बीएस बातचीत
कोटक महिंद्रा बैंक के एमडी एवं सीईओ उदय कोटक ने ऐसे समय में भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) के अध्यक्ष का पदभार संभाला है जब कोरोनावायरस के प्रसार को रोकने के लिए किए गए लॉकडाउन से अर्थव्यवस्था को तगड़ा झटका लगा है। कोटक ने शुभायन चक्रवर्ती और इंदिवजल धस्माना से बातचीत में कहा कि सरकार स्वास्थ्य और सतत विकास पर अधिक खर्च कर रही है और ऐसे में यह कहना कठिन होगा कि उसे कमजोर उद्यमों का समर्थन करना चाहिए अथवा नहीं। कोटक के साथ विभिन्न मुद्दों पर हुई बातचीत के मुख्य अंश:
आर्थिक वृद्धि की रफ्तार कोविड-19 प्रकोप से पहले ही सुस्त पड़ चुकी थी। ऐसे में आप मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के पहले वर्ष के प्रदर्शन के बारे में क्या कहेंगे?
किसी भी सरकार के एक साल का प्रदर्शन इस बात से निर्धारित होगा कि कोविड-19 प्रकोप के साथ क्या हुआ है। इसने दुनिया में हर सरकार के मानस पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है। यह सही है कि वृद्धि की रफ्तार शुरू से ही धीमी हो गई थी। लेकिन हम विश्व के इतिहास में एक अभूतपूर्व परिस्थिति को देख रहे हैं। मैं इस बात पर अधिक ध्यान केंद्रित करना चाहूंगा कि हम इससे बाहर कैसे निकल सकते हैं और इस अवसर का इस्तेमाल अपने बेहतर भविष्य के लिए कैसे कर सकते हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सीआईआई की वार्षिक आम बैठक में वृद्धि को वापस पटरी पर लाने की बात की। लेकिन लॉकडाउन के झटके के बाद आगामी महीनों में वृद्धि को रफ्तार देने के लिए आप सरकार को क्या सलाह देना चाहेंगे?
इस साल के लिए हमारा विषय एक नए विश्व के लिए भारत का निर्माण है। लघु अवधि में तात्कालिक उद्देश्य लोगों के जीवन और आजीविका की रक्षा करना है और इसके लिए चाहे जो भी करना पड़े। मध्यावधि के लिए हमने अपनी प्राथमिकताएं तय की हैं। पूंजी बाजार में अधिकतर निवेशक कह रहे हैं कि हमें पता है कि यह एक कठिन वर्ष है और ज्यादातर कंपनियां कमजोर आय दर्ज करेंगी। उनकी नजरें 2021 से आगे 2022 और 2023 में भविष्य पर टिकी हैं। वे निवेश संबंधी निर्णय के आधार पर वृद्धि की प्रवृत्ति देख रहे हैं। यही बात भारत की जीडीपी वृद्धि पर भी लागू होती है। इस समय हमें हर किसी के लिए सब कुछ सुनिश्चित करने पर ध्यान देने के बजाय संरचनात्मक तौर पर महत्त्वपूर्ण चीजों में निवेश करना चाहिए।
इसमें स्वास्थ्य सेवा और सतत विकास का स्थान कहां आता है?
हमें स्वास्थ्य सेवा को प्राथमिकता देने की आवश्यकता है। हम स्वास्थ्य सेवा पर जीडीपी का 1.3 फीसदी खर्च करते हैं। मैं इसमें उल्लेखनीय वृद्धि करना चाहूंगा। प्रकृति को प्राथमिकता देना जरूरी है। हालांकि उद्योग संगठन के तौर पर इस संबंध में बात करना असामान्य हो सकता है लेकिन हमें अर्थव्यवस्था के साथ-साथ उन सामाजिक पहलुओं पर भी गौर करने की जरूरत है कि प्रकृति ने पिछले 3 से 4 महीनों के दौरान क्या किया है- चाहे वायरस हो अथवा टिड्डियों का हमला या फिर चक्रवाती तूफान। यह हमारे जीवन और अर्थव्यवस्था के अत्यंत महत्त्वपूर्ण हिस्से को सजग करने का समय है।
आपने स्वास्थ्य सेवा पर खर्च बढ़ाने का सुझाव दिया है लेकिन संसाधन की कमी के कारण सरकार को कहां खर्च में कटौती करनी चाहिए?
