अप्रैल में भारत की निजी क्षेत्र की गतिविधियां मजबूत हुई हैं। इसे बढ़ी मांग से सहारा मिला है और कारोबारी खरीद और उत्पादन बढ़ा है। दोनों मामलों में विस्तार की दर 14 साल में सबसे तेज बनी हुई है। मंगलवार को जारी एचएसबीसी के सर्वे में यह सामने आया है।
वैश्विक बैंकर के सर्वे के मुताबिक अप्रैल में प्रमुख कंपोजिट पीएमआई (परचेजिंग मैनेजर्स इंडेक्स) का आंकड़ा बढ़कर 62.2 पर पहुंच गया, जो मार्च में 61.8 था। इस सूचकांक से भारत के विनिर्माण व सेवा क्षेत्रों के संयुक्त उत्पादन में होने वाले मासिक बदलाव का पता चलता है, जो लगातार 33वें महीने में विस्तार के क्षेत्र में है। ताजा तेजी विनिर्माण उद्योग से आई है, जैसा कि इसके पहले के महीने में था।
हालांकि सेवा प्रदाताओं की तुलना में वस्तु उत्पादकों की वृद्धि कम है। सर्वे में कहा गया है कि कुल ऑर्डर बुक में अंतरराष्ट्रीय बिक्री की अहम भूमिका रही है। सितंबर 2014 में सर्वे शुरू होने के बाद से नए निर्यात ऑर्डर में सबसे तेज बढ़ोतरी दर्ज की गई है। इस मोर्चे पर सेवा कंपनियों का सबसे तेज प्रसार हुआ है। परंपरागत साक्ष्यों से पता चलता है कि अफ्रीका, एशिया, ऑस्ट्रेलिया,अमेरिका, यूरोप और पश्चिम एशिया के ग्राहकों को तेज बिक्री हुई है। हालांकि नए कारोबार में तेज वृद्धि के बावजूद अप्रैल में क्षमता पर कम दबाव रहा है।
एचएसबीसी में चीफ इंडिया इकोनॉमिस्ट प्रांजल भंडारी ने कहा कि विनिर्माण व सेवा दोनों क्षेत्रों के मजबूत प्रदर्शन को नए ऑर्डर से बल मिला है, जिससे जून 2010 के बाद कंपोजिट आउटपुट इंडेक्स सबसे ऊपर है। खासकर अप्रैल में सेवा क्षेत्र की वृद्धि और तेज हुई है क्योंकि घरेलू व अंतरराष्ट्रीय दोनों बाजारों से ऑर्डर बढ़े हैं।
उन्होंने कहा, ‘हालांकि कंपोजिट इनपुट और आउटपुट दोनों कीमतें अप्रैल में कम हुई हैं, फिर भी इसमें तेजी है। अप्रैल में विनिर्माण मुनाफे में सुधार हुआ है क्योंकि फर्में मांग अधिक होने के कारण बढ़ी लागत ग्राहकों पर डालने में सफल रही हैं। विनिर्माण उद्योगों ने तेजी से अपने कर्मचारी और इनपुट खरीद गतिविधियों में वृद्धि की है। कुल मिलाकर तेज मांग के कारण भविष्य के कारोबार का परिदृश्य अप्रैल में और सुधरा है।’
रोजगार के मोर्चे पर देखें तो बढ़ती मांग पूरी करने और पुराने ऑर्डर को देखते हुए नौकरियों के सृजन को समर्थन मिला है। इससे निजी क्षेत्र में नौकरियां बढ़ी हैं। सर्वे में कहा गया है, ‘सेवा प्रदाताओं ने मार्च की तुलना में अतिरिक्त कर्मचारियों की कम भर्ती की है, वहीं वस्तु उत्पादकों ने अपने कर्मचारी करीब डेढ़ साल की तुलना में सबसे तेजी से बढ़ाए हैं।’