सालाना कोलकाता पुस्तक मेला पिछले साल से पारंपरिक स्थान ‘मैदान’ से स्थानांतरित होने के बाद अपनी लोकप्रियता पुन: हासिल कर रहा है।
पिछले साल इस मेले का स्थान बदल दिया गया था जिससे कई पुस्तक प्रेमियों में मायूसी देखी गई थी। पिछले साल मेले को साल्ट लेक के उपनगर में स्थानांतरित कर दिया गया था जिसकी वजह से मेले को 17 लाख रुपये का नुकसान उठाना पड़ा।
लेकिन इस साल का मेला एक बार फिर से अपनी चमक लौटाने में काफी हद तक कामयाब रहा। 33वें कोलकाता पुस्तक मेले में आयोजन संस्था पब्लिशर्स ऐंड बुकसेलर्स गिल्ड ने लगभग 16 करोड़ रुपये का कारोबार दर्ज किया जो 2006 में अर्जित किए गए मुनाफे का 80 फीसदी है।
गिल्ड के सचिव त्रिदिब चटर्जी ने बताया, ‘इस साल मिलन मेला ग्राउंड पर आयोजित किए गए पुस्तक मेले में महज 12 लाख लोगों ने भाग लिया। हम यहां मैदान ग्राउंड पर किए जाने वाले कारोबार का 80 फीसदी कारोबार करने में सफल रहे हैं। मैदान ग्राउंड पर मेले के दौरान लगभग 22 लाख पुस्तक प्रेमियों ने दौरा किया था।’
ऐसा माना जा रहा है कि अगर बुनियादी सुविधाओं में और सुधार किया जाता है तो मिलन मेला ग्राउंड पुस्तक मेले के लिए मैदान ग्राउंड की तुलना में बेहद स्थल साबित हो सकेगा। मेले के लिए गिल्ड के पास मैदान ग्राउंड पर 23 एकड़ की बजाय यहां 18 एकड़ की जगह थी।
अलायड पब्लिशर्स के विपणन प्रबंधक समीर डे ने बताया, ‘मैदान ग्राउंड पर मेले के दौरान पुस्तक प्रेमियों की आवक काफी अधिक थी, लेकिन इस साल उन्हीं लोगों ने मेले का भ्रमण किया जो वास्तव में पुस्तकें खरीदना चाहते थे। हमने यहां 80,000 रुपये से लेकर 1 लाख रुपये प्रति दिन के हिसाब से पुस्तकों की बिक्री की।’
चटर्जी ने कहा, ‘मिलन मेला ग्राउंड का किराया 40 लाख रुपये है। यह किराया कीमत हमारे लिए लगभग 1.5 लाख रुपये होती, लेकिन मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य ने इसे घटा कर 40 लाख रुपये कर दिया। लेकिन हम अभी भी 61 लाख रुपये का नुकसान उठा रहे हैं।’
वर्ष 2010 में पुस्तक मेला 27 जनवरी से 7 फरवरी तक आयोजित किया जाएगा। इस साल पहली बार विदेश से आए प्रदर्शकों ने मेले के समापन समारोह में भाग लिया। थीम कंट्री स्कॉटलैंड ने एक बैगपाइपर बैंड भेजा था जिसने पारंपरिक वेशभूषा में प्रदर्शन किया।
नेशनल बुक ट्रस्ट के मुताबिक भारत शायद दुनिया में ऐसा एकमात्र देश है जो 24 भाषाओं में पुस्तकें प्रकाशित करता है। ट्रस्ट की वेबसाइट में कहा गया है कि लगभग 16 हजार प्रकाशक सभी प्रमुख भारतीय भाषाओं में लगभग 80,000 टाइटल्स प्रकाशित कर रहे हैं जिनमें 100,00 करोड़ रुपये के सालाना कारोबार के साथ अंग्रेजी भाषा भी शामिल है।
वेबसाइट के मुताबिक लगभग 40 फीसदी टाइटल अंग्रेजी में हैं। अमेरिका और ब्रिटेन के बाद अंग्रेजी पुस्तकों के प्रकाशन के मामले में भारत तीसरे नंबर पर है।
