अगर किसी कंपनी के खाते में डेरिवेटिव व्यापार की वजह से घाटा हो रहा है तो इस वजह से कर में रियायत मांगना कठिन होगा।
आयकर विभाग इस संदर्भ में हर मामले में अलग-अलग तरीके से विचार करेगी।हाल ही में भारतीय चार्टर्ड एकाउंटेंट संस्थान (आईसीएआई) ने एक परामर्श जारी किया था जिसमें इक्विटी और जिंस के घाटे को पाटने के लिए निर्देशों का उल्लेख था। इस पर एक आयकर अधिकारी ने बताया कि अगर किसी इक्विटी पर डेरिवेटिव से घाटा होता है तो यह सवाल उठता है कि इस घाटे को व्यापार खर्च के तौर पर लिया जाए या इसे सट्टेबाजी से हुआ नुकसान माना जाए।
अधिकारी ने बताया कि प्रथम दृष्टया अधिकांश डेरिवेटिव सट्टेबाजी प्रकृति केहैं और इसलिए उन पर कर रियायत नहीं मिल पाएगी। दूसरी ओर एक कर सलाहकार ने बताया कि फॉरेक्स डेरिवेटिव आमतौर पर सट्टेबाजी प्रकृति के होते हैं लेकिन सभी मामलों में यह बात लागू नहीं होती।
प्राइसवाटरहाउसकूपर्स के कर और नियामक प्रमुख दिनेश कानाबर ने बताया कि आप इस स्थिति को नहीं सोच सकते जिसमें एक कंपनी के लाभ में कमी हो रही हो और वह कर रियायत की बात न करे। इस स्थिति में मार्क-टू-मार्केट के आधार पर हानि को परखा जाएगा।
आईसीएआई के अध्यक्ष वेद जैन ने कहा कि अगर यह घाटा व्यापार घाटा है तो कर में रियायत मिलेगी। लेकिन अगर ये घाटा सट्टेबाजी के तहत है तब इस घाटे की गणना अलग तरीके से की जाएगी। कोई घाटा सट्टेबाजी के कारण है या नही इसकी गणना लेनदेन के आधार पर की जाएगी।
अगर कर निरीक्षक अधिकारी की नजर में किसी करदाता की राशि अस्वीकार्य है तो उस मामले में इस मुद्दे पर आधारित तंत्र में थोड़ी पेंचीदगी आ सकती है। आयकर अधिकारी ने बताया कि आईसीएआई का यह कदम समय के साथ है और इससे कंपनियों को कर रियायत लेने के लिए पैनल प्रक्रिया से गुजरना नहीं पड़ेगा।
आयकर की धारा 43(5) के तहत अव्यवहार्य लेनदेन एक प्रकार का ऐसा लेनदेन है जिसमें वास्तविक हस्तांतरण के बिना ही किसी प्रकार के जिंस की खरीदारी संभव हो जाए। इसमें स्टॉक और शेयर की खरीदारी भी शामिल है।
कंपनी के खाते में डेरिवेटिव व्यापार की वजह से घाटा हो रहा है तो इस वजह से कर में रियायत मांगना कठिन होगा।
अधिकांश डेरिवेटिव सट्टेबाजी प्रकृति के हैं और इसलिए उन पर कर रियायत नहीं मिल पाएगी।
अगर यह घाटा व्यापार घाटा है तो कर में रियायत मिलेगी। लेकिन अगर ये घाटा सट्टेबाजी के तहत है तब इस घाटे की गणना अलग तरीके से की जाएगी।
किसी करदाता की राशि अस्वीकार्य है तो उस मामले में इस मुद्दे पर आधारित तंत्र में थोड़ी पेंचीदगी आ सकती है।