भारत अपने ‘फार्माकोपिया’ की दुनियाभर में स्वीकृति सुनिश्चित करने के प्रयास तेज कर रहा है। उसका लक्ष्य 50 देशों तक इसकी मान्यता पहुंचाना है। हाल में भारत की यात्रा पर आए इथियोपिया सरकार के प्रतिनिधिमंडल ने कहा कि वह भारतीय फार्माकोपिया और इसके नियामक पारिस्थितिकी तंत्र का सक्रियता से अध्ययन कर रहा है।
फार्माकोपिया एक सरकारी या अधिकृत निकाय द्वारा प्रकाशित आधिकारिक विनियामक संदर्भ है जो दवाओं की गुणवत्ता, शुद्धता, शक्ति और परीक्षण के लिए कानूनी रूप से बाध्यकारी मानकों को परिभाषित करता है। इसमें कच्चे माल और तैयार दवाओं के लिए पहचान विधियों, स्वीकार्य अशुद्धियों और विश्लेषणात्मक प्रक्रियाओं की रूपरेखा वाले विस्तृत मोनोग्राफ शामिल हैं।
दूषित तत्त्वों के लिए सीमा निर्धारित करके और एकसमान गुणवत्ता नियंत्रण सुनिश्चित करके, फार्माकोपिया रोगी की सुरक्षा सुनिश्चित करते हैं। यह पहल, जिसे मुख्य रूप से तकनीकी कूटनीति, नियामक सहयोग और जमीनी स्तर पर ऑडिट के माध्यम से आगे बढ़ाया गया है, ने मापने योग्य परिणाम देने शुरू कर दिए हैं। अगस्त 2025 में राज्यसभा में दिए गए एक उत्तर के अनुसार 17 देशों ने पहले ही भारतीय फार्माकोपिया को मान्यता दे दी है, जिनमें से 12 ने पिछले दो वर्षों में मान्यता दी है। अभी यह संख्या 18 है।
स्वास्थ्य मंत्रालय के राज्य मंत्री फ्रेहिवोट अबेबे के नेतृत्व में इथियोपिया के एक उच्च स्तरीय प्रतिनिधिमंडल ने पिछले महीने भारत में दवा और वैक्सीन निर्माण सुविधाओं का दौरा किया, ताकि गुणवत्ता मानकों और नियामक प्रक्रियाओं का प्रत्यक्ष मूल्यांकन किया जा सके। अबेबे ने कहा, ‘हमने दिल्ली में औषधि नियंत्रक से मुलाकात की और उनके साथ इस बारे में उपयोगी चर्चा हुई कि भारतीय नियामक प्रणाली निरीक्षण और गुणवत्ता ऑडिट सुनिश्चित करने के लिए कैसे काम कर रही है। हमने भारतीय औषधकोश की बारीकियों पर भी चर्चा की।’
प्रतिनिधिमंडल ने महाराष्ट्र का भी दौरा किया, जहां लगभग 900 एलोपैथिक विनिर्माण सुविधाएं हैं, ताकि यह अध्ययन किया जा सके कि राज्य खाद्य एवं औषधि प्रशासन (एफडीए) उद्योग संचालन की निगरानी और लेखा परीक्षा कैसे करता है। अबेबे ने यह भी कहा कि इथियोपिया अन्य वैश्विक फार्माकोपिया मानकों के मुकाबले भारतीय फार्माकोपिया मानकों का मूल्यांकन कर रहा है और उनके मंत्रालय की तकनीकी टीम जल्द ही एक सिफारिश पेश करेगी।
उन्होंने कहा, ‘हम समझते हैं कि अगर हम भारत से दवाएं आयात करते समय भारतीय फार्माकोपिया को मानक मान लें, तो कीमतों में कम से कम 15-20 प्रतिशत का अंतर होगा। नतीजतन, हम ज्यादा मात्रा में आयात कर पाएंगे।’
इथियोपिया की दवा खरीद एजेंसी ने जरूरी दवाओं के लिए भारत पर देश की निर्भरता पर जोर दिया है। इथियोपियन फार्मास्युटिकल प्रोक्योरमेंट सर्विसेज के महानिदेशक अब्दुलकेदिर गेलगेलो ने बताया कि इथियोपिया अपनी लगभग 70 प्रतिशत दवाइयां भारत से आयात करता है, और अपनी लगभग सारी वैक्सीन वैश्विक एजेंसियों के जरिये मंगाता है। ज्यादातर ऐंटीबायोटिक्स, कैंसर-रोधी दवाओं के अलावा आम दवाइयां भी भारत से ही मंगवाई जाती हैं।
