कंप्यूटरों के आने के बाद यह दुनिया ही बदल गई। लेकिन आज कंप्यूटरों की दुनिया में भी तेजी से बदल रही है। शुरुआत में कंप्यूटरों का इस्तेमाल सिर्फ डाटा सुरक्षित रखने और आंकड़ों के लिए किया जाता था।
फिर आया इंटरनेट, जिसने ज्ञान और मनोरंजन का पिटारा ही खोल कर रख दिया। करीब 15 साल पहले ईमेल आया और आज इसने पोस्टकार्ड और अंतरदेशीय की जरूरत को ही खत्म कर दिया। लेकिन अब तो कंप्यूटरों के बीच मौजूद दूरियां भी खत्म हो गई हैं। इसका जिम्मेदार है वर्चुअल डेस्कटॉप।
क्या बला है ये?
तकनीकी विशेषज्ञ अंकित फाडिया का कहना है कि, ‘वर्चुअल डेस्कटॉप का मतलब है, एक ऐसा कंप्यूटर जिस तक आप कहीं से भी पहुंच सकते हैं। यह कोई असल कंप्यूटर नहीं होता है, बल्कि कहीं दूर मौजूद सर्वर में सेव डाटा होता है।
इसे आप कहीं से भी एक्सेस कर सकते हैं। इसके लिए आपको जरूरत होती है एक सॉफ्टवेयर की, जिसे आपको अपने घर या ऑफिस के सिस्टम पर अपलोड करना होता है। बस फिर क्या? आपका सिस्टम जुड़ गया इंटरनेट से। इसके बाद आपके कंप्यूटर का डाटा आपने जिस कंपनी की सेवाएं ली हैं, उसके सर्वर में सेव हो जाता है।’
नोवाटियम सौल्यूशंस के मुख्य कार्यकारी अलोक सिंह का कहना है कि, ‘आपके घर के सिस्टम और वर्चुअल डेस्कटॉप में कोई अंतर नहीं होता है। बस वर्चुअल डेस्कटॉप आपको इंटरनेट के जरिये मिलता है। आप इंटरनेट पर ही वर्चुअल डेस्कटॉप पर मौजूद अपने सारे प्रोग्राम का इस्तेमाल कर सकते हैं। इस्तेमाल के मामले में इंटरनेट की स्पीड के अलावा आपको रत्ती भर भी फर्क पता नहीं चलेगा।’
क्या हैं इसके फायदे?
फाडिया की मानें तो इसके कई फायदे हैं। उनका कहना है, ‘पहली बात यह है कि अगर आपके घर के कंप्यूटर में कोई फाइल पड़ी है, तो आप उस फाइल तक वर्चुअल डेस्कटॉप के जरिये बड़ी आसानी से पहुंच सकते हैं।
बस आपको अपना यूजरनेम और पासवर्ड टाइप करना पड़ेगा और आप उस फाइल को हासिल कर सकते हैं।’ आज इसका इस्तेमाल कॉर्पोरेट, कॉलेज स्टूडेंट्स और दूसरे टेक सेवी लोग भी खूब कर रहे हैं।
इस सेवा का इस्तेमाल करने वाले चंदन कांत का कहना है, ‘मैं एमबीए की पढ़ाई और नौकरी साथ-साथ कर रहा हूं। इसलिए अक्सर मैं अपने घर के कंप्यूटर पर भी काम करता हूं, लेकिन सुबह जल्दबाजी की वजह से कई बार डाटा को ऑफिस ले जाना भूल जाता हूं।
इस सेवा की वजह से मैं उस डाटा को ऑफिस से भी एक्सेस कर लेता हूं। साथ ही, मेरे सहयोगी अगर मुझसे किसी गाने की मांग करते हैं, तो इस सेवा का इस्तेमाल करते हुए मैं उन्हें वे गाने भी दे देता हूं।’ आलोक बताते हैं, ‘चूंकि यहां डाटा कंपनी के सर्वर में स्टोर होता है, तो उसके करप्ट हो जाने का खतरा भी काफी कम होता है।’
खामियां भी हैं
ऐसी बात नहीं है कि इस सुविधा में सब कुछ अच्छा ही अच्छा है। आलोक बताते हैं, ‘वैसे, आज की तारीख में ज्यादा से ज्यादा सेवाएं तो आप ऑनलाइन ही इस्तेमाल की जाती हैं। और उनमें से भी ज्यादातर चीजें मुफ्त में ही मिलती हैं।
तो ऐसे में लोगों के दिमाग में यह सवाल उठाना लाजिमी ही है कि सिर्फ कुछ बुनियादी चीजों लिए ही पैसे क्यों खर्च करना? साथ ही, आपको इंटरनेट के लिए पैसे अलग से देने पड़ेंगे।’ ऊपर से, कई लोगों का यह भी मानना है कि इससे जुड़ने के बाद आपका डाटा पसर्नल नहीं रह जाता है। इसे कोई भी कभी भी देख पाएगा।
कैसा है इसका बाजार?
वर्चुअल डेस्कटॉप का बाजार अब भारत में तेजी पकड़ रहा है। अभी हाल ही एयरटेल ने नीवियो के साथ मिलकर इस सेवा को लॉन्च किया था।
वैसे, नोवाटियम के आलोक सिंह का कहना है, ‘हम इस क्षेत्र में पहल करने वालों में से हैं। आपके लिए ये एक नई बात हो सकती है, लेकिन हम काफी पहले से इस क्षेत्र में सेवा मुहैया करवा रहे हैं। हमारे उत्पादों को भी लोगों ने काफी सराहा है।’
उनके मुताबिक देश में इस क्षेत्र में अच्छी संभावनाएं मौजूद हैं। जरूरत है तो सही उत्पाद को लोगों तक पहुंचाने की। फाडिया भी उनकी राय से इत्तेफाक रखते हैं। उनका कहना है कि, ‘यह सेवा तो 20 सालों से मौजूद है, लेकिन देश में इसे एक कारोबार के रूप में अब देखा जा रहा है।’