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तीन से चार तिमाहियों के बाद उबर सकेगा आईटी उद्योग

Last Updated- December 08, 2022 | 7:46 AM IST

पिछले दो महीनों में सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) उद्योग ने कई ऐसी मुसीबतों का सामना किया है,


जिसकी वजह से भारत की सूचीबध्द प्रमुख आईटी सेवा प्रदाता कंपनियों को उनके विकास अनुमानों में कमी करने के लिए मजबूर होना पड़ा रहा है। पहले औसतन आईटी उद्योग की विकास दर साल-दर-साल के आधार पर लगभग 30 प्रतिशत थी।

इसके मद्देनजर भारत की दूसरी सबसे बड़ी आईटी सेवाएं मुहैया कराने वाली कंपनी इन्फोसिस टेक्नोलॉजिज के मुख्य कार्याधिकारी कृष गोपालकृष्णन ने खुद कहा था कि आईटी-बीपीओ क्षेत्र की रफ्तार इस वित्त वर्ष में 15 प्रतिशत ही रहेगी। लगभग दो महीने पहले नैसकॉम ने कहा था कि क्षेत्र में 21 से 24 प्रतिशत तक विकास दर की उम्मीद है।

यह पहली बार है कि आईटी टेक की शीर्ष कंपनी ने अगले साल कंपनियों में नियुक्तियों पर रोक लगा दी है। इसी के साथ टीसीएस ने भी अपने पूंजीगत व्यय पर दोबारा विचार करने का मन बनाया है।

फॉरेस्टर के वरिष्ठ विशेषज्ञ सुदिन आप्टे का कहना है, ‘इसमें हैरत की बात नहीं है, क्योंकि हमने पहले ही क्षेत्र की विकास दर 15 से 18 प्रतिशत के बीच रहने के अनुमान लगाए थे।’

टीपीआई इंडिया के साझेदार और प्रबंध निदेशक सिध्दार्थ पई का कहना है, ‘हम पर अभी तक इसका पूरा असर दिखाई नहीं पड़ा है। आईटी कंपनियों की ओर से की गई घोषणाओं से साफ संकेत मिलता है कि जबरदस्त विकास के दिन लद गए।

बेशक इसके लिए एक कारण यह भी है कि आप कंपनियों से वैसा ही विकास बनाए रखने की उम्मीद नहीं कर सकते, जैसे पहले थी।’

सलाहदाता कंपनी थॉलन्स कैप्टिल के उपाध्यक्ष निशांत वर्मा का कहना है कि समस्या यह भी है कि फर्च्यून 500 कंपनियों की 90 प्रतिशत से भी अधिक कंपनियां पहले ही अपने एप्लीकेकशन, विकास एवं देखरेख (एडीएम) काम के लिए भारतीय कंपनियों के साथ करार कर चुकी हैं। और नया कारोबार मिलने की उम्मीद बहुत कम है।

बड़ी कंपनियों के पास संकट में डटे रहने के लिए भी पर्याप्त पैसा है। उदाहरण के लिए अगर मान लिया जाए कि कोई कारोबार न भी हो तब भी शीर्ष चार आईटी कंपनियों के पास उनके कर्मचारियों का वेतन देने के लिए लगभग 4 से 10 महीने के लिए पैसे हैं।

ईडलवीज सिक्योरिटीज की एक रिपोर्ट के मुताबिक अगर कोई काम न भी हो तो भी इन्फोसिस (8,500 करोड़ रुपये) और सत्यम  (5,750 करोड़ रुपये) दोनों के पास अपने कर्मियों को 8 से 9 महीने तक वेतन देने के लिए नकद है।

जबकि टीसीएस के पास इतना (4,500 करोड़ रुपये) नकद है कि वह अपने कर्मचारियों को सिर्फ 3 से 4 महीने तक वेतन दे पाए।

वहीं विप्रो के पास अपने कर्मियों को 6 से 7 महीने तक वेतन देने के लिए ही (6,500 करोड़ रुपये) पैसे हैं। आर्थिक संकट का सबसे अधिक असर बैंकिग, वित्तीय सेवाओं और बीमा (बीएफएसआई) कारोबारों पर देखने को मिला है, जिसके कारण करारों की कीमतों पर दोबारा मोल-भाव हो रहा है और करार की रफ्तार भी धीमी हो रही है।

टीपीआई के पई और फॉरेस्टर के आप्टे का कहना है कि ‘सलाहदाता फर्म होने के नाते, हम कुछ जटिल कामों के लिए भी हम आउटसोर्स की गतिविधियों में तेजी देख सकते हैं। इससे हमें विश्वास मिलता है कि आईटी कारोबार अगली 3 से 4 तिमाहियों में दोबारा ऊपर का रुख करेगा।’

First Published - December 7, 2008 | 11:58 PM IST

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