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असुरक्षित वाई फाई से बचकर रहना रे बाबा…

Last Updated- December 09, 2022 | 9:55 PM IST

हाल ही में देश में हुए आतंकवादी हमलों में आतंकवादियों ने वाई फाई तकनीक का दुरुपयोग किया था ।


इसका पता लगाने के लिए पिछले दिनों मुंबई पुलिस ने कुछ जोशीले नागरिकों और मुंबई की शेरिफ इंदु साहनी के साथ शहर दक्षिणी और दक्षिण केंद्रीय इलाकों के कॉमर्शियल कॉम्पलेक्सों, मॉल्स, दफ्तरों और आवासीय परिसरों की जांच की।

दिल्ली और अहमदाबाद के बम धमाकों में आतंकवादियों ने मेल भेजने के लिए असुरक्षित वाई फाई कनेक्शन का इस्तेमाल किया था। अहमदाबाद बम धमाके से पहले तो जो मेल आई थी, वह अमेरिकी नागरिक केनेथ हेवुड ने नवीं मुंबई से भेजी थी।

वहीं दिल्ली धमाकों से पहले जो मेल भेजी गई थी, उसमें चेंबूर के कामरान पावर्स कंट्रोल प्राइवेट लिमिटेड के असुरक्षित वाई फाई नेटवर्क का इस्तेमाल किया गया था। दरअसल, वाई फाई का दायरा 300 फीट से अधिक का होता है और कोई भी केवल 2,000 रुपये खर्च कर वाई फाई नेटवर्क बना सकता है।

और तो और इसके लिए आपको पहले से मशक्कत करने की जरूरत भी नहीं होती है। अगर आपको वाई फाई नेटवर्क का इस्तेमाल कर मेल भेजना है या इंटरनेट से कोई जानकारी निकालनी है तो इसके लिए बस एक घंटे पहले आपको नेटवर्क तैयार करना होगा।

आमतौर पर आतंकवादी या अपराधी किस्म के लोग उन्हीं वाई फाई नेटवर्क का इस्तेमाल करते हैं जो असुरक्षित होते हैं। यही वजह है कि इंटरनेट विशेषज्ञ और फिक्की में आईटी के प्रमुख विजय मुखी असुरक्षित वाई फाई के इस्तेमाल को बहुत खतरनाक बताते हैं।

वह कहते हैं, ‘दुनिया में हमारा शहर एकमात्र ऐसा शहर है जहां आतंकवादियों ने ईमेल भेजने के लिए असुरक्षित वाई फाई तकनीक का इस्तेमाल किया है। हमने वाई फाई का दुरुपयोग देखा है, पर उसके बाद भी हम अपने वाई फाई को सुरक्षित बनाना नहीं चाहते हैं।’

माना जाता है कि अकेले मुंबई में फिलहाल 30,000 से अधिक असुरक्षित या बेनाम वाई फाई कनेक्शन हैं। मुंबई पुलिस और शहरवासियों की यह मुहिम तब तक जारी रहेगी ।

जब तक ऐसे सभी असुरक्षित कनेक्शन का पता नहीं चल जाता है और आम लोगों को इस बारे में जानकारी नहीं हो जाती है। हालांकि मुखी मानते हैं कि इस मुहिम में नागरिकों का सहयोग सबसे महत्त्वपूर्ण है।

मुंबई पुलिस के अतिरिक्त आयुक्त के वेंकटेशन ने बिानेस स्टैंडर्ड को बताया, ‘अगर किसी दस्ते को अपनी जांच के दौरान किसी भी जगह कोई ऐसा वाई फाई कनेक्शन मिलता है जो सुरक्षित नहीं है तो इस दस्ते के साथ जो पुलिस कर्मचारी होगा उसके पास यह अधिकार होगा कि वह वाई फाई कनेक्शन के मालिक को इसे सुरक्षित बनाने के लिए एक नोटिस जारी करे।’

