहुंच गया।