फिल्म निर्माताओं और मल्टीप्लेक्स मालिकों के बीच कमाई के बंटवारे को लेकर छिड़ी जंग शांत होने का नाम नहीं ले रही है।
फिल्म निर्माता इसे इंसाफ की लड़ाई बता रहे हैं तो मल्टीप्लेक्स मालिक कह रहे हैं कि हिस्सेदारी देना संभव नहीं। नतीजा यह है कि मल्टीप्लेक्स खाली हैं और वहां कार्यरत कर्मचारियों की नौकरियों पर तलवार लटकी हुई हैं। सुशील मिश्र और अरुण यादव की रिपोर्ट…..
मल्टीप्लेक्स सिर्फ हिंदुस्तान में ही नहीं हैं, दूसरे देशों में भी हैं। जब दूसरे देशों में मुनाफा बराबर बांटा जा सकता है तो भारत में क्यों नहीं?
अपनी मांगों को वाजिब बताते हुए जाने माने निर्देशक एवं निर्माता महेश भट्ट कहते हैं कि यह लड़ाई मुनाफे की नहीं, इंसाफ की है। अपनी मांग सही ठहराते हुए महेश भट्ट कहते हैं कि अब बात बहुत आगे तक जा चुकी है।
मल्टीप्लेक्स मालिकों की मनमानी बहुत हो गई है। किसी भी शर्त पर हम मुनाफे में 50 फीसदी से कम हिस्सा नहीं लेंगे। जब तक हमें हमारा हक नहीं मिलता, तब तक यह जंग जारी रहेगी। क्योंकि मल्टीप्लेक्स मालिकों ने हमेशा हमारी सहनशीलता को गलत तरीके से लिया है।
उनको अगर यह लगता है कि इस मुद्दे पर किसी और तरह की बात होगी तो गलत है। बात शुरू करने के लिए जरुरी है कि पहले हमारी मांगों को माना जाए। पर्दे पर बड़ी-बड़ी समस्याओं को सुलझाने वाले निर्माता और निर्देशकों को लगता है कि वे खुद समस्याओं में फंसे हुए हैं।
इस पर महेश भट्ट कहते है कि 20 दिनों से ज्यादा जारी यह हड़ताल दुर्भाग्यपूर्ण है। इसमें सभी का नुकसान हो रहा है, लेकिन आज जो माहौल बन गया है यह हमारे लिए पैसे या प्राफिट की लड़ाई नहीं है बल्कि इंसाफ और हमारी साख की है। हम किसी भी कीमत पर पैर पीछे नहीं खीच सकते हैं।
निर्माताओं को आधी कमाई देना संभव नहीं
विशाल कपूर
फिल्म निर्माता और डिस्ट्रिब्यूशन कंपनियां मल्टीप्लेक्स सिनेमा मालिकों पर ज्यादा से ज्यादा कमाई का हिस्सा हड़पने का इल्जाम लगा रही है तो दूसरी ओर मल्टीप्लेक्स संचालकों का कहना है कि हमने पिछले साल की अपेक्षा इस साल फिल्मवालों को ज्यादा कमाई करके दी है और इससे ज्यादा दे पाना हमारे लिए संभव नहीं है।
फन मल्टीप्लेक्स समूह के सीओओ और मल्टीप्लेक्स समूहों की एसोसिएशन- एनएमपीईए के सदस्य विशाल कपूर कहते हैं कि वे चाहते हैं कि हम कमाई का आधा हिस्सा उन्हें दे जो संभव नहीं है क्योंकि मल्टीप्लेक्स सिनेमा चलाने में खर्च भी काफी होता है।
दर्शकों को हम जितनी अधिक सुविधा देते हैं, उतनी ही बार वो हमारे सिनेमा हाल में फिल्म देखना पसंद करते हैं, सुविधाओं पर होने वाले खर्च को आखिरकार कौन उठता है? इसके अलावा फिल्म चले या न चले एक मल्टीप्लेक्स को 30 से 60 लाख रुपये महीने खर्च करने ही पड़ते हैं। कपूर कहते हैं कि भारत में हर साल दुनिया की सबसे ज्यादा फिल्में बनती हैं।
रिलीज होने के बाद कई बड़ी फिल्में हिट होती हैं तो अच्छा मुनाफा होता है लेकिन सच्चाई यह है कि साल भर में गिनती की फिल्में ही हिट होती हैं जबकि ज्यादातर फिल्में बुरी तरह फ्लाप होती हैं।
इसके अलावा सप्ताहांत में तो दर्शकों की संख्या ठीक-ठाक रहती है लेकिन बाद में न के बराबर रह जाती है। शो के समय के अनुसार भी दर्शकों की संख्या में घट-बढ़ होती है लेकिन मल्टीप्लेक्स के खर्च में कमी नहीं होती है।
