तेजी से विकास कर रहे ई-कॉमर्स क्षेत्र के नियमन के लिए सरकार सख्त नियम लागू करने की योजना बना रही है। लेकिन इन नियमों पर सरकार के भीतर ही एकमत नहीं है। वित्त मंत्रालय ने कुछ प्रस्तावों को अत्यधिक सख्त और आर्थिक रूप से सही नहीं बताया है।
भारत के ई-कॉमर्स क्षेत्र में एमेजॉन और वॉलमार्ट जैसी दिग्गज वैश्विक रिटेल कंपनियां हैं और देसी कंपनियों में रिलायंस इंडस्ट्रीज तथा टाटा समूह की मौजूदगी है। ग्रांट थॉर्नटन के अनुमान के अनुसार भारत में ई-कॉमर्स का बाजार 2025 तक बढ़कर 188 अरब डॉलर तक पहुंच सकता है।
यह स्पष्ट नहीं है कि वित्त मंत्रालय की दर्जन भर आपत्तियों को कैसे लिया जाएगा लेकिन नियमों में प्रस्तावित बदलाव में यह निश्चित तौर पर नजर आएगा। ई-कॉमर्स के नियमों का मसौदा पहली बार जून में जारी किया गया था। जानकारों का कहना है कि सरकार इन आपत्तियों पर जरूर ध्यान देगी।
विधि फर्म पीएलआर चैंबर्स में मैनेजिंग पार्टनर सुहान मुखर्जी ने कहा कि वित्त मंत्रालय द्वारा चिंता जताए जाने के बाद ई-कॉमर्स नीति पर पुनर्विचार हो सकता है।
उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय ने जून में ई-कॉमर्स के लिए प्रस्तावित नीतियों का मसौदा जारी किया था। इसमें भारी छूट पर बिक्री को सीमित करने, प्राइवेट लेबल को बढ़ावा नहीं देने और ऑनलाइन मार्केटप्लेस ऑपरेटर तथा उनके आपूर्तिकर्ताओं के बीच संबंध की पड़ताल करने की बात कही गई थी। हालांकि नए नियमों को लागू करने की अभी कोई समयसीमा तय नहीं की गई है। खुदरा रिटेलरों की ओर से विदेशी ई-कॉमर्स कंपनियों द्वारा कथित अनुचित कार्य व्यवहार की शिकायत के बाद इन नियमों की घोष्ज्ञणा की गई थी। हालांकि टाटा समूह ने भी प्रस्तावित ई-कॉमर्स नियमों का विरोध किया है। टाटा समूह भी ई-कॉमर्स के क्षेत्र में विस्तार की योजना बना रहा है।
वित्त मंत्रालय, कंपनी मामलों का मंत्रालय और नीति आयोग तीनों ने प्रस्तावित निमयों के कुछ प्रावधानों पर आपत्ति जताई है। उनका कहना है कि प्रस्तावित नियम उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करने के उद्देश्य से बनाए गए हैं लेकिन यह इससे कहीं आगे चली गई है और इसमें नियामकीय स्पष्टता का भी अभाव है।
वित्त मंत्रालय के आर्थिक मामलों का विभाग ने 31 अगस्त को अपने ज्ञापन में नियमों को अत्यधिक सख्त बताया है।
