बहुत सारे लोगों के लिए कूड़ा करकट बेकार की ही चीज होती है लेकिन कुछ लोग ऐसे होते हैं जो कूड़े करकट में से भी अपने काम की चीज ढूंढ सकते हैं।
कुछ इसी तरह के आर्टिस्ट हैं हस्ती विवेन सुंदरम जिन्होंने कूड़े करकट से ‘ट्रैश’ बनाया है। ‘ट्रैश’ कबाड़ से बनाई गई कलाकृतियों का संग्रह है। इस्तेमाल करके फेंकी गई केन और बोतलों, टूथब्रश, पाइप, टिन, कांच, कार्डबोर्ड और भी न जाने कितनी चीजों को इकट्ठा करके उन्होंने इन सबसे न जाने कितनी ‘कलात्मक’ चीजें बना रखी हैं।
एक तरह से उन्होंने अपनी एक अलग दुनिया ही रच डाली है। इसकी बानगी उनके नई दिल्ली में मौजूद स्टूडियो में नजर आ सकती है, जहां पर इन सबसे जुड़ी तस्वीरें और वीडियो आपको देखने के लिए मिल सकते हैं।
सुंदरम का कूड़े करकट का अपने माध्यम के रूप में इस्तेमाल करना अटपटा लग सकता है। लेकिन मौजूदा दौर की कला में आपको और भी उदाहरण मिल सकते हैं जो अजीबोगरीब तरीकों से अपनी कला का प्रदर्शन कर रहे हैं। भारत में सुबोध गुप्ता और जितेश कल्लट जैसे कलाकार अपने विशेष तौर तरीकों से अपनी अलग पहचान बना चुके हैं।
सुबोध जहां स्टील के बर्तनों के जरिये अपनी कला का प्रदर्शन करने के लिए मशहूर हैं तो वहीं कल्लट फायबरग्लास बोन्स के साथ अपनी कलाकारी प्रदर्शित करते हैं। अगर आप इन सबके ‘प्रयोगों’ से चौंक रहे हैं तो जरा निखिल चोपड़ा के बारे में भी सुन लीजिए।
वह मुंबई की एक पेटिंग गैलरी में पेटिंग करते रहे और इस दौरान वहां पर लोग उनको देखने भी आते रहे लेकिन चोपड़ा अपने काम में मशगूल रहे। इस तरह के कलाकारों की फेहरिस्त में शिल्पा गुप्ता और अनीता दुबे का नाम भी शामिल किया जा सकता है। वैसे अनीता दुबे तो कुछ साल से देश से बाहर हैं।
लेकिन यह सूची लंबी होती जा रही है और गैरपरंपरागत कला के खेमे में पेटिंग और स्कल्प्चर बनाने वालों की तादाद बढ़ती जा रही है। इस तरह का ट्रेंड भारत तक ही सीमित नहीं है बल्कि देश की सीमाओं से बाहर डेमियन हर्स्ट, हुमा मुल्जी जैसे कलाकार भी इसी तरह अपने काम को अंजाम दे रहे हैं। हुमा मुल्जी तो पाकिस्तानी हैं जिनकी ‘अरेबियन डिलाइट’ ने इस साल की शुरुआत में दुबई आर्ट फेयर में खूब वाहवाही बटोरी।
लेकिन क्या यह वाकई में कला है?
कलाकार लगातार पहले से चली आ रही मान्यताओं को तोड़ते हुए नये-नये प्रयोग करने से नहीं हिचक रहे हैं। लेकिन इससे एक सवाल भी उठता है कि क्या इसको भी कला का नाम देना ठीक होगा या नहीं?
भारत और दक्षिण एशिया में एक दशक से गैरपरंपरागत कला को बढ़ावा देने वाले संस्थान ‘खोज’ की निदेशक पूजा सूद कहती हैं, ‘मौजूदा दौर के कलाकार पुराने चीजों से बंधे हुए नहीं हैं, वे नये-नये प्रयोग करके अपने लिए नये क्षितिज तलाश रहे हैं।’ कुल मिलाकर मौजूदा दौर के आर्टिस्ट और क्यूरेटर बदलते वक्त के साथ नई तान छेड़ रहे हैं।
यही कला है तो फिर ….
