निजी क्षेत्र के बैंक आईसीआईसीआई बैंक का मानना है कि वैश्विक स्तर पर वर्ष
आईसीआईसीआई के निजी उपभोक्ता विभाग से संबद्ध
‘ग्लोबल इन्वेस्टमेंट आउटलुक 2008′ के मुताबिक, अंतरराष्ट्रीय बाजार में इक्विटी की मजबूती अब परिपक्वता की स्थिति में पहुंच चुकी है। ऐसे में वर्ष 2008 की छमाही में इक्विटी बाजार में काफी उथल–पुथल हो सकती है। आईसीआईसीआई समूह के प्राइवेट क्लाइंट के ग्लोबल हेड अनूप बागची का कहना है कि इस दौरान अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, कनाडा, इटली और जापान की अर्थव्यवस्था में सुस्ती देखी जा सकती है। बावजूद इसके इक्विटी बाजार में तेजी आ सकती है।
रिपोर्ट के मुताबिक
, पिछले पांच साल के दौरान छोटे उतार–चढ़ाव को छोड़ दें, तो इक्विटी बाजार में तेजी का रुख रहा है। दरअसल, इस तेजी की वजह आर्थिक विकास, कारपोरेट विस्तार, कम ब्याज दर और मुद्रास्फीति रही है।
हालांकि अमेरिकी अर्थव्यवस्था में आई मंदी, कठोर क्रेडिट प्रावधान और वॉल स्ट्रीट के बड़े निवेशकों के घाटे की खुलासे की वजह से पूरी दुनिया के शेयर बाजार पर असर पड़ा। यही वजह रही कि इस साल के शुरुआत में ही शेयर बाजार में करीब 10 से 15 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई।
कई लोगों का मानना है कि अमेरिका में 911 की घटना के बाद आई यह सबसे बड़ी गिरावट है। विकसित देशों की अर्थव्यवस्था में आई मंदी और कम विकास दर की वजह से आगामी तिमाही में बाजार में कुछ गिरावट आ सकती है। रिपोर्ट के मुताबिक, दुनिया के कई देशों की अर्थव्यवस्था में आई गिरावट के असर से अन्य देशों के बाजार भी प्रभावित हो सकते हैं। हालांकि भारत और चीन जैसे उभरते बाजार वाले देशों में इसका ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ेगा।
बागची ने रिपोर्ट में कहा है कि अगर विकसित देशों की अर्थव्यवस्था में गिरावट जारी रही, तो इसका लाभ भारत व चीन जैसे उभरते बाजारों को मिल सकता है।
दरअसल, निवेशक बेहतर रिटर्न के लिए विकसित देशों की अपेक्षा इन देशों के बाजारों में निवेश कर सकते हैं, जो कि उभरते बाजार वाले देशों के लिए बेहतर अवसर साबित होगा। दूसरे शब्दों में कहें, तो उभरते देशों के बाजार में खरीदारी को बढ़ावा मिल सकता है, जो कि इन देशों के लिए शुभ संकेत हैं। हालांकि रिपोर्ट में इस बात का भी जिक्र है कि निवेशक ऐसी स्थिति में सोच–समझ कर निवेश करेंगे। यही नहीं, जिन देशों की अर्थव्यस्था पर अमेरिकी मंदी का असर नहीं पड़ा है और न ही वहां की अर्थव्यवस्था मुद्रास्फीति का सामना कर रही है, वहां के बाजारों में भी सुधार हो सकता है।
बागची ने कहा कि जिस देश की
50 फीसदी जनसंख्या 25-35 आयु वर्ग की हो, वहां के इक्विटी बाजार में निवेश में बढ़ोतरी होने की उम्मीद है। उदाहरण के तौर पर भारत में वित्तीय वर्ष 2007 में म्युचुअल फंड की कुल इक्विटी हिस्सेदारी में 25 फीसदी की वृद्धि देखी गई। रिपोर्ट में इस बात पर बल दिया गया कि अमेरिकी मंदी के बावजूद उभरते बाजार वाले देशों में ज्यादा असर नहीं पड़ा है। सच तो यह है कि इन उभरते बाजारों के सूक्ष्म और व्यापक परिदृश्य बेहतर हैं। ऐसे में वित्तीय और मौद्रिक अथॉरिटी को बेहतर वातावरण बनाने के लिए कदम उठाने होंगे। रिपोर्ट के मुताबिक, उभरती अर्थव्यवस्था का तात्पर्य बढ़ती आय, समृद्धि और घरेलू मांग में बढ़ोतरी के साथ–साथ निर्यात में वृद्धि से है।