कंपनी मामलों के मंत्रालय ने बुधवार को जारी कार्यालय ज्ञापन में कहा कि भारत को रणनीतिक ऑडिट और परामर्श के मामले में बहुराष्ट्रीय कॉरपोरेशन पर अपनी निर्भरता कम करने की जरूरत है। इससे देश को आर्थिक संप्रभुता को मजबूत करने और आत्मनिर्भर भारत के लक्ष्य को हासिल करने के लिए मदद मिलेगी।
एमसीए ने भारतीय मल्टी डिसप्लनेरी पार्टनरशिप (एमडीपी) की स्थापना के अवसर पर सभी साझेदारों से टिप्पणी आमंत्रित की। इस मौके पर एमसीए ने कहा कि भारत में वैश्विक स्तर का प्रतिभा पूल होने के बावजूद विशेष तौर पर उच्च मूल्य के ऑडिट और परामर्श के मामले में घरेलू कंपनियां हाशिये पर रही हैं। इसका कुछ हद तक कारण ढांचागत और नियामकीय बाधाएं हैं।
एमसीए की सचिव दीप्ति गौर मुखर्जी के नेतृत्व वाली समिति ने इंडियन बिग फोर फर्म के सृजन वाली के सृजन के लिए हाल ही में पहली बैठक की थी। आधिकारिक सूत्रों के मुताबिक इस बैठक में घरेलू छोटी एकाउंटिंग और ऑडिट कंपनियों को विस्तार करने में मदद करने पर चर्चा की गई थी।
आधिकारिक परिपत्र के अनुसार, ‘कंपनी मामलों का मंत्रालय घरेलू एमडीपी और उनकी वैश्विक प्रतिस्पर्धा बढ़ाने के लिए संबंधित अधिनियमों, नियमों और विनियमों को संशोधित करने के लिए सक्रिय रूप से कार्य कर रहा है।’
उसने कहा कि वैश्विक परामर्श और ऑडिटिंग उद्योग का मूल्यांकन करीब 240 अरब डॉलर है। इसमें वर्चस्व अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क और वैश्विक रणनीतिक प्रमुखों का है। एमसीए ने भारत के पेशेवर सेवा परिदृश्य में मौजूदा विषमताओं पर ध्यान दिया और यह वैश्विक कंपनियों की तुलना में भारत की घरेलू कंपनियों को नुकसान की स्थिति में रखती है। एमसीए ने कहा, ‘भारत के मौजूदा मुक्त व्यापार समझौते (FTA) भारत की परामर्श कंपनियों को विदेश में अपनी स्थिति का विस्तार करने की संभावनाएं उपलब्ध कराते हैं।’
भारत के विनियमन विशेषज्ञओं को एकसाथ कार्य करने की अनुमति नहीं प्रदान करते हैं। जैसे चार्टर्ड अकाउंटेंट, कंपनी सचिव, वकील और बीमा कंपनियों में लेखा जोखा रखने वालों को कंपनी के एक ढांचागत स्वरूप में काम करने की अनुमति नहीं देते हैं। इससे समन्वय सीमित होता है और घरेलू कंपनियां अंतरराष्ट्रीय कंपनियों की तरह समन्वित सेवाएं नहीं मुहैया करवा पाती हैं। चार्टर्ड एकाउंटेंट, कंपनी सेक्रेटरीज और वकील अपने संबंधित सरकारी निकायों के कारण विज्ञापन व ब्रांडिंग पर प्रतिबंधों का सामना करते हैं।