गैलरी एस्पेस की रेणु मोदी कहती हैं, ‘ इस कला में बुनियादी फर्क कंटेंट का नहीं बल्कि कॉन्सेप्ट का है।’ रेणु कहती हैं कि आर्टिस्ट इन तरीकों को इसलिए अपना रहे हैं ताकि वे दूसरे कलाकारों से अलग नजर आ सकें।
ये आर्टिस्ट अपनी पेटिंग और स्कल्प्चर के वीडियो भी बना रहे हैं और सबको एक ही छतरी के तले पेश भी कर रहे हैं। इनमें से अधिकतर का फॉर्मेट बड़ा ही है। उदाहरण के तौर पर कल्लट के आर्ट में 4600 पीस हैं।
आप कैसे कर सकते हैं ऐसी बेकार की चीजों और कुछ बेहतर में फर्क?
अगर आप दिमाग का इस्तेमाल करने के लिए तैयार हैं तो यह मुश्किल काम नहीं है। मिसाल के तौर पर ‘ट्रैश’ को ही लीजिए, सुंदरम इसके लिए लगभग 10 सालों से बेकार और रद्दी चीजों के जरिए भी कला प्रदर्शित करने का काम कर रहे हैं। उनकी एक कलाकृति है, ’12 बेड वार्ड’ इसे हॉस्पिटल के बेड और पुराने जूतों के सोल से बनाया गया है।
अगर आप इस बात पर हैरान हो रहे हैं तो आप इस कलाकृति की एक झलक दिल्ली के फोटोइंक गैलरी में देख सकते हैं। शायद इसके बाद आप इस बात को समझने के काबिल हो जाएंगे कि आखिर कलाकार क्या करना चाह रहा है। सुंदरम को अपने आस-पास गंदगी फैलाकर बेहद सुकून मिलता है। लेकिन दूसरी ओर वह बड़े शहरों की प्लानिंग का भी जबरदस्त मखौल उड़ाते हैं।
आप इस पर अपने बौद्धिक स्तर पर विचार भी कर सकते हैं और पढ़ भी सकते हैं।चैन्तया संबरानी के आलोचनात्मक निबंधों में आधुनिकता और उससे पैदा हुई अव्यवस्था से निकले अनुभवों के बारे में जिक्र किया गया है। आप उससे इसका सहज अंदाजा लगा सकते हैं।
सूद इस बात पर ऐतराज जताते हुए कहती हैं, ‘हम ऐसा क्यों मानने लगते हैं कि कला को बेहद आसान ही होना चाहिए। हर चीज में एक व्याकरण, कानूनी पहलू और कारोबारी पहलू होता। इसे उभारने के लिए अपने दिमाग के बौद्धिक पहलू को थोड़ा सक्रिय करने की जरूरत होती है। फिर कला में ऐसा क्यों नहीं माना जाता?’
इस तरह की बेहद खास कलाओं का संग्रह करने वाले अनुपम पोद्दार का कहना है, ‘समकालीन कला में ज्यादातर सूक्ति और संदर्भो का इस्तेमाल किया जाता है और कला में ऐतिहासिक रंग देने की कोशिश होती है जिसे खत्म होना चाहिए। इस तरह के संदर्भो से अक्सर दर्शक कला के अलग-अलग स्तरों से रूबरू होते हैं।
यह कला आपको कभी किसी जीवंत स्मृति से जोड़ती है तो कभी बेहद आश्चर्यचकित करती है। कभी आप इसकी आलोचना करते हैं तो कभी मजाक भी उड़ाते हैं।’ सूद हमेशा ही बेकार चीजों के बीच में भी बेहतरीन चीजों को परख लेती हैं।
वह कहती हैं, ‘एक अच्छा कलाकार किसी कला को समझने के लिए हमेशा कोई न कोई संकेत जरूर पेश करता है। कोई भी कला जो बेहतर नहीं होती है वह बेहद अस्पष्ट होती है क्योंकि आप इसमें किसी ठोस विचार को नहीं देख पाते और न समझ पाते हैं।’
आखिर कौन हैं इस ‘कला’ के कद्रदान?