अगर कोई ऐसा व्यक्ति पाया जाता है जिसने अपने वाई फाई कनेक्शन को सुरक्षित कर नहीं रखा है तो उसे आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 149 के तहत नोटिस थमाया जा सकता है। साथ ही इंटरनेट का इस्तेमाल करने वाले व्यक्ति को आपराधिक गतिविधियों को लेकर जांच का सामना भी करना पड़ सकता है।

पुलिस अधिकारियों ने करीब 80 पुलिस कर्मचारियों को साइबर अपराध और वाई फाई कनेक्शन के बारे में जानकारी दी है। इस मुहिम में करीब 100 स्वयंसेवक शामिल हुए जिनमें से अधिकतर कॉलेज के छात्र हैं।

इस पूरे दल को अलग अलग दस्तों में बांटा गया, जिसमें हर दस्ते में 5 से 10 स्वयंसेवक शामिल हैं। इन दस्तों ने दक्षिणी मुंबई और दक्षिण केंद्रीय मुंबई के कई इलाकों में चक्कर लगाकर ऐसे 50 असुरक्षित कनेक्शन का पता लगाया।

अब सवाल यह उठता है कि दुनिया के अधिकांश हिस्सों में कोई भी व्यक्ति किसी भी होटल के कमरे में, कॉफी शॉप में या फिर पार्क में भी अपना मोबाइल या लैपटॉप खोलकर वाई फाई बेतार नेटवर्क के जरिए बेनाम (असुरक्षित) इंटरनेट का उपयोग कर सकता है।

तो फिर सिर्फ मुंबई में या यूं कहें कि भारत में इस अवधारणा पर इतने सवाल क्यों खड़े किये जा रहा हैं? इस बारे में मुखी लंदन का उदाहरण देते हुए समझाते हैं। लंदन शहर के चप्पे चप्पे में 15,000 से अधिक कैमरे लगे हुए हैं।

यहां औसतन एक व्यक्ति भी हर दिन करीब 300 बार कैमरे की पकड़ में आता है। पर लोगों पर नजर रखने की प्रक्रिया यहीं खत्म नहीं होती है, इन सारे वीडियो को सुरक्षित रखा जाता है और इनकी जांच वीडियो एनालिटिक्स नाम के एक सॉफ्टवेयर के जरिए की जाती है।

सॉफ्टवेयर यह जांच करता है कि किसी व्यक्ति की गतिविधि संदेहजनक तो नहीं है। पर भारत में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है। दुनिया के किसी दूसरे हिस्से और भारत में यही मुख्य अंतर है।

जिस तरह पिछले दिनों मुंबई से आतंकी मेल भेजे गए वैसे अगर दुनिया के किसी दूसरे शहर से भेजे गए होते तो यह सब कुछ दर्जनों कैमरों की पकड़ में आ चुका होता।

मुखी कहते हैं, ‘जब तक हमारे शहर में कैमरों की ऐसी व्यवस्था नहीं होती है तब तक मेरे विचार से बेनाम और असुरक्षित वाई फाई पर रोक लगा दी जानी चाहिए।’

उन्होंने कहा कि आतंकवादी अपने गिरोह के लोगों से बात करने के लिए मोबाइल फोन का इस्तेमाल तो करेंगे ही। तो इसके लिए जरूरी है कि कोई ऐसी व्यवस्था लागू की जाए ताकि संवदेशनशील इलाकों में मोबाइल फोन जैमर लगा हो या फिर संदेह की स्थिति में किसी व्यक्ति की कॉल को ब्लॉक या जाम किया जा सके।

उन्होंने कहा कि, ‘अभी अगर ऐसे किसी फोन की पुलिस को जानकारी मिलती भी है तो वे बस उस कॉल को सुन सकते हैं।’ मुखी यह भी चाहते हैं कि आईटी कानून में जो नए संशोधन किए गए हैं उन्हें लागू किया जाए ताकि असुरक्षित वाई फाई कनेक्शन गुजरे जमाने की बात हो जाए।

First Published - January 14, 2009 | 9:34 PM IST

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