डिक्सन टेक्नोलॉजीज के संस्थापक और चेयरमैन सुनील वाचानी का कहना है कि कलपुर्जों और इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योग ‘वाई2के’ अवसर की दिशा में बढ़ रहा है और विश्व अपनी विनिर्माण इकाइयां स्थापित करने के लिए वैकल्पिक स्थान की लगातार तलाश कर रहा है।
वाचानी ने बिजनेस स्टैंडर्ड मंथन के दूसरे संस्करण में कहा, ‘भारत एक स्वाभाविक विकल्प है। हम जिन उत्पादों का निर्माण करते हैं, उनमें से कुछ के लिए हमारे पास सबसे बड़ा बाजार है, बड़ी संख्या में श्रम बल है, हम डिजाइन और निर्माण में उत्कृष्टता ला सकते हैं। हमने दिखा दिया है कि अगर हमारे मानव श्रम को सही माल और तकनीक दी जाए तो वह कई अन्य देशों की तुलना में दुनिया में सबसे अधिक उत्पादक साबित हो सकता है।’
देश में खपत होने वाले कुल 140 अरब डॉलर के इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पादों में से घरेलू इकाइयां 110 अरब डॉलर के उत्पाद बनाती हैं। उन्होंने कहा कि सूचना और संचार प्रौद्योगिकी उत्पाद भारत के निर्यात में वस्तुओं की तीसरी सबसे बड़ी श्रेणी के तौर पर पहचान बना चुके हैं। देश 40 अरब डॉलर के आईसीटी उत्पादों का निर्यात करने को तैयार है जिसमें से अकेले मोबाइल फोन निर्यात 20 अरब डॉलर का होगा।
उन्होंने कहा, ‘अब सवाल यह है कि हम विनिर्माण को कब और ज्यादा मजबूत बनाएंगे? सभी उत्पादों में मूल्य वृद्धि का क्या होगा? हम इन उत्पादों को कब डिजाइन करना शुरू करेंगे? मुझे लगता है कि अब ये सवाल पूछने चाहिए।’ डिक्सन टेक्नोलॉजीज के 56 वर्षीय चेयरमैन और प्रबंध निदेशक का मानना है कि इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योग के धैर्य के साथ, बदलते समय के साथ कलपुर्जा विनिर्माण पारिस्थितिकी तंत्र भी देश में मजबूत होगा।
वाचानी ने कहा, ‘मैं तब इतना नहीं समझता था, लेकिन मुझे यकीन है कि जब मारुति ने भारत में पहली बार कारों का निर्माण शुरू किया होगा, तो यही सवाल पूछा गया होगा। तब बहुत से लोगों ने कहा होगा कि अभी तो सिर्फ असेंबली हो रही है, पुर्जे बनाने कब शुरू होंगे। लेकिन आज, शायद लगभग 40 साल बाद हमारा वाहन पुर्जा उद्योग पूरी दुनिया में अपने उत्पादों का निर्यात कर रहा है।’
अमेरिकन कॉलेज ऑफ लंदन से स्नातक वाचानी ने वर्ष 1993 में अपने पिता से कुछ पैसे उधार लेकर डिक्सन की शुरुआत की थी। उन्होंने खुद माना है कि पिता वाचानी ने उन्हें न केवल पैसा दिया, बल्कि उनके साथ एक विश्वसनीय सिपहसालार अतुल लाल को भेजा और शुभकामनाएं भी दीं।
उन्होंने कहा कि मूल्य संवर्धन के बारे में बहस (खासकर जब मोबाइल फोन की बात आती है) थोड़ी गलत है। उदाहरण के लिए, लोग कहते हैं कि भारत में घरेलू मूल्य संवर्धन केवल 20 प्रतिशत है, यहां तक कि वियतनाम जैसे देशों के लिए भी (जहां मोबाइल फोन का उत्पादन बहुत अधिक है) कुल मूल्य संवर्धन केवल लगभग 25 प्रतिशत है। वाचानी ने कहा कि फीचर फोन और स्मार्टफोन दोनों का विश्व में सबसे बड़े उत्पादक चीन में भी मूल्य संवर्धन केवल लगभग 50 प्रतिशत है।
