facebookmetapixel
जियो, एयरटेल और वोडाफोन आइडिया ने सरकार से पूरे 6G स्पेक्ट्रम की नीलामी की मांग कीतेजी से बढ़ रहा दुर्लभ खनिज का उत्पादन, भारत ने पिछले साल करीब 40 टन नियोडिमियम का उत्पादन कियाअमेरिकी बाजार के मुकाबले भारतीय शेयर बाजार का प्रीमियम लगभग खत्म, FPI बिकवाली और AI बूम बने कारणशीतकालीन सत्र छोटा होने पर विपक्ष हमलावर, कांग्रेस ने कहा: सरकार के पास कोई ठोस एजेंडा नहीं बचाBihar Assembly Elections 2025: आपराधिक मामलों में चुनावी तस्वीर पिछली बार जैसीरीडेवलपमेंट से मुंबई की भीड़ समेटने की कोशिश, अगले 5 साल में बनेंगे 44,000 नए मकान, ₹1.3 लाख करोड़ का होगा बाजारRSS को व्यक्तियों के निकाय के रूप में मिली मान्यता, पंजीकरण पर कांग्रेस के सवाल बेबुनियाद: भागवतधर्मांतरण और यूसीसी पर उत्तराखंड ने दिखाई राह, अन्य राज्यों को भी अपनाना चाहिए यह मॉडल: PM मोदीधार्मिक नगरी में ‘डेस्टिनेशन वेडिंग’, सहालग बुकिंग जोरों पर; इवेंट मैनेजमेंट और कैटरर्स की चांदीउत्तराखंड आर्थिक मोर्चे पर तो अच्छा प्रदर्शन कर रहा है, लेकिन पारिस्थितिक चिंताएं अभी भी मौजूद

US-India trade: फार्मा उद्योग ने सरकार से अमेरिकी दवाओं पर शुल्क हटाने की मांग की

अमेरिका के संभावित जवाबी टैरिफ से बचने और मरीजों को सस्ती दवाएं उपलब्ध कराने के लिए उद्योग का प्रस्ताव

Last Updated- March 05, 2025 | 10:42 PM IST
Pharma industry

फार्मा उद्योग ने सरकार से अनुरोध किया है कि अमेरिका से आयात किए जाने वाली फार्मास्युटिकल दवाओं/उत्पादों पर शुल्क शून्य किया जाए ताकि यह कारोबार अमेरिकी जवाबी टैरिफ की मार से बच सके। इस मामले में सरकार के वरिष्ठ अधिकारियों ने टिप्पणी करने से इनकार कर दिया। चर्चा है कि भारत से अमेरिका निर्यात किए जाने वाले फार्मास्युटिकल उत्पादों पर भी पारस्परिक शुल्क लगाया जाएगा। स्थानीय फार्मा उद्योग इससे सहमा हुआ है।

दवा निर्यातकों की चिंता वाजिब है, क्योंकि भारतीय फार्मा उद्योग के लिए लगभग 27.8 अरब डॉलर के साथ अमेरिका सबसे बड़ा निर्यात बाजार है, जहां कुल फार्मा निर्यात का 31.35 प्रतिशत माल जाता है। ब्रिटेन को केवल 2.82 प्रतिशत, दक्षिण अफ्रीका को 2.58 प्रतिशत, बेल्जियम को 2.06 प्रतिशत, रूस को 1.86 प्रतिशत के साथ-साथ यूरोपीय संघ को कुल 20.05 प्रतिशत फार्मा उत्पाद निर्यात किए जाते हैं।

जानकारी के अनुसार प्रमुख उद्योग संगठन के प्रतिनिधिमंडल ने हाल ही में सरकार से मिलकर अनुरोध किया है कि अमेरिकी आयात पर सीमा शुल्क जीरो किया जाना चाहिए। सरकारी अधिकारियों के साथ बातचीत करने वाले प्रतिनिधिमंडल में शामिल फार्मा उद्योग से जुड़े एक शीर्ष पदाधिकारी ने कहा, ‘हम अमेरिका को 8.7 अरब डॉलर का निर्यात करते हैं और हमारा आयात 80 करोड़ डॉलर का है। आयात की जाने वाली वस्तुओं में लगभग आधी ऐसी हैं जो शुल्क के दायरे में नहीं आतीं। शेष वस्तुएं 5 से 10 प्रतिशत शुल्क की श्रेणी में हैं। यदि हम इस शुल्क को शून्य कर देते हैं तो अमेरिका भी फार्मा उत्पादों पर कोई जवाबी शुल्क नहीं लगाएगा।’

फार्मास्युटिकल एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल के पूर्व महा निदेशक उदय भास्कर ने कहा, ‘कोई नहीं जानता कि डॉनल्ड ट्रंप क्या कदम उठाने वाले हैं। ऐसे में भारत को अमेरिका से आयात होने वाली फार्मा दवाओं पर शुल्क शून्य करने पर विचार किया जाना चाहिए। अमेरिका कोई जेनरिक दवा भारत नहीं भेजता है। वहां से केवल दुर्लभ बीमारियों, कैंसर के इलाज में काम आने वाली दवाएं और नवाचार ड्रग ही आती हैं। ये पहले से ही बहुत महंगी हैं। यदि इन से आयात शुल्क हट जाता है तो ये भारतीय मरीजों की पहुंच में होंगी।’ भारत पहले से ही कैंसर और दुर्लभ बीमारियों की दवाओं पर आयात शुल्क घटाता रहा है। इस बार के बजट में भी इस दिशा में कई ऐलान किए गए हैं।

भारत के कुल जेनरिक दवा निर्यात का 47 प्रतिशत कारोबार अमेरिका के साथ होता है। यह अमेरिका को किफायती दवाओं की सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता है। उद्योग से जुड़े लोगों का मानना है कि भारतीय दवाओं पर अमेरिका का शुल्क लगाने का भी कोई तुक नहीं बनता, क्योंकि इससे वहां स्वास्थ्य देखभाल की लागत बढ़ जाएगी। अमेरिका वास्तव में 200 अरब डॉलर की दवाएं यूरोप से मंगाता है, लेकिन भारत से सबसे ज्यादा दवाएं वहां जाती हैं।

इंडियन फार्मास्युटिकल अलायंस के महानिदेशक सुदर्शन जैन ने कहा, ‘भारतीय दवाएं पहले से ही सस्ती हैं। टैरिफ पर दोनों सरकारें बात कर रही हैं और उम्मीद है जल्द समाधान निकाल लिया जाएगा।’ विश्लेषकों का कहना है कि अमेरिका जेनरिक दवा बाजार टैरिफ युद्ध से पैदा होने वाली उथल-पुथल से निपटने के लिए तैयार नहीं दिखता।

सिटी रिसर्च रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में दवा कंपनियां चौकन्नी हो गई हैं जिससे बाजार में दवाओं की कमी आई और अमेरिका में मूल्य गतिशीलता में बदलाव आया है। ऐतिहासिक रूप से तेवा/वायट्रिस/सैंडोज जैसी कंपनियों ने अपने पोर्टफोलियो में कटौती शुरू कर दी है और इससे पैदा हुई खाई को भारतीय कंपनियां पाट रही हैं। विश्लेषक यह भी कहते हैं, ‘यदि भारतीय कंपनियां अपने पांव पीछे खींच लें तो अमेरिका में दवाओं की किल्लत नियंत्रण से बाहर हो जाएगी।’

First Published - March 5, 2025 | 10:42 PM IST

संबंधित पोस्ट