उद्योग प्रतिनिधियों का तर्क है कि भारतीय फार्माकोपिया की वैश्विक स्वीकृति से निर्यात लागत में उल्लेखनीय कमी आ सकती है तथा विकासशील देशों के लिए भारतीय दवाएं अधिक किफायती हो सकती हैं। फार्मेक्सिल के उपाध्यक्ष और किलिच ड्रग्स के निदेशक भाविन मेहता ने कहा कि यूनाइटेड स्टेट्स फार्माकोपिया (यूएसपी) का उपयोग वर्तमान में 140 से अधिक देशों में किया जाता है, लेकिन इसे अपनाना काफी महंगा है।
मेहता ने कहा, ‘यूएसपी से अशुद्धियां और मानक खरीदना महंगा है, जबकि भारतीय फार्माकोपिया अपेक्षाकृत सस्ता है। भारतीय फार्माकोपिया में भी इसी तरह के परीक्षणों का उल्लेख है। हम यह सुनिश्चित करने के लिए काम कर रहे हैं कि भारतीय फार्माकोपिया को वैश्विक स्तर पर और अधिक स्वीकार्य बनाया जाए। फिलहाल, हमने यह सुनिश्चित करने का लक्ष्य रखा है कि भारतीय फार्माकोपिया को 50 देशों में स्वीकार्य बनाया जाए। पहले से ही 18 देश इसे स्वीकार कर रहे हैं और इथियोपिया इस पर सक्रिय रूप से अध्ययन कर रहा है।’ उन्होंने कहा कि इसे अपनाने से भारतीय निर्माताओं की निर्यात लागत कम होगी।
अगस्त में राज्यसभा में अपने उत्तर में स्वास्थ्य राज्य मंत्री अनुप्रिया पटेल ने कहा था कि भारतीय फार्माकोपिया आयोग ने विदेशी भागीदारी को बढ़ाया है तथा 2024 और 2025 में 37 देशों की भागीदारी के साथ दो नीति निर्माताओं के मंचों का आयोजन किया। इनमें अधिकांश विकासशील देश हैं।भारत ने वैश्वि क नियामक सहयोग को मजबूत करने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के सहयोग से फरवरी 2025 में विश्व फार्माकोपिया की 15वीं अंतरराष्ट्रीय बैठक की मेजबानी भी की।
उन्होंने कहा, ‘इन पहलों के परिणामस्वरूप भारतीय फार्माकोपिया को 17 देशों में मान्यता प्राप्त है, जिनमें से 12 देशों ने इसे पिछले दो वर्षों में मान्यता दी है।’ उन्होंने कहा कि द्विपक्षीय तकनीकी चर्चाओं और वैश्विक सम्मेलनों में भागीदारी के माध्यम से स्वीकृति बढ़ाने के प्रयास जारी हैं।
भारत का बढ़ता प्रभाव इस बात से भी जुड़ा है कि भारतीय फार्माकोपिया आयोग सितंबर 2023 में अमेरिका, यूरोपीय और जापानी फार्माकोपिया के साथ फार्माकोपियाल चर्चा समूह (पीडीजी) का स्थायी सदस्य बन जाएगा जो वैश्विक मानकों के सामंजस्य में एक महत्त्वपूर्ण मील का पत्थर है।
भारतीय फार्माकोपिया को मान्यता देने वाले देशों में अफगानिस्तान, घाना, नेपाल, मॉरीशस, सूरीनाम, निकारागुआ, भूटान, मोजांबिक, सोलोमन द्वीप, श्रीलंका, नाउरू, मलावी और गुयाना शामिल हैं। हाल ही में इसमें फिजी भी शामिल हुआ, जिसने एक समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं, जिसके तहत भारतीय निर्मित दवाओं के लिए भारतीय फार्माकोपिया-आधारित अनुमोदन संभव हो सकेगा जिससे दोहरा परीक्षण समाप्त होगा और बाजार तक पहुंच आसान होगी।
भारत दुनिया में जेनेरिक दवाओं का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता है, जो वैश्विक उत्पादन का 20 प्रतिशत हिस्सा है और 200 देशों को निर्यात करता है, फिर भी भारतीय फार्माकोपिया को यूएसपी, बीपी और ईपी की तुलना में मान्यता पाने के लिए ऐतिहासिक रूप से संघर्ष करना पड़ा है। स्वीकार्यता बढ़ाने के प्रयासों से निर्यात में वृद्धि, नियामक लागत में कमी और “विश्व की फार्मेसी” के रूप में भारत की स्थिति मजबूत होने की उम्मीद है। बढ़ती स्वास्थ्य देखभाल लागत से जूझ रहे विकासशील देशों के लिए, भारतीय फार्माकोपिया को अपनाने से आवश्यक दवाएं सस्ती हो सकती हैं और उन तक पहुंच बढ़ सकती है।