इस बात पर सभी सहमत होंगे कि भारत में किसी वैचारिक कला के देखने वालों की संख्या तो कम होती है और उन्हें संस्थागत सहयोग भी कम मिलता है। अब इसमें भी बदलाव नजर आ रहा है। अब मेट्रो शहरों की आर्टगैलरियों में ऐसी कला के लिए जगह दी जा रही है।
हालांकि अब भी यह बहुत ज्यादा नहीं कहा जा सकता है। जहां तक खरीदारों की बात है उसमें ज्यादातर पश्चिमी देशों और किसी संस्था से जुड़े हुए लोग होते हैं। मिसाल के तौर पर कल्लट और गुप्ता ने समकालीन विदेशी कला संग्रहालयों में अपनी मौजूदगी दर्ज कराई है। वहीं भारत में भी पोद्दार कोयंबतूर के राजश्री पैथी, पॉल बहनें, नितिन भयाना भी ऐसे काम का संग्रह कुछ सालों से कर रहे हैं।
कितने में मिलती हैं ये’कलाकृति’?
कीमतें कम तो नहीं हैं लेकिन उतनी भी नहीं हैं जितनी कि आजकल की पेंटिंग के दाम बढ़ रहे हैं। एक शुरूआती कलाकार के लिए अपने वीडियो लूप के लिए 40,000 रुपये मिलेंगे और दूसरी ओर एक सीनियर रणबीर कालेजा को 30,000 डॉलर तक मिल सकता है। पिछले कुछ सालों से इनकी कीमतों में 20 फीसदी का इजाफा हुआ है।
क्यों बिकती हैं ये ‘कलाकृतियां’?
निश्चित तौर पर यह कैसे काम करता है और इसकी क्वालिटी कैसी है, यह अहम मुद्दा तो होता ही है। इस तरह की कलाकृतियों को अच्छी तरह से संभाल कर रखना और दिखाना भी एक बड़ी समस्या है।
शाही लोगों के ये हैं शानदार तोहफे
तस्वीर को बनाए यादगार
कीमत: 10,900 रुपये
फ्रेजर एंड हाज ने एक शानदार फोटोफ्रेम पेश किया है। इस फ्रेम पर चांदी का बेहतरीन काम किया गया है। साथ ही ‘चेसिंग’ तकनीक से की गई कारीगरी इस फोटोफ्रेम को मुकम्मल बना देती है। अपने किसी खास को इसे तोहफे के रूप में दिया जा सकता है। कैमरे ने तो आपके किसी यादगार लम्हे को तो कैद किया होगा ही अब यह फोटोफ्रेम उसे और यादगार बना सकता है।
शाही डिनर की तैयारी
कीमत: 350 रुपये से शुरू
दिल्ली और मुंबई में मौजूद एड्रेस होम स्टोर ने एक नई रेंज पेश की है। इस खूबसूरत डिनरवेयर की रेंज में गोल्ड, प्लेटिनम और मेटलिक रंगो का बढ़िया तरीके से इस्तेमाल किया गया है। इस रेंज में कई उत्पाद खास हैं लेकिन चक्रा की तो बात ही कुछ और है। मैटलिक ग्लासवेयर के साथ इसकी जुगलबंदी गजब ढा सकती है जिसको खासतौर से पोलैंड से मंगाया गया है।
आराम का दूसरा नाम
कीमत: 30,000 से 50,000 रुपये