उन्होंने कहा, ‘डिक्सन में हमने डिस्प्ले मॉड्यूल बनाने की अपनी परियोजना की भी घोषणा की है। जाहिर है, एक डिस्प्ले फैब स्थापित किया जाएगा। हम कैमरा मॉड्यूल और मैकेनिकल के निर्माण में उतर रहे हैं।’ नोएडा में एक किराए की निर्माण इकाई से लेकर आज देश भर में 24 निर्माण संयंत्रों तक कंपनी की यात्रा भारत में घरेलू विनिर्माण क्षमताओं की प्रगति की शानदार मिसाल है।
डिक्सन ने अपनी शुरुआत लकी-गोल्डस्टार (अब एलजी) के लिए कैथॉड रे ट्यूब (सीआरटी) टेलीविजन असेंबलिंग के साथ की और अब उसने अपने पोर्टफोलियो में टेलीविजन, स्मार्टफोन और फीचर फोन, दूरसंचार उपकरण, रेफ्रिजरेटर, स्मार्टवॉच, वाशिंग मशीन, सुरक्षा और निगरानी प्रणालियों को भी शामिल किया है।
कंपनी वर्ष 2017 में स्टॉक एक्सचेंजों पर सूचीबद्ध हुई थी और उसने 2022-23 में 12,192 करोड़ रुपये का कारोबार किया जो सालाना आधार पर 90 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि है। सरकार के मेक इन इंडिया कार्यक्रम की समर्थक, वाचानी की डिक्सन कंपनी मोबाइल फोन के लिए उत्पादन से जुड़ी प्रमुख प्रोत्साहन योजना के तहत मंजूरी पाने वाली पहली कंपनियों में से एक थी। 80,000 मोबाइल हैंडसेट से शुरुआत कर कंपनी सालाना 7 करोड़ से ज्यादा हैंडसेट बनाने की क्षमता तक पहुंच गई है। कंपनी इस साल अक्टूबर से पहले डिस्प्ले मॉड्यूल का उत्पादन शुरू करेगी, जो मोबाइल फोन की बिक्री के बिल में मूल्य के हिसाब से लगभग 8-10 प्रतिशत है।
उन्होंने कहा कि इसके अलावा कंपनी कैमरा मॉड्यूल बनाने के लिए एक अन्य संयंत्र की शुरुआत भी करेगी। मोबाइल फोन की बिक्री की वैल्यू में कैमरा मॉड्यूल का करीब 7-8 प्रतिशत योगदान है। वाचानी ने कहा कि अमेरिका द्वारा चीन तथा कुछ अन्य देशों पर लगाए गए या लगाए जाने वाले टैरिफ ढांचे में संभावित बदलाव भारत के लिए व्यापक अवसर हैं।
उन्होंने कहा, ‘अमेरिका लगभग 10 अरब डॉलर मूल्य के एलईडी टेलीविजन आयात करता है। वह लगभग 60 अरब डॉलर मूल्य के मोबाइल फोन, लगभग 80 अरब डॉलर मूल्य के आईटी हार्डवेयर आयात करता है। यदि भारतीय कंपनियों को इस हिस्से का एक छोटा सा हिस्सा भी मिल जाए, तो आप इस तरह की मांग को पूरा करने के लिए पर्याप्त क्षमता स्थापित नहीं कर पाएंगे। हालांकि इस तरह की मांग और इसे पूरा करना घरेलू इलेक्ट्रॉनिक्स निर्माण उद्योग के लिए नुकसानदायक हो सकता है, लेकिन भारत को यह भी सुनिश्चित करने की जरूरत है कि वह रेसिप्रोकल कर के मुद्दे से निपटे और मुक्त व्यापार समझौतों (एफटीए) पर हस्ताक्षर करे, जिसमें भारतीय उत्पादों को शामिल किया जाए।’
उन्होंने कहा कि उद्योग समूह और संगठन रेसिप्रोकल टैरिफ यानी बराबरी के शुल्क के मुद्दे पर सरकार के संपर्क में हैं और उन्होंने सुझाव दिया है कि भारत को एफटीए लागू होने तक कुछ समय के लिए ऐसे टैरिफ को रोकने का प्रयास करना चाहिए।