रिलायंस इंडस्ट्रीज और रूसी कंपनी रोसनेफ्ट द्वारा संचालित नायरा एनर्जी के नेतृत्व वाली प्रमुख भारतीय ऊर्जा कंपनियां अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप की टैरिफ नीतियों के प्रति बेहद संवेदनशील हैं, क्योंकि वे रूस और वेनेजुएला से रियायती कच्चे तेल की खरीद पर निर्भर हैं और अमेरिकी बाजार में तेल की बिक्री से उन्हें बड़ा निर्यात राजस्व हासिल होता है।
ट्रंप ने कल सभी देशों से आयात पर 10 फीसदी टैरिफ लगाने की घोषणा की। इसके अलावा उन देशों पर भी यह शुल्क लगाया जिनका अमेरिका के साथ भारी व्यापार अधिशेष है। भारत पर 26 प्रतिशत आयात कर लगाया गया जो ट्रंप प्रशासन के अनुसार अमेरिकी उत्पादों पर भारत के औसत आयात शुल्क 52 प्रतिशत का आधा है। पड़ोसी देश चीन पर 34 फीसदी जवाबी शुल्क लगाया गया और मौजूदा 20 प्रतिशत को शामिल करने से यह कुल 54 प्रतिशत हो गया।
रिलायंस और नायरा को फिलहाल राहत मिली है, जिसका श्रेय अमेरिकी पेट्रोलियम एसोसिएशन की कोशिशों को जाता है, जिसने ऊर्जा को आयात शुल्क सूची से बाहर रखवाया।
सिंगापुर स्थित ऊर्जा विश्लेषक वंदना हरि ने कहा कि अमेरिकी कच्चे तेल, परिष्कृत उत्पादों और गैस आयात को जवाबी शुल्क से छूट दी गई है क्योंकि ट्रंप घरेलू पेट्रोल कीमतों को सुरक्षित बनाना चाहते हैं जो भारत के 5 अरब डॉलर मूल्य के पेट्रोलियम उत्पादों के निर्यात (अमेरिका को भारत के कुल निर्यात का करीब 7 फीसदी) के लिए सकारात्मक है। हरि ने कहा कि उनका मानना है कि ऊर्जा उत्पादों पर छूट बरकरार रहेगी।
रिलायंस ने आमतौर पर बेंचमार्क सिंगापुर या सरकारी रिफाइनरियों की तुलना में ज्यादा सकल रिफाइनिंग मार्जिन दर्ज किया है। उसकी जामनगर रिफाइनरी की क्षमता 13.6 लाख बैरल प्रतिदिन है और उसकी संरचना आधुनिक है। इससे उसके पास वेनेजुएला या कनाडा के एसिडिक या डर्टी कच्चे तेल को संसाधित करने की क्षमता है। इसके अलावा वह रूसी यूराल जैसे रियायती कच्चे तेलों का प्रसंस्करण करके अपने संयंत्र से यूरोप और अमेरिका को ईंधन निर्यात करने में सक्षम थी।
भारत अमेरिका को मुख्य रूप से पेट्रोल, पेट्रोल मिश्रण और जेट ईंधन का निर्यात करता है। शिप ट्रैकिंग डेटा से पता चला है कि 2024 में अमेरिका को 67,000 बीपीडी ईंधन निर्यात की शिपमेंट में रिलायंस का हिस्सा 91 प्रतिशत था। नायरा का हिस्सा लगभग 5 प्रतिशत था। इस साल रिलायंस की भागीदारी 23,000 बीपीडी निर्यात में 91 प्रतिशत थी जबकि बाकी हिस्सा सरकारी तेल कंपनियों का था।
लेकिन रिलायंस ट्रंप की टैरिफ नीतियों के कारण धीरे-धीरे अपने निर्यात और सोर्सिंग लाभ, दोनों को गंवा रही है। ट्रंप ने कल वेनेजुएला से आयात करने वाले देशों पर 25 फीसदी का सेकंडरी टैरिफ लगाया और रूसी कच्चा तेल आयात करने वाले देशों पर 25-50 फीसदी टैरिफ की धमकी (अगर रूस ने यूक्रेन के साथ शांति वार्ता को जल्द आगे नहीं बढ़ाया तो) दी।
सरकार के आंकड़ों के अनुसार भारत का भले ही अमेरिका के साथ 36 अरब डॉलर का व्यापार अधिशेष हो लेकिन ऊर्जा व्यापार में उसे व्यापार घाटा होता है। भारत अमेरिका को पेट्रोल, जेट ईंधन या डीजल के रूप में जितना निर्यात करता है, उससे कहीं ज्यादा तेल और गैस का आयात करता है।
सीमा शुल्क आंकड़ों पर आधारित बिजनेस स्टैंडर्ड की गणना के अनुसार अमेरिका के साथ तेल और गैस व्यापार में भारत का व्यापार घाटा लगभग 7.5 अरब डॉलर है। अगर इसमें अन्य ऊर्जा आयातों जैसे पेट्रोलियम कोक (सीमेंट इकाइयों, बिजली संयंत्रों और उद्योगों में ईंधन के रूप में उपयोग किया जाने वाला कार्बन पदार्थ) और कोयला शामिल किया जाए, तो अमेरिका के साथ ऊर्जा व्यापार घाटा लगभग 12-13 अरब डॉलर है। सीमा शुल्क आंकड़ों के अनुसार भारतीय कंपनियों ने 4.4 अरब डॉलर मूल्य के 51 लाख टन ईंधन का निर्यात किया। लेकिन अमेरिका से 78.6 लाख टन कच्चा तेल और 1.37 करोड़ टन पेट्रोलियम उत्पादों का आयात हुआ जिनका मूल्य क्रमशः 5.4 अरब डॉलर और 3.9 अरब डॉलर था।