चलिये विमानन क्षेत्र का उदाहरण लेते हैं जो तमाम चुनौतियों से जूझ रहा है। इसमें करीब छह विमानन कंपनियां मौजूद हैं। मान लेते हैं कि इनमें से तीन या चार विमानन कंपनियां खुद को बनाए रखने में समर्थ हैं। लेकिन क्या सरकार को संघर्ष से जूझ रहीं अन्य विमानन कंपनियों को मदद करनी चाहिए अथवा स्वास्थ्य सेवा पर खर्च करना चाहिए? मान लीजिए कि सरकार विमानन कंपनियों की मदद नहीं करती है और इससे उसका कारोबार बंद होने और रोजगार के नुकसान का जोखिम पैदा होगा। क्या ऐसे में स्वास्थ्य सेवा में मध्यावधि निवेश की जगह इसे संरक्षित किया जाना चाहिए? ये कठिन निर्णय होते हैं जो हमें एक समाज के तौर पर लेने पड़ते हैं।
सरकार ने पर्यटन एवं होटल जैसे संकटग्रस्त क्षेत्रों को कोई विशेष रियायत दिए बिना 20 लाख करोड़ रुपये के पैकेज की घोषणा की है। क्या आपको लगता है कि इस समय हमें क्षेत्रीय दृष्टिकोण अपना चाहिए?
यह बिल्कुल वैसा ही सवाल है कि क्या सरकार को किसी कमजोर कारोबार को बचाना चाहिए अथवा उसे बाजार की ताकत पर छोड़ देना चाहिए कि वह उससे किस प्रकार निपटती है।
सरकार ने कहा है कि वह एक ऐसी सार्वजनिक उपक्रम नीति लेकर आएगी जिसमें केवल चार सार्वजनिक उपक्रम होंगे और उन्हें कुछ रणनीतिक क्षेत्रों में बने रहने की अनुमति होगी। इस आप क्या कहेंगे?
सरकार कारोबार से बाहर होने की योजना बना रही है। इस बात की संभावना नहीं है कि वह उन क्षेत्रों में कमजोर कारोबार को समर्थन जारी रखेगी जहां उपभोक्ता के लिए पर्याप्त प्रतिस्पर्धा हो।
चीन से आयात घटाने और आत्मनिर्भर विनिर्माण के लिए कुछ क्षेत्रों में आयात शुल्क बढ़ाने के बारे में आप क्या सुझाव देंगे?
व्यक्तिगत तौर पर मेरा मानना है कि आत्मनिर्भर भारत को एक प्रतिस्पर्धी भारत भी बनना है। एक प्रतिस्पर्धी भारत को विश्व के साथ जुडऩा होगा। यह कहना कि हम भारत में उन देशों से अनुचित आयात की अनुमति नहीं दे सकते जहां उत्पाद का मूल्य उचित नहीं है अथवा सरकार द्वारा सब्सिडी दी जाती है। लेकिन यदि ऐसा है तो हम शुल्क बढ़ाकर उससे निपट सकते हैं और मैं खुशी से उस शुल्क का समर्थन करूंगा। अन्यथा मैं चाहूंगा कि शुल्कदरें उचित और निष्पक्ष हों।
आपने निजी क्षेत्र के बैंकों और एनबीएफसी को पूंजी जुटाने के लिए कहा है। क्या निजी क्षेत्र के साथ-साथ केंद्र और राज्य सरकारों के लिए बाजार में पर्याप्त पूंजी होगी?
निवेश के सही अवसरों के लिए बाजार में पर्याप्त पूंजी उपलब्ध है।
अधिकतर प्रवासी श्रमिक अपने गांव वापस चले गए हैं। ऐसे में क्या ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक निवेश करने की जरूरत होगी?
ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के बीच नए सिरे से संतुलन स्थापित करने लिए हमारे पास एक बड़ा एजेंडा है। हमने शहरों से गांवों की ओर बड़े पैमाने पर श्रमिकों को जाते देखा है। हमारे लिए यह एक बेहतर और संतुलित क्षेत्रीय विकास करने का समय है। हमें ग्रामीण बुनियादी ढांचे, ग्रामीण डिजिटल, ग्रामीण चिकित्सा आदि में निवेश करना चाहिए। मैं यह नहीं कर रहा कि जो लोग गांवों में वापस चले गए हैं वे दोबारा शहरों में नहीं आएंगे। हो सकता है कि उनमें से कुछ नहीं आएं लेकिन यदि हम इस समय ग्रामीण भारत में एक उत्साह पैदा करते हैं तो हम यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि शहरी भारत बहुत कम अव्यवस्थित होगा। शहरों में उनके लिए जीवन और आजीविका कठिन है। इसलिए उन्हें शहरों में वापस लाना आसान नहीं होगा।