ब्रिटेन की जानी-मानी ब्रांड व्हाइट्स ऑफ लंदन ने त्योहारों के सीजन में ‘सेलेब्रेशन’ नाम से नई रेंज पेश की है। इस सीरिज के उत्पाद दिखने में तो लाजवाब है हीं आराम के मामले में भी इनका कोई जवाब नहीं। इसमें सिल्क के फैब्रिक पर बेहतरीन ऐंब्रोयडरी की गई है। इस रेंज में बेड शीट, डुवेट कवर्स और तकियों के कवर जैसी चीजें उपलब्ध हैं।
गुची के शानदार हैंडबैग
कीमत: 65,700 रुपये
फेस्टिव सीजन में गुची के बैग, शूज, एसेसरीज और ज्वेलरी की डिमांड तो हमेशा ही बनी रहती है। फॉल विंटर 2008 कलेक्शन में गोल्ड, ब्रॉन्ज और सिल्वर कलर के शानदार डिजाइन वाले बैग को खास तौर पर युवतियों और महिलाओं के लिए पेश किया गया है।
एचपी का डिजाइनर लैपटॉप
कीमत: 53,990 रुपये
बेहद स्टाइलिश एचपी पैविलियन डीवी2800 ने अपने आर्टिस्ट एडीशन के जरिए यह नोटबुक पीसी पेश किया है। इसमें 2.5 गीगाहट्र्ज इंटेल कोर 2 डुओ प्रोसेसर लगा है। यह रिमोट से भी चलता है। इसके बटन को टच करते ही फोटो, म्यूजिक और वीडियो का मजा लिया जा सकता है। इसमें बायोमेट्रिक फिंगरप्रिंट रीडर और 1.3 मेगापिक्सल का वेबकैम भी है।
वाह क्या खुशबू है
कीमत: 4,500 रुपये
कल्पना करिए एक ही गुलदस्ते में आपको हजारों फूलों की महक जैसे लिली, गुलाब और गेंदे की भीनी- भीनी सुगंध मिले तो कैसा होगा। एस्टी लॉडर परफ्यूम की खुशबू तो बस मदहोश करने वाली है। इसकी महकती खूशबू से ताजगी का अहसास होता है क्योंकि इसमें ताजे फूलों की मदमाती खूशबू वाले इत्र से आपके त्योहार के मौके पर खुशियों में इजाफा हो जाएगा।
बड़े लोगों का अनोखा फोन
कीमत: केवल ऑर्डर देने पर
वर्तु ने इस साल दो हैंडीक्राफ्ट हैंडसेट के कुछ गिने-चुने मॉडल बाजार में पेश किए हैं। इन फोन में कई खास फीचर्स मौजूद हैं। यह हैंडसेट स्कारलेट, आइवरी और सेफायर रंगों में उपलब्ध हैं। केवल एक ही टच में इसके बहुत सारे फीचर्स काम करते हैं।
वैसे तो बाजार में और भी एक से बढ़कर एक फोन मौजूद हैं लेकिन इसकी बात कुछ और ही है। अगर आपके पास यह फोन है तो निश्चित रूप से आपकी शान में चार चांद ही लगाएगा।
वैलेन्टिनो के खूबसूरत सैंडिल
कीमत: 24,000-72,000 रुपये
वैलेन्टिनो ने इस बार नया बेहतरीन डिजाइन का फुटवेयर कलेक्शन पेश किया है। इस ब्रांड के सैंडिलों के लेस, रिबन और उसके लेदर पर बेहद खूबसूरती से किए गए काम को सराहे बिना आप नहीं रह पाएंगे।
ये खूबसूरत फुटवेयर गहरे बैंगनी, गाढ़े जामुनी लाल रंग और चॉकलेटी भूरे रंगों में उपलब्ध हैं। त्योहारों के इस मौसम में ऐसा कलेक्शन आपके वार्डरोब में हो तो फिर क्या कहने। इस शानदार तोहफे को आप अपने किसी करीबी को दे सकते हैं।