आईटी कंपनियों के प्रतिनिधि संगठन नैसकॉम ने मुख्यमंत्री सिद्धरमैया को पत्र लिखकर कर्नाटक के गिग कामगार (सामाजिक सुरक्षा और कल्याण) विधेयक, 2024 पर कई तरह की गंभीर चिंता जताई है। यह पत्र 9 जुलाई को लिखा गया।
मसौदे में कैब ड्राइवरों और डिलिवरी पर्सन जैसे गिग कामगारों के लिए शिकायत निवारण तंत्र बनाने और उनके लिए औपचारिक अधिकारों और सामाजिक सुरक्षा की योजना है है।
इसमें कामगारों को मनमाने तरीके से काम से हटाने और उनके लिए बुनियादी सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित करना शामिल है। इस विधेयक को विधान सभा के मॉनसून सत्र में पेश किए जाने की संभावना है। मुख्यमंत्री को लिखे पत्र में नैसकॉम ने कहा कि सार्थक विचार-विमर्श के लिए सार्वजनिक परामर्श अवधि को 10 कार्यदिवसों से कम से कम 45 कार्यदिवस तक तक बढ़ाना चाहिए।
परामर्श के हिस्से के तौर पर नैसकॉम ने सरकार से एक अंतरविभागीय बैठक (श्रम विभाग, इलेक्ट्रॉनिक्स, सूचना प्रौद्योगिकी, जैव प्रौद्योगिकी, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी और वाणिज्य एवं उद्योग विभाग) बनाने का भी आग्रह किया है। ऐसी बैठक में कर्नाटक के सक्रिय प्लेटफॉर्म कारोबारों, उद्योग संगठनों और अन्य संबंधित हितधारकों को बुलाने का सुझाव दिया गया है।
पत्र में कहा गया है कि विधेयक में केंद्रीय कानून- सामाजिक सुरक्षा संहिता 2020 (सीओएसएस) की नकल करते हुए प्लेटफॉर्मों के गिग कामगारों के लिए सामाजिक सुरक्षा कानून के ढांचे का प्रस्ताव किया गया है। इसमें ऐसी कोई निर्णायक धारा का प्रस्ताव नहीं है जो विधेयक को केंद्रीय कानून में शामिल कर देगा।
पत्र में कहा गया है, ‘गिग कामगार कर्मचारी नहीं बल्कि स्वतंत्र ठेकेदार के तौर पर होते हैं क्योंकि उनके साथ नियंत्रण, प्रतिबद्धता और जवाबदेही जैसे तत्व नहीं होते। मगर विधेयक में इन बातों का ध्यान नहीं रखा गया और इसके बजाय एक धारणा बना ली गई कि गिग कामगार भी कर्मचारी की तरह हैं।’
नैसकॉम ने कहा है कि यह विधेयक एग्रीगेटरों पर टर्मिनेशन के लिए न्यूनतम नोटिस अवधि, एल्गोरिदम संबंधी खुलासे, निगरानी एवं ट्रैकिंग व्यवस्था को सख्त बनाते हुए उन पर जिम्मेदारी का बोझ डालता है।