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केरोसिन के बदले सौर लालटेन

Published by
बीएस संवाददाता
Last Updated- December 05, 2022 | 11:04 PM IST

भारत उन तीन विकासशील देशों में शुमार है जहां लाइटिंग कंपनी, ओसराम, अपने किरोसिन लालटेन को बदलकर सौर लालटेन और बैटरी बॉक्स में तब्दील करने जा रही है।


दुनियाभर में हर साल 77 अरब लीटर किरोसिन का इस्तेमाल  लालटेन में किया जाता है। इस पर 30 अरब यूरो खर्च होते हैं। किरोसिन की इस मात्रा से 19 करोड टन कार्बन का उत्सर्जन होता है और जलवायु में परिवर्तन होता है।


ओसराम के मुख्य सस्टेनेबिलिटी अधिकारी वोल्फगेंग ग्रेगॉर ने बिजनेस फॉर इनवॉयरनमेंट (बी4ई) समिट, सिंगापुर के पहले दिन बताया कि हम लोग तेल उत्पादकों के लिए बाजार को नहीं छोडना चाहते। भारत और चीन में पूरे विश्व का19 प्रतिशत बिजली का उपयोग लाइटिंग के रूप में किया जाता है। ग्रेगॉर ने कहा कि हम कॉम्पैक्ट फ्लोरेसेंट लाइटिंग (सीएफएल) का इस्तेमाल कर बिजली की खपत को कम कर सकते हैं।


इस सम्मेलन का मुख्य विषय जलवायु परिवर्तन में व्यापार और बाजार है। इस तरह का कार्यक्रम संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम और संयुक्त राष्ट्र वैश्विक प्रभाव के द्वारा अपनी तरह का दूसरा कार्यक्रम है। ओसराम इस कार्यक्रम का बिजनेस पार्टनर है। इस कार्यक्रम में 30 देशों के 500 प्रतिनिधि भाग ले रहे हैं और पर्यावरण की सुरक्षा के क्षेत्र में योगदान देने के लिए एक पुरस्कार चैंपियंस ऑफ द अर्थ भी देने की बात कही गई है।


ग्रेगॉर ने कहा कि अभी भी 150 साल पुराने स्टाइल के बल्ब प्रयोग में लाए जा रहे हैं और इसे बदलने की जरूरत है। यूरोपीय देशों में ऐसा करने में 10 साल का वक्त लग सकता है। लेकिन अभी सीएफएल की उत्पादन क्षमता 2 अरब प्रतिवर्ष है।


पूरे विश्व में 1.6 अरब ऐसे लोग हैं जो बिजली की सुविधा से वंचित हैं। ओसराम ने इसी को ध्यान में रखते हुए भारत, केन्या और युगांडा जैसे देशों के ग्रामीण इलाकों में सोलर हब बनाना शुरू किया है ताकि इन लोगों को यह बताया जा सके कि किस तरह सौर ऊर्जा जैसे अक्षय ऊर्जा स्रोतों का इस्तेमाल किया जा सकता है। इस योजना के तहत यह भी बताने की कोशिश की जा रही है कि किस प्रकार इन वैकल्पिक ऊर्जा का इस्तेमाल कर इसके संकट से बचा जा सकता है।


विकासशील देशों में सीएफएल को बढ़ावा देने के  लिए हरित गृह प्रभाव पर क्योटो प्रोटोकॉल की दुहाई देकर कार्बन के कम उत्सर्जन के लिए एक सर्टिफिकेट की व्यवस्था की जा रही है ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग सीएफएल का इस्तेमाल करें। इस तरह 20 लाख लोगों को सीएफएल के इस्तेमाल करने की तरफ मोड़ दिया गया।


मंगलवार को डाऊ केमिकल कंपनी ने पत्रकारों से बात करते हुए कहा कि किस तरह मात्र 1 अरब डॉलर खर्च कर 5 अरब डॉलर बिजली की बचत की गई। डाऊ केमिकल कंपनी 35 देशों में ऊर्जा बचत कराने के लिए यह कार्यक्रम चला रही है। यह कंपनी अपने उत्पाद में स्टाइरोफोम का इस्तेमाल बतौर कुचालक करती है जिससे गर्मी और ठंड के प्रभाव को बड़े प्रभावी ढंग से कम कर दिया जाता है।


कंपनी सौर पैनल को बढ़ावा देने के लिए फोटोवोल्टेइक तकनीक का इस्तेमाल कर रही थी। इसका मानना है कि अगर इसमें सरकारें मदद करे तो काफी ऊर्जा की बचत की जा सकती है और इससे तेल के लिए खाड़ी देशों पर निर्भरता कम की जा सकती है। डाऊ एक गैर सरकारी संगठन वर्ल्ड हेल्थ इंटरनेशनल के साथ मिलकर भारत के गांवों में स्वच्छ जल की उपलब्धता करने के लिए 2 करोड़ डॉलर खर्च कर रही है।


इसने एक अन्य अमेरिकी गैर सरकारी संस्था को भी विकासशील देशों में जल की उपलब्धता कराने के  लिए अंतरराष्ट्रीय कोष उपलब्ध करा रही है। डो के इंजीनियर इस तरह का कंटेनर विक सित कर रहे हैं जिससे रसायन के इस्तेमाल के बाद भी इसे संग्रहित कर लिया जाएगा और पर्यावरण को भी क्षति नहीं पहुंचेगी।


भोपाल से यूनियन कार्बाइड खरीदने के मुद्दे पर जब डाऊ के पब्लिक अफेयर्स निदेशक से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि हम लोग फिर से भोपाल गैस त्रासदी जैसी घटना झेलने की स्थिति में नहीं हैं। वैसे भी इस कंपनी पर न तो हमारा अधिकार है और न ही हम इसे चलाते हैं। यह अब भारत सरकार के हाथ में है। उसने यह भी स्पष्ट किया कि वियतनाम युद्ध में अमेरिका के द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले रसायन नापाम और एजेंट ऑरेन्ज भी अब कंपनी नहीं बना रही है।


नई कोशिश


दुनियाभर में हर साल 77 अरब लीटर किरोसिन का इस्तेमाल लालटेन में होता है।
किरोसिन की इस मात्रा से 19 करोड़ टन कार्बन का उत्सर्जन होता है।
कंपनियां किरोसिन लालटेन को सौर लालटेन में बदलने के लिए जोर आजमा रही हैं।
पूरे विश्व में 1.6 अरब लोग बिजली की सुविधा से वंचित हैं, कंपनियां उन्हीं को बना रही हैं अपना लक्ष्य।

First Published : April 23, 2008 | 10:44 PM IST