नीति आयोग ने मझोले उद्योगों को वैश्विक व्यवसायों में विस्तार करने में मदद करने के लिए रियायती ब्याज दरों पर 25 करोड़ रुपये तक की कार्यशील पूंजी सहायता, 5 करोड़ रुपये तक की पूर्व-स्वीकृत सीमा के साथ क्रेडिट कार्ड और मझोलेउद्योगों (एमई) के संचालन के तरीके को बदलने के लिए प्रौद्योगिकी और कौशल उपायों की सिफारिश की है।
नीति आयोग ने रिपोर्ट ‘डिजाइन ए पॉलिसी फॉर मीडियम एंटरप्राइजेस’ में एमएसएमई को वित्तीय पहुंच और कार्यशील पूंजी सहायता को सुगम बनाने, आपातकालीन ऋण, व्यवसाय संचालन में प्रौद्योगिकी एकीकरण और उद्योग 4.0 अपनाने में सहायता करने, अनुसंधान एवं विकास और नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र को मजबूत करने और क्लस्टर-आधारित परीक्षण और गुणवत्ता प्रमाणन के लिए समर्थन बढ़ाने की आवश्यकता पर बल दिया है। आयोग ने मझोले उद्योगों के लिए केंद्रीकृत डिजिटल पोर्टल बनाने की जरूरत भी बताई है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि एमएसएमई सेक्टर भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 29 प्रतिशत योगदान देता है। साथ ही 60 प्रतिशत से अधिक कार्यबल को रोजगार देता है लेकिन मझौला उद्योग एमएसएमई का केवल 0.3 प्रतिशत हैं। हालांकि एमएसएमई निर्यात में मझोले उद्योगों की हिस्सेदारी 40 प्रतिशत है। भले ही भारत जापान को पछाड़ कर दुनिया की चौथी अर्थव्यवस्था बन गया है लेकिन भारत तकनीक अपनाने, कुशल श्रमिक और अनुसंधान व विकास जैसे अहम मामलों में जापान से काफी पीछे हैं।
भारत तकनीक अपनाने में जापान से पीछे है। नीति आयोग की रिपोर्ट में विश्व बैंक की कारोबारी सुगमता की रिपोर्ट के हवाले से बताया गया कि जापान में तकनीक अपनाने की दर 80 फीसदी है जबकि भारत में इसकी आधी के करीब 42 फीसदी ही है। दक्षिण कोरिया में तकनीक अपनाने की सबसे अधिक दर 90 फीसदी में है। यह अमेरिका में 88 फीसदी और जर्मनी में 75 फीसदी है। नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार ज्यादार मझोले उद्योग पुरानी तकनीक का उपयोग करते हैं, जो उन्हें आधुनिक दुनिया के साथ कदमताल करने से रोकता है। नीति आयोग के सर्वे में 82 फीसदी उद्यमों ने बताया कि उनके पास अपने व्यावसायिक संचालन में एआई जैसी उन्नत तकनीक नहीं है, जो प्रतिस्पर्धा में बाधा डालती है। इसके अलावा इनमें से 60 फीसदी उद्यम अभी भी पुरानी मशीनरी पर निर्भर हैं, जो उनकी उत्पादकता और उत्पाद की गुणवत्ता को प्रभावित करती है। नई तकनीक को अपनाना और कर्मचारियों को प्रशिक्षित करना मुश्किल और महंगा है, खासकर विनिर्माण में जहां भौतिक उपकरण और सॉफ्टवेयर दोनों शामिल हैं।
भारत के उद्योग कुशल श्रमिकों की चुनौती से भी जूझ रहा है। इन उद्यमों में कुशल श्रमिक की उपलब्धता जापान से काफी कम है। जापान में कुशल श्रमिकों की उपलब्धता 81 फीसदी है, जबकि भारत में यह 55 फीसदी है। दक्षिण कोरिया में सबसे अधिक 88 फीसदी कुशल श्रमिक उद्योगों में काम कर रहे हैं। अमेरिका में यह आंकड़ा 85 फीसदी और जर्मनी में 75 फीसदी है। नीति आयोग के सर्वे के आंकड़ों से पता चलता है कि 88 फीसदी मध्यम उद्यम किसी भी सरकारी कौशल विकास या प्रशिक्षण योजना का लाभ नहीं उठा रहे हैं। इसकी वजह ये कार्यक्रम उनकी व्यावसायिक जरूरतों के अनुरूप नहीं होना हो सकती है। 31 फीसदी उद्यमों को लगता है कि उपलब्ध प्रशिक्षण कार्यक्रम उनकी व्यावसायिक आवश्यकताओं के लिए अप्रासंगिक लगते हैं, जबकि अन्य 59 फीसदी केवल मामूली रूप से प्रासंगिक मानते हैं।
कई लोगों को लगता है कि ये कार्यक्रम मध्यम उद्यमों के लिए आवश्यक उन्नत कौशल को संबोधित करने के बजाये सूक्ष्म और लघु उद्यमों की ओर अधिक ध्यान केंद्रित करते हैं। हितधारकों से परामर्श से पता चला कि 40 फीसदी प्रतिभागी कौशल विकास पर केंद्रित एक भी सरकारी योजना का नाम नहीं बता सके।
भारत के उद्योग अनुसंधान व विकास पर जापान की तुलना में कम खर्च करते हैं। भारत में उद्योग जीडीपी का 0.68 फीसदी शोध व अनुसंधान पर खर्च करते हैं जबकि जापान में जीडीपी का 3.30 फीसदी खर्च किया जाता है। अनुसंधान एवं विकास से जुड़े वित्तीय जोखिम और सीमित परीक्षण सुविधाएं मध्यम उद्यमों के लिए शोध व अनुसंधान पर खर्च करने में प्रमुख बाधाएं हैं।