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अब लीगल प्रोसेस आउटसोर्सिंग का होगा बोलबाला

Last Updated- December 10, 2022 | 6:37 PM IST

मंदी की मार के बीच नौकरी देने के मामले में लीगल प्रोसेस आउटसोर्सिंग (एलपीओ) बिजनेस प्रोसेस आउटसोर्सिंग (बीपीओ) को पछाड़ने जा रहा है।
एलपीओ के बढ़ते बाजार से प्रभावित होकर इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय ( इग्नू) ने विधि स्नातकों के लिए एक ‘पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा इन लीगल प्रोसेस आउटसोर्सिंग’ (पीजीडीएलपीओ) पाठयक्रम की शुरुआत की है, ताकि अधिक से अधिक विधि स्नातकों को इस बाजार की जरूरतों के मुताबिक प्रशिक्षित किया जा सके।
15 फरवरी से शुरू किए गए इस पाठयक्रम के तहत अबतक 350 विधि स्नातकों ने अपना पंजीयन कराया है। हालांकि दिल्ली विश्वविद्यालय विधि संकाय के शिक्षक एलपीओ को लेकर उत्साहित नहीं हैं। उनकी नजर में एलपीओ से फिलहाल तो विधि छात्रों को रोजगार मिल जा रहा है लेकिन इसमें जाकर वे अपने भीतर छिपी वकालत को खत्म कर रहे हैं।
इग्नू के प्रवक्ता के मुताबिक फिलहाल एलपीओ में 7500 लोग काम कर रहे हैं और आगामी वित्त वर्ष के दौरान इसमें तकरीबन 12-15 हजार विधि स्नातकों की जरूरत होगी। 2015 तक एलपीओ का बाजार 4.5 अरब डॉलर हो जाने की उम्मीद है। इस बढ़ते बाजार को ध्यान में रखकर ही इग्नू ने इस पाठयक्रम को आरंभ किया है।
जानकारों का कहना है कि यूरोप व अमेरिका में छायी भारी मंदी के कारण एलपीओ का कारोबार लगातार बढ़ रहा है। नाम नहीं छापने की शर्त पर एलपीओ से जुड़े एक प्रबंधक ने बताया कि कानूनी दस्तावेज तैयार करने का जो काम अमेरिका व यूरोप के विधि स्नातक 200-250 डॉलर में करते हैं, उस काम को भारत के विधि स्नातक 40-50 डॉलर में कर रहे हैं।
यही वजह है कि देश के तमाम बड़े शहरों में एलपीओ की संख्या लगातार बढ़ रही है। गत छह महीनों के दौरान सिर्फ दिल्ली, गुड़गांव व नोएडा में ही 50 से अधिक एलपीओ सेंटर खुल चुके हैं। दिलचस्प बात यह है कि इन सभी सेंटरों में भर्ती का काम लगातार जारी है। अभी पिछले माह नोएडा के एक नामी एलपीओ सेंटर में एक साथ 200 विधि स्नातकों को नौकरी दी गयी।
गुरु गोविंद सिंह विश्वविद्यालय के विधि संकाय की डीन प्रो सुमन गुप्ता कहती है, ‘उनके विश्वविद्यालय से हर साल 15 फीसदी छात्र एलपीओ में जा रहे हैं।’ वह कहती हैं कि शुरुआत में 25,000-30,000 रुपये की नौकरी की पेशकश से बच्चों में आकर्षण होना लाजिमी है।
लेकिन दिल्ली विश्वविद्यालय विधि संकाय के डील प्रोफेसर एसएन सिंह इससे इत्तेफाक नहीं रखते। वह कहते हैं, ‘हमलोग अपने बच्चों को एलपीओ में भेजने में जरा भी दिलचस्पी नहीं ले रहे हैं। क्योंकि यह विधि छात्रों के भविष्य के लिए फायदेमंद नहीं है। यहां तक कि हमारे कुछ बच्चों ने भी एलपीओ की पेशकश को खारिज कर दिया है।’

First Published - March 2, 2009 | 3:59 PM IST

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