भारत की 6 प्रमुख सूचना प्रौद्योगिकी सेवाएं मुहैया कराने वाली कंपनियों ने 2007 में काफी अच्छा प्रदर्शन किया है।
गार्टनर के अनुसार विदेशों में अपनी सेवाएं मुहैया कराने वाली ‘स्विच’ के नाम से जाने जाने वाली 6 कंपनियां सत्यम, विप्रो, इंफोसिस, टीसीएस, कॉग्निजेंट और एचसीएल टेक्नोलॉजीस 2007 में विश्व की आईटी सेवाओं के बाजार का कुल 2.4 प्रतिशत हैं, जबकि 2006 में यह आंकड़ा 1.9 प्रतिशत है।
2007 में स्विच कंपनियों ने अमेरिका के 3.6 प्रतिशत आईटी सेवाओं के बाजार पर कब्जा जमा लिया, जबकि 2006 में कंपनियों का सिर्फ 2.8 प्रतिशत बाजार पर ही दबदबा था और कंपनियों ने पश्चिमी यूरोप से प्राप्त होने वाले राजस्व को 2007 में 51 प्रतिशत बढ़ा लिया जो कुल बाजार का लगभग 4 गुना है।
2007 में समूह का पश्चिम यूरोपीय सूचना प्रौद्योगिकी सेवाओं के बाजर में 1.9 प्रतिशत हिस्सा था जो कि 2008 में 1.5 प्रतिशत था। टीसीएस, विप्रो और इंफोसिस अब पश्चिम यूरोपीय सेवा मुहैया कराने वाले प्रमुख 50 कंपनियों में शामिल हैं।
गार्टनर के वरिष्ठ शोध विश्लेषक अरूप रॉय का कहना है, ‘भारत की सूचना प्रौद्योगिकी सेवाएं मुहैया कराने वाली कंपनियां प्रतिस्पर्धा में तेजी से आगे बढ़ रही हैं और वे बाजार के बढ़े हिस्से पर अपना दबदबा बना रही हैं। ये कंपनियां बड़े विदेशी सौदों में एक-दूसरे से मुकाबला कर रही हैं, जिसमें वे अक्सर 400 करोड़ रुपये के सौदे करते हैं। इनमें से कुछ सौदे कई वर्षों के लिए किए जाते हैं।’
टीसीएस 2007 में भी दुनियाभर में भारत की आईटी सेवाओं की सबसे बड़ी विक्रेता कंपनी के खिताब को अभी भी बरकरार रखे हुए है। 2006 में कंपनी इस सूची में 35वें स्थान पर थी, जबकि 2007 में कंपनी राजस्व में 34.8 प्रतिशत की वृध्दि के साथ 28वें पायदान पर पहुंच चुकी है। बेशक कंपनी ने तरक्की की है, लेकिन विक्रेता कंपनियों के समूह की 2007 में 38 प्रतिशत की वृध्दि की औसत के मुकाबले कंपनी की वृध्दि कुछ कम है।
कंपनी ने 2006 में 152 अरब रुपये के राजस्व के साथ कुल बाजार की वृध्दि दर से तीन गुना अधिक वृध्दि की थी। शोध और सलाहकार कंपनी गार्टनर का कहना है कि संयुक्त और व्यक्तिगत तौर पर कपंनियों के इस समूह ने वह वृध्दि दर हासिल की है, जिससे वह बाकी के बाजार में भी रफ्तार ला दे।
पश्चिम यूरोपीय बाजार में भारतीय कंपनियों के प्रदर्शन पर रॉय का कहना है, ‘सामान्य तौर पर भारतीय सेवा मुहैया कराने वाली कंपनियां पश्चिम यूरोपीय आईटी सेवाओं के बाजार में उस तरह से हलचल नहीं मचा पाई हैं, जिस तरह से उन्होंने अमेरिकी बाजार में कर पाई हैं, लेकिन यह वृध्दि दर विदेशी सेवाओं के लिए अगले विकास क्षेत्र की ओर इशारा करती है।
भारतीय सेवा मुहैया कराने वाली कपंनियां इस बाजार में पहले से मौजूद आईटी सेवाएं देने वाली कंपनियों के बावजूद आखिरकार इस क्षेत्र में उतर आई हैं।’ रिपोर्ट में बताया गया है कि अगले 12 महीनें भारतीय सेवाए प्रदाता कंपनियों वाले इस समूह के लिए काफी चुनौतीपूर्ण रहेंगे। वैश्विक वितरण योग्यताओं के मामले में इन कंपनियों के बीच और मौजूदा सेवा प्रदाताओं का अंतर कम हो जाएगा।
इसलिए, व्यक्तिगत आधार पर इन कंपनियों को अपने में कुछ अलग से खरीदारों को आकर्षित करना होगा, जबकि इसी समय में वे विदेशों में सेवा प्रदाता कंपनी के ब्रांड का फायदा भी उठा सकती हैं, जो उन्हें आगे भी मिलता रहेगा। जरूरी नकदी की उपलब्धता के साथ भारतीय प्रदाता कंपनियां विभिन्न क्षेत्रों में अपनी सेवाओं के विस्तार कर सकती हैं और अधिग्रहण वह विस्तार के माध्यम से विभिन्न बाजारों में अपनी मौजूदगी बढ़ा सकती हैं।