वित्त मंत्रालय के अधीन आने वाले केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) ने आयकर अधिनियम की धारा 206सी के तहत स्रोत पर कर संग्रह (टीसीएस) का दायरा उल्लेखनीय रूप से बढ़ा दिया है। इसके दायरे में कई महंगी विलासिता वाली वस्तुओं को लाया गया है, जिन पर 1 प्रतिशत टीसीएस का भुगतान करना होगा।
यह कदम कर चोरी पर लगाम लगाने और विवेकाधीन महंगी वस्तुओं के व्यय को निगरानी में लाने के लिए उठाया गया है। बढ़ती वैश्विक अनिश्चितताओं के बीच यह सरकार के लिए राजस्व का एक अतिरिक्त स्रोत भी बन सकता है।
संशोधित नियमों के तहत विक्रेताओं को अब ऐसी चिह्नित विलासिला की वस्तुओं की बिक्री पर 1 प्रतिशत की दर से टीसीएस लेना होगा, जिनकी कीमत 10 लाख रुपये से ऊपर है। यह नियम 22 अप्रैल से प्रभावी हो गया है।
ऐसी महंगी विलासिता की वस्तुओं में कलाई घड़ी, डिजाइनर धूप के चश्मे, हैंडबैग, कलात्मक वस्तुओं जैसे पेंटिंग और मूर्तियां, संग्रहीत की जाने वाली वस्तुएं जैसे सिक्के और स्टांप, समुद्री नौकाएं, हेलीकॉप्टर, गोल्फ किट, स्की गियर, होम थिएटर सिस्टम और रेसिंग या पोलो में इस्तेमाल होने वाले घोड़े शामिल हैं। इसके पहले धारा 206 सी (1एफ) के तहत प्राथमिक रूप से ऐसे वाहनों पर टीसीएस लगता था, जिनकी कीमत 10 लाख रुपये से ऊपर होती है।
वित्त विधेयक 2024 में इस प्रावधान की संभावना को व्यापक बनाया गया है और सरकार को अन्य लक्जरी सामान को भी इसके तहत लाने की अनुमति दी गई है, जिनकी कीमत 10 लाख रुपये से ऊपर है। इस बदलाव को आयकर (ग्यारहवें संशोधन) नियम, 2025 में डाला गया है और फॉर्म 27 ईक्यू को संशोधित कर इसमें अतिरिक्त कोड (एमए से एमजे) शामिल किया गया है।
कर विशेषज्ञों का कहना है कि यह कदम इसलिए उठाया गया है, जिससे कि टीसीएस का इस्तेमाल कर लक्जरी सामान की खपत पर नजर रखी जा सके। ईवाई इंडिया के टैक्स पार्टनर समीर कनाबर ने कहा कि लक्जरी वस्तुओं पर टीसीएस लागू करने का उद्देश्य कर आधार को बढ़ाना है, साथ ही संबंधित खरीदारों द्वारा भुगतान किए गए करों की तुलना या मूल्यांकन करना है। उन्होंने कहा, ‘ऐसा करने से लक्जरी बुटीक पर खरीदारों को उसके के मूल्य के अतिरिक्त कर का भुगतान करने के लिए राजी करने, खरीदारों के प्रासंगिक कर आंकड़े एकत्र करने और रिटर्न दाखिल करने के साथ टीसीएस जमा सुनिश्चित करने का भारी अनुपालन बोझ पड़ेगा।’
नांगिया एंडरसन एलएलपी में टैक्स पार्टनर संदीप झुनझुनवाला ने कहा कि इस अधिसूचना को लागू किए जाने का मकसद ज्यादा महंगी वस्तुओं पर विवेकाधीन व्यय की निगरानी करना है। झुनझुनवाला ने कहा, ‘लक्जरी वस्तु क्षेत्र को लेन देन संबंधी कुछ चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है, लेकिन इस कदम से औपचारीकरण को बढ़ावा मिलने व नियामक निगरानी में समय के साथ सुधार की उम्मीद है।’