इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने आज इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण योजना के दूसरे संस्करण की शुरुआत की। इस योजना का लक्ष्य न केवल भारत में इलेक्ट्रॉनिक्स के विनिर्माण को बढ़ावा देना है बल्कि इसका उत्पादन निर्यात को ध्यान में रखते हुए भी करना है।
इस दिशा में तीन योजनाएं हैं- बड़े पैमाने पर इलेक्ट्रॉनिक्स के विनिर्माण के लिए प्रोडक्शन लिंक्ड इन्सेंटिव स्कीम (पीएलआई), स्कीम फॉर प्रमोशन ऑफ मैन्युफैक्चरिंग ऑफ इलेक्ट्रॉनिक कंपोनेंट्स ऐंड सेमीकंडक्टर्स (एसपीईसीएस) और मोडिफाइड इलेक्ट्रॉनिक्स मैन्युफैक्चरिंग क्लस्टर्स (ईएमसी 2.0) स्कीम।
सरकार ने इन योजनाओं के तहत भारत में निवेश की इच्छुक कंपनियों से आवेदन मंगाए हैं। सरकार की योजना आरंभ में शीर्ष पांच वैश्विक मोबाइल विनिर्माता कंपनियों को भारत लाने और पांच घरेलू कंपनियों को राष्ट्रीय स्तर पर बढ़ावा देने की है। केंद्रीय इलेक्टॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा, ‘वैश्विक स्तर पर पांच से छह कंपनियों का ही मोबाइल बाजार के 80 फीसदी पर नियंत्रण है। आरंभ में हमारी योजना पांच वैश्विक शीर्ष स्तर की कंपनियों का चुनाव करने की है जिन्हें पीएलआई के तहत भागीदारी करने की अनुमति दी जाएगी। हम राष्ट्रीय स्तर पर भी कंपनियों को बढ़ाना चाहते हैं इसलिए हम पांच भारतीय कंपनियों को भी प्रोत्साहन देंगे।’
हालांकि इन कंपनियों का चुनाव योजना के दिशानिर्देशों के मुताबिक किया जाएगा। सरकार ने इससे पहले मार्च में तीन योजनाओं की घोषणा की थी। मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन फॉर इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी के अध्यक्ष नितिन कुंकोलिएंकर ने कहा, ‘भारत में इलेक्ट्रॉनिक विनिर्माण को बढ़ाने वाली योजनाओं के लिए सरकार की आज की घोषणाओं पर करीब दो से तीन महीने से काम चल रहा था और जब यह आधिकारिक रूप से घोषित हो गया है तो हम इस पहल की सराहना करते हैं। एमएआईटी इस नीति को लाए जाने पर खुशी जाहिर करता है जिसकी रूपरेखा को लेकर साझेदारों के साथ विस्तार से चर्चा की गई थी।’
मंत्री ने कहा कि भारत दुनिया में दूसरा सबसे बड़ा मोबाइल विनिर्माता देश के तौर पर उभर चुका है। उन्होंने कहा, ‘2014-15 में छह करोड़ मोबाइल यूनिटों के साथ उत्पादित मोबाइल का मूल्य 18,992 करोड़ रुपये था। यह संख्या 2018-19 में यूनिट के लिहाज से 30 करोड़ हो गई और मूल्य के स्तर पर यह 1.7 लाख करोड़ रुपये पर पहुंच गई।’
