बीमा कंपनियां और निवेश बैंकर सख्त खुलासा मानकों से बचने के लिए ड्राफ्ट रेड हेयरिंग प्रॉस्टपेक्टस (डीआरएचपी) पेश करने की प्रक्रिया में तेजी ला सकती हैं। उद्योग की कंपनियों का मानना है कि नए नियम लागू होने से पहले अगले दो महीनों के दौरान दस्तावेज सौंपने की प्रक्रिया सामान्य के मुकाबले काफी तेज हो सकती है।
शुक्रवार को भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने नुकसान में चल रही कंपनियों द्वारा शेयर बिक्री के मूल्य निर्धारण को लेकर हो रही आलोचना के बीच सभी आईपीओ के लिए खुलासा मानकों को सख्त बनाने की घोषणा की। भविष्य में, पारंपरिक मानकों के अलावा, कंपनियों को अब मुख्य प्रदर्शन संकेतकों (केपीआई) का भी खुलासा करना होगा, जिन्हें सामान्य तौर पर वित्तीय बयानों में साझा नहीं किया जाता है।
इसके अलावा, आईपीओ लाने वाली कंपनियों को आईपीओ से पहले हुए सौदों के लिए शेयरों की कीमतों का विवरण भी देना होगा। उन्हें आईपीओ लाने के संबंध में निजी इक्विटी निवेशकों के साथ साझा की जाने वाली सभी जानकारी देनी होगी और स्वतंत्र निदेशकों की समिति से स्वीकृत आईपीओ कीमत दायरा भी बताना होगा।
निवेश बैंकरों का कहना है कि वर्ष के अंत से पहले अपने आईपीओ पेश करने की योजना बना रहीं कंपनियां अब सख्त खुलासा मानकों से बचने के लिए जल्द से जल्द अपनी डीआरएचपी प्रक्रिया पूरी करने पर जोर दे सकती हैं। उद्योग के जानकारों का अनुमान है कि औसत तौर पर, आठ डीआरएचपी हर महीने पेश किए जाते हैं, और अब यह संख्या बढ़कर एक दर्जन हो सकती है।
बाजार नियामक द्वारा इश्यू ऑफ कैपिटल ऐंड डिस्क्लोजर रिक्वायरमेंट्स (आईसीडीआर) रेग्युलेशंस में संशोधन को अधिसूचित किए जाने के बाद नए नियम इस साल के अंत में लागू होने की संभावना है।
डीएसके लीगल में पार्टनर गौरव मिस्त्री ने कहा, ‘खासकर, पिछले कुछ वर्षों में सार्वजनिक निर्गमों में शेयरों का मूल्य नियामक के लिए मुख्य चिंता रहा है। इसके अलावा, कुछ मामलों में सूचीबद्धता के बाद कीमतों में आई भारी गिरावट से भी बाजार धारणा प्रभावित हुई, जिसका छोटे निवेशकों पर प्रत्यक्ष रूप से असर पड़ा है। केपीआई खुलासों की यह अनिवार्य जरूरत इन कुछ चिंताओं को दूर करने के लिए आवश्यक है।’
केएस लीगल ऐंड एसोसिएट्स में मैनेजिंग पार्टनर सोनम चांदवानी ने कहा, ‘ जहां नए कदम पेटीएम और जोमैटो जैसे नुकसान में चल रहे आईपीओ को ध्यान में रखते हुए भी उठाए गए हैं, वहीं ये नियम सभी आईपीओ के लिए लागू होंगे। नए नियम सही दशा में पेश किए गए कदम हैं, लेकिन बैंकरों, संस्थापकों और निदेशकों को जरूरी जानकारी की मात्रा को लेकर शेयर कीमत तय करने जैसी समस्याएं आ सकती हैं। ये समस्याएं गंभीर होंगी, क्योंकि ऑडिटर को अपनाए गए बदलावों का आकलन करने की जरूरत होगी, जिससे अनुपालन के अतिरिक्त खर्च को बढ़ावा मिलेगा।’
कुछ विश्लेषकों का कहना है कि कंपनियां नए नियमों से पूरी तरह बचने में सक्षम नहीं हो सकेंगी, क्योंकि अभी पेश किए जाने वाले आईपीओ सिर्फ 4-6 महीने में ही बाजार में आ पाएंगे। एक निवेश बैंकर ने नाम नहीं बताने के अनुरोध के साथ कहा, ‘तब तक, नए नियम प्रभावी हो जाएंगे। जहां पूरी डीआरएचपी प्रक्रिया को पुन: पेश करने की जरूरत नहीं हो सकती है, लेकिन खुलासा और आईपीओ के प्रचार का तरीका आगे चलकर अलग होगा।’
एक तरफ जहां कंपनियों को सख्त खुलासा व्यवस्था पर अमल करना होगा, वहीं दूसरी तरफ, उन्हें गोपनीय तरीके से आईपीओ पेश करने का भी विकल्प मिलेगा। इसके तहत, आईपीओ लाने वाली कंपनियों को सूचीबद्धता योजना पूरी नहीं हो जाने तक डीआरएचपी को पब्लिक डॉमेन में नहीं रखना होगा।