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‘आईटी पर अभी टूटेगा मुश्किलों का पहाड़’

Last Updated- December 05, 2022 | 10:40 PM IST

इन्फोसिस टेक्नोलॉजिज के मुख्य कार्यकारी एवं प्रबंध निदेशक एस गोपालकृष्णन इस साल वाकई आग से खेलकर गुजरे हैं।


आलोचनाओं की तपिश झेलकर भी उनकी कंपनी ने इस साल अच्छा प्रदर्शन किया। लेकिन गोपालकृष्णन मानते हैं कि यह साल सूचना प्रौद्योगिकी आईटी के लिए बद से बदतर होने वाला है। आठ साल पहले आईटी और दूरसंचार का बुलबुला फूटने के बाद उद्योग जिस कदर सदमे में आ गया था, वह दौर इस साल भी इंतजार कर रहा है। पेश हैं सुबीर रॉय के साथ उनकी बातचीत के खास अंश :


बाजार की मौजूदा तस्वीर क्या आपको 2002-03 के हालात जैसी ही लगती है?


नहीं, फर्क है। उस वक्त दूरसंचार और इंटरनेट जैसे क्षेत्रों की वजह से चुनौतियां सामने आई थीं, लेकिन इस बार तो वित्तीय सेवा के क्षेत्र ने ही बड़ी परेशानी पैदा कर दी हैं। यह क्षेत्र किसी भी अर्थव्यवस्था की रीढ़ होता है, कर्ज और तरलता इसी की झोली से निकते हैं, इसलिए सारे उद्योग इससे प्रभावित हो रहे हैं। मुझे लगता है कि मौजूदा मुश्किल ज्यादा बड़ी और गहरी हो सकती है। हमारे क्लाइंट तो इससे निपटने के लिए वक्त की भी मांग कर रहे हैं।


इसका मतलब है कि अभी सौदे पक्के नहीं किए जा रहे हैं?


बिल्कुल। फैसले लेने में देर हो रही है। लेकिन उनके मुताबिक आउटसोर्सिंग कारोबार के लिए यह वक्त अच्छा है और ज्यादा काम आ सकता है। इसीलिए वे हमारी नियुक्ति योजनाओं के बारे में भी पूछताछ कर रहे हैं। उनका कहना है कि मांग अचानक बढ़ेगी, इसलिए हाथ पर हाथ धरकर मत बैठो।


इंतजार कितना लंबा होगा। एक या दो तिमाही?


ऐसा ठहराव का दौर पहले भी देखा गया है। लेकिन कंपनियां काम बहाल करने में ज्यादा देर नहीं करतीं। अमेरिकी कंपनियों की रफ्तार तो बहुत तेज है। हम 2 तिमाहियों का इंतजार मान रहे हैं, लेकिन शायद वे उससे भी पहले कुछ कर डालें।


अमेरिका में राष्ट्रपति पद के सभी उम्मीदवार आउटसोर्सिंग के बारे में अनाप-शनाप कह रहे हैं…


कारोबार से जुड़े लोगों से पूछिए, हमारे पास तो आदमियों की कमी है। कारोबार जगत को जो चाहिए और बाजार में जो मौजूद है, उसमें कोई मेल ही नहीं है। यह अजीब दौर है। कारखानों में नौकरियां खत्म हो रही हैं और कंप्यूटर, सॉफ्टवेयर की दुनिया में रोजगार के मौके पैदा हो रहे हैं। कई देशों में पारंपरिक उद्योग ज्यादा हैं, लेकिन काम करने वाले नहीं हैं। इसी वजह से आउटसोर्सिंग की जा रही है।


विदेशों में कारोबार के आपके प्रयासों को इस साल धक्का लगने का कोई अंदेशा है?


हमारे पास जो वीजा हैं, उससे हम 1 या 2 साल तो काम चला लेंगे। लेकिन आगे चलकर हमें परेशानी हो सकती है, इसलिए इस बारे में बहस तो छिड़नी ही चाहिए। इस साल हमने जो वीजा मांगे हैं, वे अगले साल ही मिल सकते हैं। वीजा 5 साल के लिए जारी किए जाते हैं, इसलिए हम उन्हीं पर भरोसा कर रहे हैं, जो हमारे पास हैं। जाहिर है, मुश्किल तो होगी ही।


यहां दो बड़े मुद्दे हैं : भारत में आपका कितना कारोबार है, अमेरिका के बाहर कितना कारोबार है और दुनिया भर में आप कितनी तेजी से कंपनियों का अधिग्रहण कर रहे हैं?
 
कहा जाता है कि तीनों मामलों में इन्फोसिस शीर्ष 3 कंपनियों में आती है।अगर ऑस्ट्रेलिया को छोड़ दिया जाए, तो हमने कहीं भी बड़े अधिग्रहण नहीं किए हैं। ऑस्ट्रेलियाई कंपनी का अधिग्रहण भी 5 साल पुरानी बात है।


आपके लिए फिलहाल सबसे बड़ी चुनौती क्या है?


बेशक, रुपया।रुपये की चाल का कोई भरोसा नहीं है। हमें अंदाजा ही नहीं है कि भविष्य में रुपया क्या करेगा। हमें लगता है कि निकट भविष्य में रुपये का उतार चढ़ाव जारी रहेगा। यह लगातार चढ़ेगा नहीं यानी इसके मजबूत होते जाने की कोई गुंजाइश नहीं है। हमें लगता है कि हम इससे निपट लेंगे, लेकिन यह परेशानी का सबब है।

First Published - April 19, 2008 | 12:51 AM IST

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