तेल व गैस कंपनियों ने पुराने तेल ब्लॉकों पर लगने वाले कर की समीक्षा की मांग की है, जिनकी कुल घरेलू उत्पादन में हिस्सेदारी करीब 90 प्रतिशत है। दो बड़ी अन्वेषण एवं उत्पादन (ईऐंडपी) कंपनियों के अधिकारियों ने यह जानकारी दी। सरकार के साथ बातचीत में उठाए गए अन्य महत्त्वपूर्ण मसलों में राज्यों द्वारा लगाए गए कई उपकर खत्म किया जाना, आयात पर सीमा शुल्क में छूट और अन्वेषण को सरल बनाना शामिल है।
वित्त और पेट्रोलियम मंत्रालय के साथ बैठक के दौरान उद्योग ने नई अन्वेषण लाइसेंसिंग नीति (एनईएलपी) और प्री-एनईएलपी जैसी पिछली व्यवस्थाओं के तहत लगाए गए कर को वर्तमान हाइड्रोकार्बन अन्वेषण और लाइसेंसिंग नीति (एचईएलपी) व्यवस्था के बराबर किए जाने की मांग की है।
नॉमिनेशन की नीति की जगह 1999 में एनईएलपी नीति लाई गई थी। यह करीब दो दशक, 2017 तक चली, जब एचईएलपी नीति लागू की गई। उद्योग ने सरकार से कहा है कि मौजूदा 60 प्रतिशत से अधिक कर को घटाकर 40 प्रतिशत किया जाना चाहिए, जो वैश्विक स्तर पर है।
एक प्रमुख अधिकारी ने नाम न बताए जाने की शर्त पर कहा कि इस दिशा में सरकार के लिए महत्त्वपूर्ण कदम यह होगा कि सभी व्यवस्थाओं में रॉयल्टी दरों को तार्किक बनाया जाए और एनईएलपी के पहले तथा नामांकन ब्लॉकों पर लगने वाले 20 प्रतिशत तेल उद्योग विकास (ओआईडी) उपकर को वापस लिया जाए।
उन्होंने कहा, ‘इन 2 श्रेणी के ब्लॉकों में प्रति बैरल उत्पादन की लागत ज्यादा है, जबकि प्रति बैरल शुद्ध मुनाफा कम है। ओआईडी उपकर, ज्यादा रॉयल्टी भुगतान और सरकार द्वारा नामित के साथ मुनाफा बंटने के कारण ऐसा होता है।’
एक अन्य अधिकारी ने कहा कि केंद्र से मांग की गई है कि असम और राजस्थान में स्क्रैप और भूमि कर घटाने और आंध्र प्रदेश के प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा लगाए गए परिचालन शुल्क पर सहमति बनाने के लिए वह हस्तक्षेप करे।
उन्होंने कहा कि इनपुट टैक्स क्रेडिट को समायोजित करने के लिए तेल और गैस की बिक्री को जीएसटी ढांचे के तहत लाने की मांग को भी हाल के महीनों में निजी क्षेत्र से नए सिरे से प्रोत्साहन मिला है। बहरहाल उद्योग के लोगों ने विशेष अतिरिक्त उत्पाद शुल्क (एसएईडी) या अप्रत्याशित लाभ कर खत्म किए जाने का स्वागत किया है, जिसे 29 महीने बाद दिसंबर में खत्म कर दिया गया था। इस शुल्क से औसतन 10 प्रतिशत अतिरिक्त बोझ बढ़ गया था।
भारत के ईऐंडपी सेक्टर पर मुख्य रूप से 2 सरकारी कंपनियों तेल और प्राकृतिक गैस निगम (ओएनजीसी) और ऑयल इंडिया लिमिटेड का प्रभुत्व है, जिनकी भारत के कुल कच्चा तेल उत्पादन में क्रमशः 71 प्रतिशत और 9 प्रतिशत हिस्सेदारी है। वेदांत समूह की केयर्न ऑयल ऐंड गैस और आरआईएल की सहायक इकाई रिलायंस पेट्रोलियम निजी क्षेत्र की दो प्रमुख अपस्ट्रीम कंपनियां हैं।
भारत इस समय कच्चे तेल की अपनी कुल जरूरतों का 87 प्रतिशत आयात करता है। कच्चे तेल के आयात का बिल वित्त वर्ष 2024 में घटकर 139.8 अरब डॉलर रह गया है, जो वित्त वर्ष 2023 के 161.4 अरब डॉलर की तुलना में 13.3 प्रतिशत कम है। रूस से सस्ता तेल मिलने के कारण ऐसा हुआ है।
निर्यात पर निर्भरता घटाने पर नजर रखते हुए सरकार 2030 तक ईऐंडपी सेक्टर पर 100 अरब डॉलर निवेश करना चाहती है। खासकर प्रमुख अपतटीय इलाकों जैसे अंडमान सागर में यह निवेश होगा, लेकिन इसमें रुचि जगाने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है।