Mining Tax: सर्वोच्च न्यायालय ने आज एक फैसले में राज्यों को खनिजों और उससे संबंधित जमीन पर पिछली तिथि से कर लगाने का अधिकार दिया है। इससे खनन उद्योग को आर्थिक झटका लग सकता है और देश में विनिर्माण तथा धातु क्षेत्र पर भी असर पड़ने की आशंका है।
पिछले महीने शीर्ष अदालत ने खनिज संपदा से समृद्ध राज्यों के पक्ष में फैसला सुनाते हुए उसे खनिज और खनन उपयोग गतिविधियों पर उपकर लगाने का अधिकार दिया था। आज अदालत ने अपने फैसले में कहा है कि राज्य खनिजों और संबंधित जमीन पर पिछली तिथि से कर की वसूली कर सकते हैं और इसके लिए 1 अप्रैल, 2005 की तारीख तय की है।
अदालत ने कहा कि कर मांग के भुगतान 1 अप्रैल, 2026 से शुरू होकर 12 साल की अवधि में किस्तों में किया जाएगा। शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि 25 जुलाई, 2024 को या उससे पहले की गई ब्याज की वसूली और जुर्माने की मांग माफ कर दी जाएगी।
अदालत का यह फैसले नौ जजों के पीठ द्वारा बहुमत के उस फैसले के बाद अया है जिसमें राज्यों को खनन और खनिज उपयोग गतिविधियों पर उपकर लगाने का अधिकार दिया गया था। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया था कि खनन ऑपरेटरों द्वारा किया जाने वाला रॉयल्टी भुगतान कर नहीं है।
25 जुलाई के फैसले ने राजकोषीय संघवाद के सिद्धांतों का हवाला देते हुए खनिजों पर कर लगाने पर राज्यों और केंद्र के अधिकार के धुंधले विभाजन को साफ कर दिया था। बहुमत वाले फैसले पर मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा था, ‘कराधान इन राज्यों के राजस्व के महत्त्वपूर्ण स्रोत में से एक है जो लोगों को कल्याणकारी योजनाएं और सेवाएं प्रदान करने की राज्यों की क्षमता पर असर डालता है। राजकोषीय संघवाद का मतलब यह है कि विधायी क्षेत्र के अंतर्गत और संविधान द्वारा तय की गई सीमाओं के अधीन कर लगाने के राज्यों के अधिकार को संसद द्वारा असंवैधानिक हस्तक्षेप से सुरक्षित किया जाना चाहिए।’
समय-सीमा के बारे में हालिया स्पष्टता से राज्यों में खुशी की लहर है क्योंकि इससे उनके राजस्व में वृद्धि होगी। मध्य भारत के एक प्रमुख राज्य के खनन विभाग के एक अधिकारी ने अपनी पहचान जाहिर न करने की शर्त पर कहा, ‘सर्वोच्च न्यायालय का फैसला दशकों से अटके मामले को सुलझाने की दिशा में एक सकारात्मक कदम है। इससे यह सुनिश्चित होता है कि राज्यों को उनका उचित हिस्सा मिले जो स्थानीय आबादी का है। पिछली तारीख से लागू करना अक्सर विवादास्पद होता है। खनन कंपनियों ने हमेशा बकाये का कम भुगतान किया है। इसलिए यह फैसला सुनिश्चित करेगा कि आगे से वे अपना उचित हिस्सा दें।’मगर उद्योग ने अपने घाटे का आकलन करना शुरू कर दिया है।
फेडरेशन ऑफ इंडियन मिनरल इंडस्ट्रीज (एफआईएमआई) के अतिरिक्त महासचिव बीके भाटिया ने कहा, ‘इसका न केवल खनन उद्योग पर बल्कि पूरी मूल्य श्रृंखला पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा और सभी अंतिम उत्पादों की कीमतों में जबरदस्त वृद्धि होगी। हमारा मानना है कि मामले की गंभीरता को देखते हुए और खनन क्षेत्र के विकास को बढ़ावा देने के लिए एक स्थिर कर व्यवस्था बनाने के लिए केंद्र सरकार को तत्काल आवश्यक विधायी उपाय करने चाहिए।’
मगर केंद्र सरकार ने इस मुद्दे पर चुप्पी साध रखी है। खनन मंत्रालय के सचिव ने इस मुद्दे पर तत्काल कोई टिप्पणी नहीं की। मगर नोडल मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों ने संकेत दिया कि इस मामले में अधिक स्पष्टता की दरकार है। खासकर इसे स्पष्ट करने की जरूरत है कि किन राज्यों को खनन कंपनियों पर कर लगाने का अधिकार होगा।
एक अधिकारी ने अपनी पहचान जाहिर न करने की शर्त पर कहा, ‘इस फैसले में न केवल खनन क्षेत्र के लिए बल्कि इस्पात, धातु एवं अन्य विनिर्माण क्षेत्रों के लिए भी वित्तीय निहितार्थ होंगे। इस पहल से इन क्षेत्रों में निवेश भी प्रभावित हो सकता है।’
राज्यों के कल्याण और कंपनियों के लिए संभावित वित्तीय संकट के मुद्दे पर विशेषज्ञों की राय भी अलग-अलग है। डेलॉयट इंडिया के पार्टनर राकेश सुराणा ने कहा, ‘इन करों की बारीकियों को स्पष्ट किए जाने के बाद खनन लागत में अवश्य वृद्धि होगी। इससे धातु की लागत बढ़ जाएगी और व्यापक मुद्रास्फीति को बल मिलेगा।’